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दशरथ तनय तुम्हारे हिय में
केवल ऋत औ न्याय रहे,
कैसे अनय हटे धरती से
यही सोच दिन रात रहे।

सत्य, शील, सौन्दर्य जगाने
जन जीवन से जुड़े रहे।
इसीलिए हे राम अमरता
अनुक्षण तेरे चरण गहे।

दशरथ तनय तुम्हारी करुणा,
सुरसरि सम तज शिखर बहे,
वर्गभेद तम फाड़ किरण सी,
जन जन की नित बाँह गहे।

राज छोड़कर अनुज प्रेम में,
वन वन भटके कष्ट सहे।
केवट, शबरी औ सुकंठ ने
तुमसे जीवन त्राण लहे।

दशरथ तनय तुम्हारे निर्णय
वैभव के विपरीत रहे,
जीत गए संग्राम आप पर
राज विभीषण बंधु लहे।

एक व्यक्ति का मान उठाने
चिर वियोग की अग्नि दहे।
हुआ कौन अभिराम, राम जो
युग बीते पर याद रहे। 

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