श्रीमद भगवद्गीता में श्रीकृष्ण और अर्जुन के बीच संवाद के माध्यम से जीवन, कर्म, ज्ञान और मोक्ष के बारे में गहन तत्वज्ञान प्रस्तुत किया गया है। तत्वज्ञान अर्थात ब्रह्म, आत्मा और संसार विषयक यथार्थ का ज्ञान अथवा जानकारी। यह हमें अपने बारे में, दुनिया के बारे में और अपने संबंधों के बारे में सोचने के लिए प्रोत्साहित करता है। इससे हमें जटिल समस्याओं को समझने और उनके समाधान खोजने में मदद मिलती है। यह हमें विभिन्न दृष्टिकोणों और विचारों का मूल्यांकन करने में समर्थ बनाकर हमारी सृजनात्मकता और कल्पनाशीलता में भी वृद्धि करता है। अंतरिक्ष से वापिस लौटे हमारे अंतरिक्ष यात्री जाने-अनजाने ही इसी तत्वज्ञान से प्रेरित नजर आए। जानना चाहते हैं कैसे? तो चलिए मेरे साथ-
‘नासा’, संयुक्त राज्य अमेरिका की एक सरकारी अंतरिक्ष एजेंसी है जो एरोनॉटिक्स और अंतरिक्ष में चलाए जा रहे विभिन्न कार्यक्रमों और अनुसंधानों के लिए जिम्मेदार है। ‘नासा’ का पिछला अंतरिक्ष अभियान जो मात्र 8 दिनों तक चलना था, तकनीकी खराबी के चलते 286 दिनों तक खिंच गया लेकिन वो कहते हैं न कि ‘अंत भला सो सब भला’, बस ऐसा ही कुछ इस पूरे प्रसंग में हुआ।
सोशल मीडिया के इस दौर में अब ये कहानी बच्चे-बच्चे की जुबान पर है कि अनुभवी अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स और बुच विल्मोर , 5 जून, 2024 यानी कि गत वर्ष अंतिरिक्ष में मिशन पर पहुंचे। उन्होंने अमेरिका के केप कैनेवेरल के कैनेडी स्पेस स्टेशन से बोइंग के स्टारलाइनर स्पेसक्राफ्ट में एटलस वी रॉकेट के जरिए इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन के लिए उड़ान भरी। जहाँ सिर्फ 8 दिन रुककर उन्हें कुछ नवीन प्रयोग करने थे और फिर पृथ्वी पर वापिस आ जाना था, किन्तु दुर्भाग्यवश, वहाँ उन्हें अंतरिक्ष में बिखरे मलबे के खतरे, हीलियम लीक और उस स्टारलाइनर स्पेसक्राफ्ट के प्रोपल्शन सिस्टम में तकनीकी गड़बड़ियों का सामना करना पड़ा है, जिस पर वे यात्रा कर रहे थे। इस वजह से वे वहीं स्पेस स्टेशन में ही अटककर रह गए। आसान तो ये बिल्कुल भी नहीं था कि अंतरिक्ष में, एक कैप्सूल में 9 महीने न केवल जिंदा रहा जाए बल्कि अपने मानसिक हालात अर्थात होशो-हवास भी सही-सलामत रखे जाएँ क्योंकि आपको वहाँ सिर्फ समय (वो भी अनिश्चितकालीन) ही नहीं काटना था, अपितु जिस उद्देश्य के लिए आप वहाँ गए थे उसे संज्ञान में रखते हुए मानवमात्र के कल्याण हेतु नए-नए प्रयोग और शोध भी करना थे। कितना धैर्य, आत्मसंयम, आत्मबल लगा होगा खुद को अडिग व स्थिर रखने में…! एकदम अकल्पनीय एवं अविश्वसनीय! कहाँ से लाए होंगे इतना अदम्य साहस, इतनी दृढ़ता? ये प्रश्न भी अत्यंत विचारणीय और मनन करने योग्य है। जो स्वतः पृथक शोध का विषय है। वैज्ञानिकों और मनोवैज्ञानिकों से विनम्र अनुरोध है कि ज़रा इस ओर भी गौर करें ताकि हमारी वर्तमान और आने वाली पीढ़ियाँ इस शोध से लाभान्वित हो सकें।
