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अभी पिछले दिनों की बात है एक अत्यंत विचित्र किन्तु सत्य प्रसंग से सामना हुआ, एक 'महोदय' हैं जो किसी राजनीतिक पार्टी के जिला अध्यक्ष हैं, चूँकि वे पार्टी से काफी अरसे से जुड़े हुए हैं इसलिए पार्टी में, शहर में उनका काफी रुतबा है. 'महोदय' के पी.ए. ने स्वयं ये किस्सा मुझे सुनाया, आप भी सुनें. बात बाल-दिवस पर शहर के विभिन्न स्कूलों में होने वाले कार्यक्रमों की थी. सुबह बच्चों की रैली निकलना थी, दोपहर में एक प्ले स्कूल का उदघाटन था, शाम को जिले के प्रतिभाशाली बच्चों का सम्मान समारोह था. उसके बाद रात में शहर के कम्युनिटी हॉल में विभिन्न स्कूलों के बच्चों द्वारा रंगारंग कार्यक्रम होने वाला था. इन सभी समारोहों में उपरोक्त वर्णित 'महोदय' कहीं मुख्य अतिथि के रूप में, तो कहीं प्रमुख वक्ता के तौर पर शिरकत करने वाले थे. समाज में ये प्रचारित है कि ये 'महाशय' बच्चों के सच्चे हितैषी हैं. बच्चों के विकास के लिए, शिक्षा के लिए या उनसे सम्बंधित कोई भी समस्या या काम हो ये हमेशा उपलब्ध रहते हैं. बच्चो को दुःख या तकलीफ में ये नहीं देख सकते. तो वाकया 14 नवंबर की सुबह का है. चूँकि 'महोदय' का पूरा दिन व्यस्त गुजरने वाला था इसीलिए सुबह से चिड़चिड़ा रहे थे. घर पर जो मेड काम करती है उसके 11 वर्षीय बेटे से शुरुआत हुई, दरअसल उसने 'महोदय' के इस्तरी किये हुए खादी के कुर्ते-पायजामे को छूकर जो देख लिया था, कहीं कुछ गन्दगी लग जाती तो? जमकर फटकार लगाईं उसे, भई 'बाल-दिवस' था, 'बच्चों' के कार्यक्रम में जो जाना था, हालाँकि ये भूल गए कि जिसे फटकार लगा रहे हैं वो भी एक 'बच्चा' है, बाल-दिवस उसका भी है. 'महोदय' के पी.ए. वहीँ खड़े थे, वे ठंडी सांस छोड़ते हुए कमरे से बाहर निकल गए. खैर घर से निकलते ही ट्रैफिक लाइट पर रुकना पड़ा. लाल बत्ती पर ज्योंही उनकी गाड़ी रुकी, 9-10 वर्ष की एक दुबली-पतली बच्ची हाथ में दैनिक समाचार पत्र की कुछ प्रतियां लिए खड़ी थी वो आग्रह करने लगी कि उससे एक पेपर ले लिया जाए, जैसे ही बच्ची ने विंडो के ग्लास को छुआ, 'महोदय' भड़क उठे, ड्राइवर को लताड़ लगाते हुए बोले कितने बार कहा कि गाड़ी के शीशों पर 'काली फिल्म' चढ़वा लो, इन सब चिक-चिक से छुटकारा मिलेगा. हटाओ इसे यहां से, वैसे भी हम लेट हो रहे हैं, ड्राइवर ने तुरंत बच्ची को हड़का दिया, बच्ची सहमकर दूर हो गई. ’महोदय' पुनः विस्मृत कर गए कि ‘बाल-दिवस' इस बच्ची का भी है. 'महोदय' के पी.ए. साथ ही में बैठे थे वे चुपचाप बच्ची को झिझककर गाड़ी से दूर होते हुए देखते रहे. तभी 'महोदय' का मोबाईल बज उठा. बच्चों का NGO चलाने वाले किसी सज्जन का फ़ोन था, रैली स्थल पर पहुँचते हुए उससे बच्चों के गिरते हुए शिक्षा के स्तर, उनके स्वास्थ्य, उनमें संस्कारों के अभाव और बड़े-बुज़ुर्गों के प्रति उनके उदासीन होते व्यवहार पर चिंता व्यक्त की गई, पार्टी द्वारा उनके विकास और उत्थान के लिए बनाई जा रही अनेक योजनाओं पर चर्चा होती रही. आखिरकार बच्चे देश का भविष्य जो हैं, देश की भावी पीढ़ी के लिए प्रयास और प्रयत्न तो किये ही जाने चाहिए. 'महोदय' के पी.ए. बाजू में बैठे हुए सुबह से सारी घटनाओं/चर्चाओं को देख-सुन रहे थे और मन ही मन सोच रहे थे कि जिसमें स्वयं कोई नैतिकता नहीं, जिसमें स्वयं संस्कारों का अभाव हो, जो स्वयं बच्चों के प्रति तिरस्कार का भाव रखता हो, देश का भविष्य ऐसे हाथों में है, कैसी विडम्बना है?

