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खेलों का इतिहास मानव के अस्तित्व जितना ही पुराना है. खेल किसी भी देश की संस्कृति के वास्तविक संवाहक होते हैं. कभी मनोरंजन के लिए, कभी स्वास्थ्य के लिए, कभी पैसे के लिए तो कभी राजनीतिक आकाँक्षाओं की पूर्ति के लिए मनुष्य खेल खेलता आया है. वर्तमान में, विश्व में खेले जाने वाले ऐसे अनेकानेक खेल हैं जिनका प्रादुर्भाव भारत में ही हुआ. ये खेल प्रागैतिहासिक काल से आधुनिक काल तक विकास और विस्तार की अनेकों अवस्थाओं से गुजरते हुए आज अपने वर्तमान स्वरुप में प्रचलित हैं. हमारे प्राचीन ग्रंथों में आखेट, चौपड़, द्यूतक्रीड़ा, मल्ल-युद्ध, चतुरंग (वर्तमान शतरंज), निशानेबाजी, तीरंदाजी, कुश्ती, तलवारबाजी, भालेबाज़ी, घुड़दौड़, रथदौड़ और पालतू पशु-पक्षियों की लड़ाई जैसे विभिन्न खेलों की जानकारी उपलब्ध है. प्राचीन राजा-महाराजा यहां तक कि देवी देवता भी कई तरह के खेलों का आयोजन करते थे क्योंकि ये खेल मनोरंजन के साथ-साथ ऐसे शक्ति प्रदर्शन का जरिया भी हुआ करते थे जिसके माध्यम से अपने प्रतिद्वंदी पर दबदबा कायम किया जाता था. अगर हम अपनी अतीत की गौरवशाली सभ्यता के इतिहास के पन्नों को पलटें तो हमें ऐसे अपरिमित उदाहरण मिलेंगे जो इस तथ्य की पुष्टि करेंगे कि आधुनिक समय में खेले जाने वाले अनेक खेलों का जन्मदाता भारत ही है. इसके परे अगर हम अपनी स्मृतियों में झांके तो पाएंगे कि वीडियो गेम्स और मोबाईल गेम्स आने के पहले तक बचपन में खेले जाने वाले खेल गिल्ली-डंडा, पिट्ठू या टीपू, चोर-सिपाही, छुपन-छुपाई, कंचे, खो-खो, रस्सी कूदना, लंगड़ी, आँख-मिचौली आदि हुआ करते थे. 

बिना किसी मंहंगे संसाधनों और उपकरणों के खेले जाने वाले ये खेल कितने जीवंत और आनंद से परिपूर्ण होते थे. किसी भी छोटे-मझौले शहर में शाम को चिल्लाते, शोर मचाते हुए हुड़दंगी बच्चों की टोलियां का, मोहल्ले की गलियों में एक छोर से दूसरे छोर तक दौड़ते-भागते नज़र आना एक आम दृश्य था. बिना किसी प्रतिद्वंदिता या होड़ के हम बच्चे कितने निस्पृह, निस्वार्थ और निर्भीक भाव से उस एक-एक पल को जीते थे और अगले दिन कैसे खेलना है, कौन किस की टीम में रहेगा और किस को नहीं खेलने देना है इसकी रणनीतियां बनाते हुए है हम अपने आप को किसी 'प्लानिंग कमीशन' के सदस्यों से ज़रा भी कमतर नहीं आंकते थे. गर्मियों की पूरी छुट्टियां ही इन खेलों को समर्पित रहती थीं. बस इतना ज़रूर होता था कि गर्मियों में इन खेलों की लिस्ट में 2-3 खेल और जुड़ जाते थे यथा - ताश, अंताक्षरी, साईकिलिंग और हाँ एक लाइब्रेरी भी जिसमें कुछ 15-20 किताबें होती थीं- कुछ बाल पॉकेट बुक्स, चंदा मामा, चम्पक, पराग और इंद्रजाल कॉमिक्स. जिनको मोहल्ले के बच्चे, उपलब्धता के अनुसार, अपने घरों से लाकर लाइब्रेरी में जमा करते और फिर एक-दूसरे के साथ शेयर करते थे. इन रोज़मर्रा के खेलों में हार-जीत का उतना ही महत्त्व हुआ करता था जितना किसी राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता में हुआ करता है लेकिन मैदान से बाहर कदम रखते ही सब 'एक माया एक राम' वाली कहावत को चरितार्थ करते हुए एक हो जाते थे. कितना सहज और सरल हुआ करता था सब कुछ. लेकिन वर्तमान परिदृश्य इसके उलट हो चुका है, आज खेलों का स्वरुप ही बदल गया है. सिर्फ खेलने के लिए ही इन्हें नहीं खेला जाता है बल्कि ये अब अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्धि और पैसा पाने का भी ज़रिया बन चुके हैं. किसी एक कैलेंडर वर्ष में होने वाली विभिन्न वैश्विक प्रतियोगिताओं में भागीदारी करके आज खिलाड़ी नाम व दाम दोनों ही कमा रहे हैं लेकिन ये सब इतना आसान कतई नहीं है, इस हवन में वर्षों की लगन, कठोर परिश्रम, समुचित प्रशिक्षण और पैसा सभी की आहूति देना पड़ती है तब जाकर यह ‘खेल यज्ञ’ पूर्ण होता है और मनवांछित परिणाम की प्राप्ति होती है. गलाकाट प्रतिस्पर्धा हो चुकी है, रोज़ रिकार्ड्स बनते और टूटते हैं. सेकण्ड्स के सौंवे हिस्से से हार-जीत का फैसला होता है. खेलों में जीत को लेकर विश्व के अनेक देशों में लोगों की ज़िद व जूनून चरमोत्कर्ष पर है. वहां खेल के मैदान में 'करो या मरो' की उक्ति का शब्दशः पालन किया जाता है. इसके विपरीत खेलों को लेकर हम लोगों की धारणा शायद कुछ अलग है. 

खेलते समय खेल भावना से भरे हुए हम उमंग और उत्साह से भरपूर रहते हैं लेकिन जान लगाकर जीतने का जूनून (खेल के मैदान में) शायद कुछ कम पड़ जाता है और यही वजह है कि 135 करोड़ के लगभग आबादी होने के बावजूद वैश्विक स्तर पर हमारा प्रदर्शन चार-छह खेलों या कुछ चुनिंदा खिलाड़ियों को छोड़ दिया जाए तो आमतौर पर उल्लेखनीय नहीं रहता है. लेकिन उम्मीद का दामन नहीं छोड़ना चाहिए, परिस्थितियां शनैः-शनैः करवट बदल रही हैं वो समय भी अब करीब है जब अन्य क्षेत्रों की तरह खेलों में भी विश्व पटल पर हमारा परचम लहराएगा. फैज़ अहमद फैज़ का ये शेर यहां एकदम उपयुक्त है कि,

'दिल ना उम्मीद तो नहीं नाकाम ही तो है, लंबी है ग़म की शाम मगर शाम ही तो है.'
 निश्चित तौर पर खेल जगत में आने वाला कल हम भारतीयों का ही होगा.

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