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कहते हैं कि नाम में क्या रक्खा है? कुछ भी रख लो, लेकिन मैं इससे इत्तेफाक नहीं रखती। ये नाम ही है जो आपके कुछ कहने या बोलने के पहले आपकी एक इमेज सामने वाले के मन-मस्तिष्क पर बना देता है। नाम ऐसा रखा जाना चाहिए जिसे सुनकर मिलने वाले व्यक्ति, वस्तु या घटना के बारे में आप उचित अनुमान लगा सकें, सही सोच निर्मित कर सकें, हाँ! यदा-कदा हमारा अनुमान गलत भी हो सकता है लेकिन फिर भी, सोच-विचारकर रखे गए नाम स्व-व्याख्यात्मक होते हैं और अपने बारे में बहुत कुछ कह जाते हैं।

हाल ही में भारतीय सेना द्वारा आतंकवाद के खिलाफ चलाए जा रहे अभियान के साथ कुछ ऐसा ही हुआ जिसे ‘ऑपरेशन सिंदूर’ नाम दिया गया। जब पहली बार यह नाम सामने आया तो सीधे दिल की गहराइयों में उतर गया क्योंकि सौभाग्य चिन्ह के रूप में सिंदूर की पवित्रता व प्रेम (जिस वजह से ‘ऑपरेशन सिंदूर’ शुरू हुआ) और एक योद्धा के माथे पर सजे सिंदूर का शौर्य व पराक्रम (जिसने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ को अंजाम तक पहुंचाया) दोनों के अद्भुत संयोग के साथ हमारी सेना के दृढ़ एवं मजबूत इरादे इसमें स्पष्ट परिलक्षित हो रहे थे। कितने चिंतन व मनन के बाद इस नाम पर सहमति बनी होगी? कितनी आहत भावनाएं, निर्भीक चेतनाएं और सकारात्मक ऊर्जाएँ इसमें समाहित हुई होंगी, जिस वजह से इस ऑपरेशन ने अपने सटीक नामकरण के साथ ही अपनी अभूतपूर्व सफलता सुनिश्चित कर ली थी। आतंकवाद जैसे निष्ठुर, जघन्य एवं निर्लज्ज कृत्य के लिए आंतरिक संवेदना से परिपूर्ण एवं सनातन संस्कृति में महत्वपूर्ण स्थान रखने वाले शब्द ‘सिंदूर’ के चयन को कोई सामान्य घटना मानने की भूल न करे, यह हमारे राजनेताओं और सैन्य अधिकारियों की एक सोची-समझी रणनीति का सुपरिणाम है।
22 अप्रैल 2025 को कश्मीर के पहलगाम में, पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवादियों ने जो कायरतापूर्ण घृणित कृत्य निर्दोष पर्यटकों के परिवारों के साथ किया उसने हम सभी देशवासियों को झकझोर कर रख दिया। जिसके प्रतिकार या कहें प्रतिशोध स्वरूप ‘ऑपरेशन सिंदूर’ का जन्म हुआ। आतंकवादियों और उन्हें पोषित करने वाले उनके आकाओं को यह बात अच्छे से समझ लेनी चाहिए कि उनके इस बर्बरतापूर्ण कांड की जवाबी कार्यवाही के रूप में हमारी भारतीय सेना द्वारा चलाए जा रहे इस ऑपरेशन को ‘सिंदूर’ नाम देने के पीछे हमारे देश के दूरदर्शी नेताओं की स्पष्ट एवं जमीन से जुड़ी विचारधारा थी, जिसके माध्यम से हमारी मर्माहत भावनाओं को, वीरता एवं शौर्य का सिंदूरी चोला पहनाकर यह संदेश न केवल पाकिस्तान वरन सम्पूर्ण विश्व को दिया और आतंकवाद के विरुद्ध अपने फौलादी मंसूबों को स्पष्ट कर दिया।
हमारे देश में सिंदूर का महत्व न केवल धार्मिक है बल्कि सामाजिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से भी यह महत्वपूर्ण है और इसे सार्वजनिक मान्यता प्राप्त है। विभिन्न देवी-देवताओं को अर्पित किया जाने वाले तिलक के रूप में, विवाहित भारतीय नारियों के अखंड सुहाग चिन्ह के रूप में, राजा-महाराजाओं के शौर्य एवं साहस के प्रतीक के रूप में यह प्राचीन काल से ही प्रचलित है और इसकी गाथा से हम भारतवासी ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण विश्व भी भलीभाँति परिचित है। सिंदूर हर भारतीय के लिए गर्व एवं गौरव का प्रतीक है, यह आपसी रिश्तों में निष्ठा एवं सुरक्षा को भी दर्शाता है और हमें रिश्तों के प्रति संवेदनशील बनाने के साथ-साथ मुश्किल समय में मजबूती से जोड़ने का काम भी करता है। पहलगाम की आतंकी घटना के पश्चात हमें ऐसी संवेदनशीलता के साथ ही एकजुटता और साहस भी बनाए रखने की नितांत आवश्यकता थी जो 'ऑपरेशन सिंदूर' से पूरी हुई।
