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आज सुबह-सुबह छत पर टहलते हुए दलाई लामा का एक कथन जो अतीत की स्मृतियों में था, अचानक मस्तिष्क में कौंध गया कि,

“आप जिन्हें प्यार करते उन्हें उड़ने के लिए पंख दीजिये, लौटकर आने के लिए जड़ें दीजिये और वो हमेशा आपके साथ रहें इसके लिए ठोस वजहें दीजिये.”
कितनी सच बात है और वर्तमान परिप्रेक्ष्य में एकदम सटीक भी है खासतौर से अपने बच्चों के सन्दर्भ में. हम उन्हें ऊंची उड़ान के लिए पंखों के साथ साथ, छूने को अनंत आकाश दे रहे हैं पर क्या हमारी जड़ें अर्थात हमारे संस्कार इतने सशक्त और गहरे हैं कि वे उन्हें खींच कर वापस हमारे पास ला सकेंगे? या वे स्वयं हमारे पास वापिस आना चाहेंगे, उन तथाकथित ऊंचाइयों को मापने के बाद? प्रश्न विचारणीय है, चिंतनीय है, और कटु सत्य यह है कि इसका उत्तर भी हमारे पास ही है, बस हमें अपने गिरेबान में झांकना होगा कि क्या वाकई हमने उन्हें जीवन जीने के लिए आवश्यक नैतिक और पारिवारिक मूल्यों यथा प्रेम, दया, करुणा, त्याग, सौहाद्र, समन्वय, सहयोग आदि से उनका परिचय कराया है? यदि हमारा जवाब हाँ है तो जनाब मुस्कुराइए क्योंकि यही वो ठोस वजहें हैं जो उन्हें हमारे पास खींचकर वापस लाएंगी. क्योंकि मिलजुल कर, संग साथ रहकर सुख-दुःख बांटने का जो आनंद है वो अलौकिक है. इस वैश्विक महामारी के दौर ने तो और भी इस बात पर मोहर लगा दी है. अस्तु इस आनंद से कोई भी व्यक्ति वंचित ना रहे, परमात्मा से यही अभ्यर्थना है.

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