क्या है मिनिमलिस्म ?
मिनिमलिस्म यानि न्यूनतमवाद या अतिसूक्ष्मवाद. ये शब्द अभी ज्यादा सुनाई देने लगा है और इसके मायने भी भौतिक से विस्तृत होकर वैचारिक और तार्किक हो गए हैं. मिनिमलिस्टिक होना अर्थात स्वेच्छा से कम में गुज़ारा करना लेकिन इसका तात्पर्य कंजूस होना कतई नहीं है. बल्कि अपनी प्राथमिकताओं और पसंदगी के बारे में चयनात्मक होना है. यह जीवन जीने के लिए एक सरल दृष्टिकोण रखने के लिए प्रोत्साहित करता है. इसका मुख्य उद्देश्य सादगीपूर्ण जीने के लिए अपने जीवन की तमाम अव्यवस्थाओं को समाप्त करना है. आवश्यकता से अधिक किसी भी विचार, वस्तु या व्यक्ति की मात्रा जब हमें अवांछनीय लगने लगे तो उसका तुरंत परित्याग करें यही मिनिमिलिस्म है.
मिनिमलिस्म का प्राचीन इतिहास
इस अवधारणा का प्रादुर्भाव अभी हुआ है ऐसा नहीं है. प्राचीन काल में हमारे ऋषि-मुनि जो आश्रमों में रहकर जीवन-यापन करते थे वो मिनिमलिस्टिक जीवन शैली का अद्भुत दृष्टान्त है. गुरुकुल की परंपरा शिष्यों को यही तो सिखाती थी कि कैसे न्यूनतम संसाधनों का उपभोग करते हुए जीवन निर्वाहन किया जाए ताकि वैचारिक और नैतिक रूप से समृद्ध और सुसंस्कृत होते हुए समाज व परिवार के प्रति अपने उत्तरदायित्वों को भलीभांति समझकर उनके उत्थान में अपना योगदान दे सकें.
कौन है मिनिमलिस्टिक ?
अतिसूक्ष्मवादी लोग ज्यादातर सादगी पसंद होते हैं, और वे सीधे-सीधे दो चरणों में काम करते हैं, सर्वप्रथम तो आवश्यक की पहचान करते हैं और फिर जो भी अतिरिक्त है उसे अलग कर देते हैं. दूसरे शब्दों में कहें तो 'अति सर्वत्र वर्जयेत' - अति हर चीज़ की बुरी है. ज्यादा खाना, ज्यादा पीना, ज्यादा सोना हमारे तन के लिए घातक है, ज्यादा क्रोध, ज्यादा ईर्ष्या, ज्यादा निंदा हमारे मन के लिए घातक है, जरूरत से ज्यादा खर्च या खरीददारी, ज्यादा ऋण या उधार हमारे धन के लिए घातक है. अतएव जो इन पर नियंत्रण कर लेते हैं वे ही मिनिमिलिस्टिक हैं. इस धारणा से हम कितना सुलझ जाएंगे आप इसकी कल्पना भी नहीं कर सकते. मिनिमलिस्टिक सोच सिर्फ भौतिक वस्तुओं के सन्दर्भ में होती है, ऐसा नहीं है हमारे विचार और व्यवहार भी मिनिमलिस्टिक हो सकते हैं.
इसके फायदे व आपदा में वित्तीय प्रबंधन
यह हमको हमारे वित्तीय लक्ष्यों का एक स्पष्ट विचार प्राप्त करने में मदद करता है. अपने तुच्छ और बेमतलब के खर्चों में कटौती कर हम भविष्य और आपात स्थितियों के लिए पर्याप्त धन संचय कर सकते हैं. मिनिमलस्टिक दृष्टिकोण हमें बताता है कि हमारे लिए वाकई में क्या और कितना महत्वपूर्ण है. ये हमारी ज़िन्दगी को पूरी तरह बदल कर रख देगा और ये बदलाव सकारात्मक होगा. आप ज़रा सा दिमाग पर ज़ोर डालेंगे तो पाएंगे कि कई बार तो हम सिर्फ दिखावे के लिए अनावश्यक वस्तुओं का अंबार घर पर लगा लेते हैं, उसके बाद शुरू होती है उसके रख-रखाव की जद्दोज़हद. जो आजकल एक बड़ी समस्या बनती जा रही है. यानि पैसा, ऊर्जा और समय तीनों की बर्बादी. यही ऊर्जा और समय यदि हम ज़िन्दगी के किसी अनुभव को लेने में लगाएं तो क्या ये बेहतर नहीं होगा? इसी पैसे को यदि भविष्य को सुरक्षित करने हेतु निवेश किया जाए तो क्या ये उपयुक्त नहीं होगा?
रिश्तों में भी मिनिमलिस्म
मैं तो कहूँगी कि आपसी संबंधों में भी मिनिमलिस्म को अपनाया जाना चाहिए. कई बार तो कुछ संबंधों को हम ताउम्र सिर्फ इसीलिए ढोते रहते हैं क्योंकि उसके साथ कोई रिश्ता जुड़ा रहता है भले ही उस रिश्ते से हमें पूरी ज़िन्दगी दुःख या तकलीफ ही क्यों न मिली हो. पारिवारिक या सामाजिक दोनों ही स्तर पर काम करते हुए उन लोगों से सम्बन्ध बढ़ाएं जिनसे हमारी मानसिक और वैचारिक आवृत्ति मिलती हो अर्थात जिनसे मिलकर, बात कर के हमें ख़ुशी मिलती हो, जिनके साथ समय व्यतीत करके हमें सुकून मिलता हो. ऐसे लोग चुनिंदा हो सकते हैं पर ज़िन्दगी गुलज़ार इन्हीं से होगी.
थोड़ा है थोड़े की ज़रुरत है
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में जब पूरी दुनिया कोविड-19 महामारी से जूझ रही है तब मिनिमलिस्टिक दृष्टिकोण या जीवन शैली और भी प्रासंगिक हो गई है. हमें स्वयं पर और अपने परिवेश पर ध्यान देना ही होगा और प्रयास करने होंगे कि स्वयं मिनिमलिस्टिक रहते हुए अपने आस-पास के लोगों को इस हेतु प्रेरित करें तभी बेफिक्री से ज़िन्दगी का असली लुत्फ़ उठा पाएंगे और गुनगुना सकेंगे – ‘थोड़ा है थोड़े की ज़रुरत है, ज़िन्दगी फिर भी यहाँ खूबसूरत है.’