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दरअसल प्रारम्भिक दुनिया बेहतर ही थी, सब कुछ सरल, निर्मल अपने प्राकृतिक स्वरुप में ही था। नदियाँ साफ़-सुथरी स्वच्छ पीने योग्य जल से भरपूर। जंगल हरे, छायादार, फल-फूलों से लदे वृक्षों से अटे पड़े थे। खेती के लिए साफ़-सुथरे मैदान, उर्वरक-उपजाऊ मिट्टी लिए हुए थे। प्रदूषण रहित प्राणवायु थी, सारे मौसम नियत समय पर आते और चले जाते कहीं कोई बनावट या दिखावट नहीं थी। जनसँख्या भी कम थी, लोग अपने आस-पास के वातावरण के प्रति इतने उदासीन और असंवेदनशील भी नहीं थे। बड़े शांत और स्वाभाविक तरीकों से जीवन व्यतीत हो रहा था। फिर शनैः-शनैः मनुष्य ने सीखना-समझना शुरू किया और सीखते-समझते आज इस मुकाम पर आ गया कि पीछे पलटकर देखने से मालूम होता है कि 'ये कहाँ आ गए हम? ये तो नहीं चाहा था हमने’। सब बिगाड़ स्वयं का किया-धरा है और इसलिए अब उसे वापिस पहले की स्थिति में लाने की कवायद शुरू की है; हालाँकि पूर्ण सफलता संदिग्ध है, फिर भी सही सोच रखते हुए ईमानदार प्रयास करने में कोई हर्ज़ नहीं है क्योंकि इस सम्पूर्ण जीवित जगत में मनुष्य ही एकमात्र ऐसा प्राणी है जो अगर ठान ले तो फिर कोई भी काम उसके लिए असंभव नहीं है।
दुनिया को बेहतर बनाना एक बहुत बड़ा लक्ष्य है और इसको हकीकत में लाने के लिए विश्वस्तर पर जन-समर्थन और संकल्प की आवश्यकता होगी। चूँकि दुनिया को बेहतर बनाने का मकसद बहुत नेक है अतः इसके लिए हम सभी को सहयोग और समझदारी से काम करना होगा। एक खुशहाल और बेहतर दुनिया का निर्माण बेहद जटिल और सतत चलने वाली प्रक्रिया है जिसमें व्यक्तियों, समुदायों, सरकारों और संस्थाओं को मिल-जुलकर प्रयास करने की ज़रूरत होगी। यहाँ कुछ कदम हैं जो अगर आप और हम मिलकर उठायें तो दुनिया के माहौल को सुधारने में मदद कर सकते हैं और पुनः एक खूबसूरत, रंगीन और खुशनुमा दुनिया हमारे सामने होगी।
आइये जाने कुछ ऐसे ही महत्वपूर्ण कदमों के बारे में जो दुनिया को बेहतर बनाने में मददगार साबित हो सकते हैं:
बेहतर दुनिया के निर्माण हेतु उपर्युक्त बातें भौतिक मापदंड हैं इसके अलावा हमें कई मानवीय मूल्यों को भी आत्मसात करना होगा तब जाकर लक्ष्य की प्राप्ति हो सकेगी। मैं आपको एक वाकया सुनाती हूँ जिसे सुनकर मुझे यकीन हो गया कि हमारी सबसे युवा पीढ़ी जो 'Gen - Z ' के नाम से जानी जाती है वो स्वतः ही इस मार्ग पर अग्रसर है, सुधरने की आवश्यकता तो हम बड़ों को है। हुआ यूँ कि मेरी परिचिता निशा का 17 वर्षीय बेटा है यश। उसके स्कूल में पढ़ने वाली एक लड़की सुनिधि, जो उसकी सीनियर भी है और स्कूल बस में भी उसके साथ जाती है, उसकी ही कॉलोनी में रहती है। एक दिन सुनिधि उसके पास आयी। वो किसी एग्जाम की तैयारी कर रही थी। ह्यूमैनिटी स्ट्रीम की स्टूडेंट होने के नाते उसे मैथ्स के कुछ प्रॉब्लम्स सॉल्व करने के लिए यश की मदद चाहिए थी। यश ने भी अपने म्यूजिक टाइम को अवॉयड करते हुए तुरंत उसे डेढ़-दो घंटे का समय देकर उसकी समस्या का समाधान किया। सुनिधि के जाने के बाद निशा ने यश से कहा कि -"ये वही लड़की है न जिसने पिछले साल तेरी शिकायत प्रिंसिपल से सिर्फ इसलिए की थी कि स्कूल बस की खाली पड़ी एकमात्र सीट पर तू बैठ गया था। उसके हिसाब से तुझे वो सीट उसे ऑफर करनी थी क्योंकि एक तो वो सीनियर थी और दूसरे लड़की भी थी। इसके बाद सबके सामने तुझे उसे सॉरी कहना पड़ा था। घर पर भी वो अपनी माँ के साथ शिकायत लेकर आयी थी। मुझे बहुत बुरा लगा था। उस दिन तो तुझे बहुत मैनर्स सिखा रही थी फिर आज क्या हुआ ? तूने उसकी मदद क्यों की? मना कर देता, परेशान होती तो पता चलता"। यश हँसते हुए बोला - "माँ, आप भी। मुझे भी याद है वो इन्सिडेन्स लेकिन पूरे वक्त हम किसी एक बात को लेकर तो नहीं बैठे रह सकते हैं न। उसे आज वाकई मदद की ज़रूरत थी। उसे जो सही लगा उसने किया, मुझे जो सही लगा मैंने किया। कमऑन मूव ऑन माँ, लाइफ इज़ टू शॉर्ट। दुश्मनी ही करते रहेंगे तो जियेंगे कब"? निशा अपलक अपने बेटे को निहार रही थी, सोच रही थी कि हम बड़े कैसे आस-पड़ोस में, रिश्तेदारी में छोटी-छोटी बातों को ईगो बनाकर सम्बन्ध बिगाड़ लेते है और फिर पूरे जीवन भर उस दर्द और नफरत में जीते रहते हैं। ये घटनाक्रम सुनने के बाद मुझे भी लगा कि सचमुच बेहतर दुनिया बनाने के लिए हमें पहले बेहतर इंसान बनना पड़ेगा और अपने अंदर मानवीय गुणों यथा- प्रेम, करुणा, क्षमा, दया, सहनशीलता और विनम्रता को जीवित करना होगा।
एक साफ़-सुथरी, सुन्दर दुनिया में रहना भविष्य की आने वाली पीढ़ियों का अधिकार है और हमारा कर्तव्य कि हम उन्हें ये नेमत वैसे ही सुपुर्द करें जैसे कि ईश्वर ने हमारे पूर्वजों को सौंपी थी। हालाँकि इसके लिए हमें 'भगीरथी प्रयास' करने होंगे। याद रखें कि दुनिया को रहने के लिए एक बेहतर जगह बनाना सामूहिक प्रयास है, और इस दिशा में की गई हर कार्रवाई, चाहे वह कितनी भी छोटी क्यों न हो, सकारात्मक बदलाव में योगदान दे सकती है। आप जिस चीज़ को लेकर जुनूनी हैं, उससे शुरुआत करें और अपने तरीके से एक बेहतर दुनिया बनाने की ओर सार्थक कदम उठाएं क्योंकि हमारे बड़े-बुज़ुर्ग कह भी गए हैं- 'बूँद-बूँद से ही घड़ा भरता है'।