बहरहाल, श्री विल्मोर और सुश्री विलियम्स की इस असहाय अवस्था ने सम्पूर्ण दुनिया का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट किया और "काम पर अटके" रह जाने के लिए एक नए मुहावरे का प्रादुर्भाव हुआ जिसे "बुच और सुनी" कहा जाने लगा। यानि अगर आपको मजबूरीवश, मन-मारकर कहीं रुकना पड़ रहा है तो इसे वाक्य में यूं प्रयोग करेंगे कि “भई, ऑफिस में आजकल इतना ज्यादा काम है कि हम तो बुच और सुनी हो गए।“ जबकि इसके पूर्व भी बहुतेरे अंतरिक्ष यात्रियों ने अनेकों बार अंतरिक्ष में उड़ानें भरी थीं लेकिन किसी को भी इतनी अनिश्चितता से नहीं जूझना पड़ा या अपने मिशन की अवधि को इतना अधिक बढ़ते हुए नहीं देखना पड़ा। अपनी वापसी में आई इस अनिश्चितता के मद्देनजर श्री विल्मोर और सुश्री विलियम्स ने जल्दी ही अंतरिक्ष स्पेस स्टेशन के क्रू सदस्य बनने का फैसला किया और अपनी पूरी ऊर्जा और ध्यान उन प्रयोगों को करने में लगा दिया, जिनसे अंतरिक्ष में मानव-जीवन के नए आयाम खुल सकें।
कुछ लोगों का कहना है कि सुनीता विलियम्स अंतरिक्ष में थीं लेकिन उनका मन धरती पर था, हालांकि मैं इस बात से सहमत नहीं हूँ क्योंकि बेमन कोई इतने दिनों तक इस तरह की महाविकट परिस्थितियों से जूझने का जज्बा नहीं रख सकता। कोई माने या न माने मेरा ऐसा यकीन है कि दोनों अंतरिक्ष यात्री अनजाने ही गीता के सिद्धांतों का अक्षरशः पालन कर रहे थे। एक खास बात आपको याद दिला दूँ कि जब सुनीता विलयम्स बतौर फ़्लाइट इंजीनियर पहली बार पर 11 दिसंबर 2006 से लेकर 22 जून 2007 तक इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर रहीं तो इस अंतरिक्ष मिशन पर वे अपने साथ भगवद्गीता की एक प्रति लेकर गईं थीं। जो यकीनन प्रतीकात्मक तो बिल्कुल भी नहीं थी। स्पेस स्टेशन में उनके रुकने की पूरी अवधि के दौरान यदि उनके क्रियाकलापों, उनके विचारों का सूक्ष्म विश्लेषण किया जाए तो उनमें आश्चर्यजनक रूप से गीता के उपदेशों से सामंजस्य पाएंगे।
सर्वविदित है कि मानव कल्याण ही भगवत गीता का प्रमुख उद्देश्य है। श्रीकृष्ण कहते हैं कि प्रत्येक मनुष्य को अपने कर्तव्यों का पालन करते समय मानव कल्याण को प्राथमिकता देना चाहिए। पृथ्वी पर अपनी वापसी के टलने के बावजूद दोनों अंतरिक्ष यात्रियों ने वहाँ सैंकड़ों प्रयोग किए जो प्राणीमात्र के कल्याण के लिए ही किए गए।
गीता के अनुसार कर्म करने में ही मनुष्य का अधिकार है उसके फल में नहीं। अतः नि:स्वार्थ भाव से ‘कर्म के अधिकार’ का सदुपयोग किया जाना चाहिए। 9 महीने अंतरिक्ष यात्रियों ने स्पेस स्टेशन पर क्या किया? अंतरिक्ष स्टेशन की मरम्मत की, उसकी देखभाल और सफाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। फुटबॉल के मैदान के आकार का यह स्टेशन निरंतर रखरखाव की मांग करता है। उन्होंने पुराने उपकरणों को बदलने में भी मदद की। 900 घंटे रिसर्च की। 150 से अधिक वैज्ञानिक प्रयोग किए। 9 बार स्पेसवॉक किया,...पुन:श्च गीता के उपदेशों का अनुपालन।
गीता कहती है - मनुष्य को जीवन की चुनौतियों से भागना नहीं चाहिए और न ही भाग्य और ईश्वर की इच्छा जैसे बहानों का प्रयोग करना चाहिए। दोनों अंतरिक्ष यात्रियों के लिए ये 9 महीने सिर्फ समय नहीं था, बल्कि हर पल अपने इरादों को और मजबूत करने की घड़ी थी। जब तकनीकी खराबी ने उनकी धरती पर वापसी की राह कठिन बना दी, तब भी उन्होंने हार नहीं मानी। हर दिन, अपने अंदर के डर को हराकर, खुद को संभाला, अपना काम जारी रखा और मन में भरोसा बनाए रखा—"हम लौटेंगे !" अपने लंबे मिशन के दौरान, उन्होनें मानसिक व शारीरिक सक्रियता बनाए रखी।
