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कष्ट और दुःख दो अलग-अलग परिस्थितियां हैं. गरीब व्यक्ति कष्ट में होता है, दुःख में नहीं जबकि अमीर आदमी दुःख में होता है कष्ट में नहीं. ऐसा इसीलिए क्योंकि कष्ट का मतलब है - अभाव और दुःख का मतलब है - भाव. सारा खेल यही है थोड़ा सा गहराई में जाकर अगर सोचें तो सारी स्थिति स्वतः स्पष्ट हो जायेगी. कष्ट शारीरिक होता है और दुःख मानसिक. गरीब व्यक्ति को क्या कष्ट हो सकता है? जीवन यापन से सम्बंधित कष्ट, भूख और बीमारी का कष्ट, रोज़मर्रा की छोटी-छोटी ज़रूरतें पूरी न हो पाने का कष्ट. परन्तु अमीर के दुःख क्या हैं? दो पल सोचिये तो ज़रा. बिज़नेस में मन-माफ़िक मुनाफा न होना, दुःख का एक बड़ा कारण है यानि मुनाफा तो हुआ है पर मन-माफिक नहीं. स्वाभाविक है भई...दुःख तो होगा ही. देश के टॉप 50 अमीर लोगों की लिस्ट में आप नहीं आ पाए आपका नाम 51 वें नंबर पर था....फिर दुःख का एक कारण. गरीब के कष्ट अर्थात अभाव तो मेहनत-मज़दूरी से दूर हो सकते हैं, सही कमाई का जरिया बनने से दूर हो सकते हैं परन्तु अमीर के दुःख अर्थात भाव का क्या वो कैसे दूर होगा? उसके लिए अपने मन पर काम करना होगा क्योंकि "मन चंगा तो कठौती में गंगा". तर्क संगत बुद्धि के उपयुक्त इस्तेमाल से, सही और व्यवस्थित सोच से इस दुःख के भाव से निजात पा सकते हैं. दुःख का भाव इसलिए कह रही हूँ क्योंकि वास्तव में इस बात में तो कोई दुःख है ही नहीं न. लाखों-करोड़ों लोग अब भी ऐसे हैं जो आपके नीचे या पीछे हैं उन्हें देखकर खुश होने के बजाय आप अपने आगे के 50 लोगों को देखकर दुखी हैं. मतलब साफ़ है इस पोज़िशन तक आने के लिए आपने जो मेहनत की है, जो त्याग और परिश्रम किया है दुःख के भाव में आकर आप उसी को नकार रहे हैं. इसीलिए जनाब, अपने दिमाग को सही मैसेज दीजिये और अपनी सोच को दुरुस्त कीजिये... बाकी चीज़ें अपने आप लाईन पर आ जाएंगी. भाव और अभाव दोनों दूर होंगे अगर हम अपनी सोच की दशा और दिशा सही रखें तो !

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