‘ऑपरेशन सिंदूर’ ने सम्पूर्ण विश्व में हमारी सैन्य ताकत एवं तैयारियों का शानदार एवं जानदार प्रदर्शन करते हुए आतंकवादियों, उनके ठिकानों एवं उनके रहनुमाओं की जो दुर्दशा की है वो अब इतिहास के पन्नों में हमेशा-हमेशा के लिए स्वर्णाक्षरों में दर्ज हो चुकी है। वैसे तो हम भारतीय ‘वसुधैव कुटुंबकम’ के आदर्श और ‘विश्व शांति’ के सिद्धांत में विश्वास करते हैं और यही हमारी सनातन संस्कृति का वैशिष्ट्य भी है लेकिन यदि कोई देश या व्यक्ति हमें ऐसी कायराना आतंकवादी हरकतों से अकारण नुकसान पहुँचाएगा, हमारी सीमा के अंदर घुसपैठ करेगा या हमारे आंतरिक मामलों में दखलंदाज़ी करेगा तो उसे किसी भी सूरत में बख्शा नहीं जाएगा क्योंकि हम ऐसे उद्दंडों को राजनैतिक एवं सामरिक दोनों स्तरों पर मुँहतोड़ जवाब देने में सक्षम एवं समर्थ हैं। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के जरिए हमारी जल, थल एवं वायु सेनाओं के अतुलनीय पराक्रम के साथ ही हमारी सरकार की बुद्धिमत्तापूर्ण विदेशनीति एवं कूटनीति ने भी यह स्पष्ट संदेश विश्व को दे दिया। इसके साथ ही पहलगाम की घटना के उपरांत आम जन-मानस में जो दुख मिश्रित आक्रोश पनप रहा था उसका भी निवारण करने में 'ऑपरेशन सिंदूर' सफल रहा और हम देशवासी भारतीय होने पर अपने-आप को गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं।
विविधताओं से भरे हमारे देश में ऐसे कठिन अवसर पर सभी जाति-धर्म और स्तर के लोगों का जो आपसी सामंजस्य एवं सौहार्द्र देखने को मिला, विभिन्न राजनैतिक दलों ने भी सरकार के निर्णयों में अपनी तत्कालीन सहमति दिखाई वह वाकई काबिले-तारीफ रही।  यही वो समय था जब पूरे विश्व की नजरें हम पर लगी हुई थीं और हमारी एकता का प्रदर्शन करना अत्यावश्यक था।
दरअसल, किसी भी शांतिप्रिय राष्ट्र या सज्जन व्यक्ति की सहनशीलता और धीरज की एक सीमा होती है जिसके चलते वह अपने को नुकसान पहुंचाने वाले या उसके अंदरूनी मामलात में दखलंदाज़ी करने वाले राष्ट्र या व्यक्ति को नज़रंदाज़ करता है, उसे समझाने के प्रयास करता है लेकिन जब सामने वाला पक्ष उसकी इन समझाइशों को, उसकी कमजोरी समझने की भूल करता है और अपनी निकृष्ट हरकतों से बाज नहीं आता तो फिर उसे समय रहते उपयुक्त सबक सिखाना आवश्यक हो जाता है। ठीक वैसे ही जैसे भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत के एक प्रसंग में शिशुपाल की 100 गलतियों को अनदेखा करते हुए उसे हर बार समझाया, चेतावनी भी दी लेकिन इसके बावजूद जब उसने अपना दुर्व्यवहार जारी रखा तो उसकी 101 वीं गलती पर सुदर्शन चक्र का प्रयोग करते हुए भरी सभा में उसका वध कर दिया। बस ऐसी ही कुछ मिलती-जुलती कहानी के चलते हमारा ‘ऑपरेशन सिंदूर’ अस्तित्व में आया।
मैं इस लेख के माध्यम से हमारे देश की सेना के वीर जवानों को, उनके शौर्य एवं पराक्रम को सादर नमन करना चाहूँगी, जो देश की सीमाओं पर रात-दिन मुस्तैदी से तैनात रहते हैं ताकि हम देशवासी भीतर सुरक्षित एवं निडर महसूस करते हुए खुशहाल जीवन व्यतीत कर सकें।
समस्त देशवासियों को ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की सफलता पर अशेष शुभकामनाएं एवं बधाईयाँ।
जय हिन्द !!!
इति। 

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