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श्री राम के वनवास के बाद कुलगुरु के बुलावे पर जब भरत अपने ननिहाल से लौट कर अयोध्या आए तो वहां के हालात को देख कर विचलित हो उठे. उन्होंने महर्षि वशिष्ठ से पूछा प्रभु आप तो संसार के श्रेष्ठ मुनि व महाज्ञानी हैं आपने श्री राम के राजतिलक का ऐसा मुहूर्त कैसे निकाल दिया कि अनायास ही महाराज दशरथ की मृत्यु हो गई, श्री राम वनवास चले गए और पूरी अयोध्या छिन्न-भिन्न हो गई. यह सुन कर वशिष्ठ मुनि ने प्रत्युत्तर में कहा -

सुनहु भरत भावी प्रबल, बिलखि कहेहुँ मुनिनाथ |

हानि लाभ , जीवन मरण, यश अपयश विधि हाथ ||

जो नियति है वह इतनी प्रबल है उसे कोई पढ़ नहीं सकता. क्या नियत हुआ है हमारे लिए, हमारा भवितव्य क्या है ये हम जान नहीं पाते. रामायण में ये सीख है कि जब हम इस दुनिया में जन्म लेते हैं तो हमें कठिनाईयों का सामना करना ही पड़ता है, भले ही हम भगवान् क्यों न हों. जीवन जीने में आने वाली कठिनाईयां हमारा विनाश करने हेतु नहीं आती हैं बल्कि वो हमारी आंतरिक क्षमताओं से हमारा परिचय करवाती हैं, हमें अनुभव कराती हैं कि वास्तव में हम क्या हैं और क्या कर सकते हैं. हानि-लाभ, जीवन-मरण, यश व अपयश ये सब मनुष्य के हाथ में नहीं होता. हाँ, मनुष्य के हाथ में कर्म अवश्य हैं जिसपर उसका नियंत्रण होता है. इसीलिए हमारी सोच उसपर ही केंद्रित रहना चाहिए. हमारी इच्छाओं से ज्यादा सुन्दर ईश्वर की योजनाएं हैं, उसकी व्यवस्था पर यकीन रखें, दुखी, निराश या परेशान बिलकुल न होएं क्योंकि जो हमें मिल रहा है वही हमारे लिए बेहतर है, ये हम नहीं जानते पर देने वाला बखूबी जानता है. किसी ने सच ही कहा है “माना कि वक्त सता रहा है, पर कैसे जीना है ये भी तो बता रहा है.”

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