गीता में अहंकार को त्यागने और विनम्रता के महत्व पर बल दिया गया है। अमेरिका में चल रहे राजनीतिक तूफान के बीच फँसी हुई अपनी वापसी के दरमियान, दोनों अंतरिक्ष यात्रियों ने पदानुकूल गरिमा और शालीनता बरकरार रखी, कभी भी कोई सार्वजनिक बयान या झल्लाहट व्यक्त नहीं की, योग और ध्यान के द्वारा एक समान सकारात्मक और ऊर्जावान रवैया बनाए रखा, किसी पर कोई दोषारोपण नहीं किया वरन विनम्रता के साथ इस बात पर जोर दिया कि वे नासा के साथ हैं और नासा के निर्णयों के समर्थन में हैं, जो भी निर्णय लिया जाएगा वह राष्ट्र एवं उनके हित में ही होगा। अपनी संस्था के प्रति ऐसी वफादारी रखना भी कमाल है।
यहाँ हम भूलोकवासी अपने-अपने ढंग से ईश्वर को मनाने में जुटे हुए थे। उनकी वापसी से पहले के महीनों में अमेरिका में 21 हिंदू मंदिरों में प्रार्थना की गई, ह्यूस्टन में विल्मोर के बैपटिस्ट चर्च में भी उनकी सुरक्षित वापसी के लिए प्रार्थना की गई। सुनीता विलियम्स के भारत स्थित पैतृक गाँव में भी पूजन-हवन एवं प्रार्थनाएं हुईं।
ये सार्वभौमिक सत्य है कि ईश्वर ने मनुष्य को असीमित क्षमताओं से नवाज़ा है हालांकि इंसान की इस अद्भुत कला का प्रदर्शन यदा-कदा ही देखने को मिलता है लेकिन जब भी यह प्रदर्शित होती है उस परम पिता परमेश्वर की अनंत ब्रह्माण्डीय शक्तियों पर स्वतः ही विश्वास और गहरा व दृढ़ होता जाता है। 19 मार्च 2025 को ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति ‘मानव’ की इसी अभूतपूर्व सामर्थ्य का साक्षी पूरा संसार बना। अपलक, सांस थामकर सबने अंतरिक्ष यात्रियों की पृथ्वी पर वापसी का ऐतिहासिक नज़ारा देखा। यह कमाल कर दिखाया एलन मस्क की कंपनी SpaceX ने। SpaceX का फाल्कन 9 रॉकेट अन्तर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन तक पहुंच गया और इसके साथ ही अंतरिक्ष यात्रियों की सकुशल ‘घर वापसी’ का मार्ग प्रशस्त हो सका। एलन मस्क की काबिलियत गजब की है, उनकी तकनीक ने मुश्किल आसान कर दी। ये मिशन उनकी ताकत और अंतरिक्ष की दुनिया में SpaceX के रुतबे को दिखाता है। आमजन के बीच उनकी छवि सुपरमैन वाली हो गई। मस्क भी अपने उद्धरणों में यदा-कदा गीता का संदर्भ देते रहते हैं।
कुल मिलाकर, एक असफल होते, लगभग दम तोड़ते मिशन के आश्चर्यजनक रूप से सफलता में तब्दील होने से समूची वैज्ञानिक बिरादरी ने निस्संदेह बहुत कुछ सीखा होगा। इस तरह अचानक आ जाने वाली, असंभव सी लगने वाली तकनीकी खामियों से भविष्य में कैसे बचा जाए इस पर नासा में शोध और विमर्श प्रारंभ हो चुके होंगे, परंतु अंतरिक्ष यात्रियों की ‘सकुशल घर वापसी’ ने यह स्पष्ट संदेश सम्पूर्ण विश्व को दे दिया कि हमें हर परिस्थिति में अपनी जड़ों से जुड़े रहना चाहिए, जहाँ भी रहें, जो भी कार्य करें, तन को स्वस्थ और मन को संतुलित रखते हुए उसमें अपना 100% लगा दें, परिणाम की चिंता किए बगैर क्योंकि श्रीमद भगवद्गीता कहती है –
इति!!!