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ये सच है कि वर्तमान समय का पूर्णरूपेण 'डिजीटलीकरण' हो चुका है और निस्संदेह इसमें पूरा हाथ तकनीक का ही है. शॉपिंग हो या पढाई, बैंकिंग हो या मीटिंग, पैसे का लेन-देन हो या घर बैठे ही किसी डॉक्टर से सलाह लेनी हो ; सबकुछ ऑनलाइन हो गया है यानि तकनीक पर निर्भर हो चुका है. अब हम उच्चकोटि की तकनीक की बदौलत किसी भी काम को कम समय में, ज्यादा दक्षता व सरलता से अंजाम दे सकते है. उच्च स्तरीय स्मार्टफ़ोन्स और लैपटॉप्स ने हर घर की सूरत ही बदल कर रख दी है.किसी भी उम्र या तबके का व्यक्ति इसके प्रभाव से अछूता नहीं रह सका है. हालाँकि इस तकनीक ने हमारी रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में ऐसी घुसपैठ कर ली है कि अब हमें इसके बिना जीवन की कल्पना भी असंभव लगती है. घर के सदस्यों का ज्यादातर समय इन्हीं उपकरणों के साथ व्यतीत हो रहा है. बच्चे हों या बड़े सभी पर इसकी लत सामान रूप से हावी है, एक कमरे के किसी कोने में बैठे -बैठे इंसान पूरी दुनिया में घूम आता है और इस वर्चुअल दुनिया को ही वो असल समझ बैठता है, उसे किसीकी भी जरूरत महसूस नहीं होती क्योंकि उसे लगता है कि उसकी हर समस्या का हल तकनीक के माध्यम से ही संभव है. अपने सुख - दुःख को वो सोशल मीडिया पर ही शेयर करना उचित समझता है. इसी वजह से घर के सदस्यों के लिए उसके पास समय ही नहीं है. जबकि आपसी समझ, सहयोग और सहृदयता किसी भी परिवार का मूल आधार होते है, अतः यह सच है कि तकनीक ने हमें काफी आगे बढ़ा दिया है लेकिन अगर हम उपयुक्त संतुलन बना कर नहीं रख सके तो तकनीक का अत्यधिक इस्तेमाल हमारे परिवारों पर निश्चित रूप से भारी पड़ेगा और उन्हें बिखरने से हम खुद ही रोक नहीं पाएंगे |

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