चूँकि पी.ए.साहब स्वयं एक अधेड़ उम्र के, उच्च शिक्षित, अनुभवी, सुलझे हुए और सेवाभावी व्यक्ति हैं अतः जब उन्होंने ये सारा वाकया सुनाया तो मैंने उनसे कहा कि आप ही बताएं, हम 'बाल-दिवस' क्यों और कैसे मनाएं, जिससे सचमुच में बच्चों का भला हो सके. उसके बाद हमारी विस्तार से जो चर्चा हुई वो आप सभी के साथ साझा कर रही हूँ. वो कहने लगे - प्रतिवर्ष 14 नवंबर को हम 'राष्ट्रीय बाल-दिवस' और 20 नवंबर को 'अंतर्राष्ट्रीय बाल-दिवस' के रूप में मनाते हैं, इस तरह से नवंबर का महीना ग्लोबली बच्चों को समर्पित है. हर वर्ष बाल-दिवस पर ऐसे अनेकों सरकारी व गैर-सरकारी आयोजन होते हैं जिनमें बच्चों के हितार्थ ढेरों योजनाओं, सुविधाओं का वादा किया जाता है. जिनमें से कुछ तो पूरे हो जाते हैं और कुछ ठंडे बस्ते में चले जाते हैं. मेरा ये दृढ विश्वास है कि बचपन की मजबूत बुनियाद ही सुरक्षित भविष्य का निर्माण करती है. किसी भी राष्ट्र के उज्जवल भविष्य के लिए बचपन का सम्पूर्ण रूप से पल्ल्वित और प्रस्फुटित होना नितांत आवश्यक है. पी.ए.साहब गंभीर होते हुए बोले -रैलियां निकलती रहेंगी, उदघाटन होते रहेंगे और नाच-गाने चलते रहेंगे, मूल बात है बच्चों के कल्याण की, उनके सुरक्षित भविष्य की. इसके लिए आज मैं आपको कुछ ऐसे ही अनमोल उपहारों के बारे में बताऊंगा जिन्हें अगर हम अपने बच्चों को दे सकें तो न केवल वर्तमान की, बल्कि भविष्य में आने वाली कई पीढ़ियां भी उनसे लाभान्वित होती रहेंगी. सर्वप्रथम किसी भी दिवस को मनाने के पीछे का उद्देश्य मालूम होना चाहिए.

बाल दिवस का उद्देश्य -

कोई भी राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय दिवस के आयोजन का मुख्य उद्देश्य आम नागरिकों को उस ‘मुद्दे विशेष’ के प्रति जागरूक करना, उसे सफल बनाने में आने वाली समस्याओं को पहचानना और सबके सम्मिलित प्रयासों से उनका समाधान ढूंढना. ताकि एक ऐसे मजबूत समाज का निर्माण किया जा सके जहां ऊँच-नीच, अमीर-गरीब, छोटे-बड़े, पढ़े-लिखे या अनपढ़, शहरी या ग्रामीण, लड़का या लड़की में कोई भेदभाव न हो; सबको अपने अधिकारों के साथ-साथ, देश व समाज के प्रति अपने कर्तव्यों का भी पूरा अहसास हो. बाल दिवस के आयोजन का उद्देश्य भी जाति-धर्म, लिंग और भाषा के परे सभी बच्चों के हितों की रक्षा करना और उन्हें उनके मूलभूत अधिकारों यथा - स्वतंत्रता, समानता, शिक्षा, भोजन आदि से वंचित न होने देना है. इस उद्देश्य को पूर्ण करने में न केवल माता-पिता और शिक्षक बल्कि राजनेता, सामाजिक संस्थाएं, धर्मगुरु, मीडिया और बड़े कॉर्पोरेट घराने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं.

अच्छा स्वास्थ्य, विजय का द्वार

बात शुरू करते हैं अच्छे स्वास्थ्य से. बढ़ती उम्र के बच्चों को उचित वैचारिक खुराक के साथ ही भरपूर मात्रा में न्यूट्रीशस भोजन की उपलब्धता भी सुनिश्चित की जानी चाहिए क्योंकि एक कमज़ोर या कुपोषित शरीर कभी भी पढ़ाई-लिखाई में या अन्य किसी गतिविधियों में सक्रिय रूप से अपनी पूर्ण क्षमता के साथ भागीदारी नहीं कर सकता. यह हर अभिभावक का कर्तव्य है कि बच्चों का खाना शुद्ध हो, उसमें सभी आवश्यक प्रोटीन्स, विटामिन्स, मिनरल्स और अन्य पोषण आहार का उचित समावेश हो. इसके अलावा बच्चों में बेसिक हाईजीन को लेकर भी जागरूकता लाई जानी चाहिए. उचित साफ़-सफाई न रखने से भी कई बीमारियां फैलती हैं जो उनके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर डालती हैं. एक मानसिक व शारीरिक रूप से चुस्त-दुरुस्त बच्चा ही बड़े होकर देश एवं समाज को नई ऊंचाईयों पर ले जा सकता है.

शिक्षा किताबी न होकर कौशल आधारित हो

बढ़ते हुए बच्चों के रचनात्मक विकास के लिए स्किल आधारित शिक्षा अत्यंत महत्वपूर्ण है. शिक्षा व्यवस्था ऐसी हो, जिसमें कोरा किताबी ज्ञान ना हो जो ज़िन्दगी के प्रति प्रैक्टिकल अप्रोच रखना सिखाये. शिक्षित होकर बच्चों की रचनात्मकता को नए आयाम मिलें. वे संगीत, नृत्य, खेल, चित्रकला या अपनी अभिरुचि के किसी भी अन्य क्षेत्र या विषय में पारंगत होकर अपनी आजीविका चुन सकें और अपने कौशल से देश और समाज में कुछ योगदान कर सकें तभी उनकी शिक्षा सार्थक होगी.

उचित जीवन शैली का चुनाव

महान अर्थशास्त्री चाणक्य के अनुसार व्यक्ति के उत्तम चरित्र निर्माण एवं उज्जवल भविष्य हेतु प्रयास बचपन में ही किये जाने चाहिए और इसके लिए उन्हें उचित शिक्षा व अनुशासित जीवन शैली अपनाने पर जोर दिया जाना चाहिए. बाल्यावस्था कच्ची मिट्टी के समान होती है जिसे माता-पिता व शिक्षक रुपी कुम्हार मनचाहे आकार में ढाल सकते हैं. हमारे बड़े-बुज़ुर्गों का ये कथन है कि परिणामों की चिंता किए बगैर अगर बच्चे अपना कार्य करेंगे तो मानसिक स्तर पर अधिक मज़बूत, आत्मविश्वासी और कार्यकुशल बनेगें क्योंकि वर्तमान समय की अति व्यस्त और भागदौड़ भरी जीवन शैली स्ट्रेस, एंग्जायटी और टेंशन को बढ़ावा देती है जो अनेकानेक बीमारियों को सीधा-सीधा निमंत्रण है. यदि बचपन से ही योग, व्यायाम और सही जीवन पद्धति को अपनाने पर ज़ोर दिया जाए तो बच्चे न केवल शारीरिक बल्कि दिमागी तौर पर भी मज़बूत बनेगें और एक जिम्मेदार नागरिक के रूप में विकसित होंगे.

बचपन के दिन भुला न देना

बचपन! विश्व का शायद ही कोई व्यक्ति होगा जो इसकी मधुर, अविस्मरणीय स्मृतियों से अछूता हो. जो निश्छल, निःस्वार्थ, सहजता, चंचलता, मासूमियत उम्र के इस दौर की पहचान होती है वह उम्र बढ़ने के साथ-साथ गायब होती जाती है और जीवन की आपा-धापी में हम दिन-प्रतिदिन उलझते चले जाते हैं. अपने मूलभूत अधिकारों की चर्चा तो हम सभी करते हैं लेकिन अपने इन मूलभूत गुणों को विस्मृत करते चले जाते हैं और इसका हमें रत्ती भर भी एहसास नहीं होता है अतः हम बड़ों में भी बचपना बना रहे उसके प्रयास किये जाने चाहिए और अभ्यास से ही सही, इन गुणों का पोषण किया जाना चाहिए.

बच्चों के कल्याण हेतु उठायें संकल्प

आईये, हम और आप ये संकल्प लें कि न केवल वर्तमान के, बल्कि भविष्य के जन्म लेने वाले बच्चे भी इस पृथ्वी पर सुरक्षित जीवन-यापन कर सकें इस हेतु हम प्राकृतिक संसाधनों का दुरूपयोग नहीं करेंगे, नियमित वृक्षारोपण करेंगे, हर प्रकार के प्रदूषण को नियंत्रित रखने की कोशिश करेंगे, खेतों में अनावश्यक रसायनों के प्रयोग से बचेंगे और अपने पर्यावरण को संरक्षित रखने का भरपूर प्रयास करेंगे ताकि ये धरती, आने वाली कई सदियों तक हमारे बच्चों के साथ यूँ ही हंसती खिलखिलाती आबाद रहे. बाल-दिवस पर बच्चों को, हम बड़ों की ओर से इससे अनमोल उपहार और कुछ नहीं हो सकता. पी.ए. साहब की बातों की गंभीरता और गहराई मुझे समझ आ गई थी सोचा, काश ऐसा विज़न और दूरदृष्टि रखने वालों के हाथों में अगर देश की बागडोर हो तो देश को विश्व पटल पर चमकने से कोई नहीं रोक सकता.

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