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मनुष्य सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में उपस्थित एक ऐसा प्राणी है जो इस धरती पर उपस्थित सभी प्राणियों में सर्वश्रेष्ठ है, मनुष्य ज्ञान और विज्ञान का सामूहिक परिणाम है, तथा मनुष्य के वे पांच अंग, जिनके माध्यम से प्राणियों को बाह्य जगत और उसकी वस्तुओं का ज्ञान प्राप्त होता है। जैसे – मनुष्य शिक्षा, विचार, चरित्र, प्रतिभा, योग्यता प्राप्त करके ,जो जीवन का प्रतिनिधित्व करता है , तथा मनुष्य के भीतर दृश्य प्रकाश प्रदान करता है सुन्दरता को निखारता है,जो विशेष रूप से मनुष्य के लिए आंतरिक प्रकृति के सराहनीय गुणों में से एक है, तथा प्रतिरुप की तरह उत्पन हो कर मानव दष्टि का संचार करता है| किसी विशेष उदेश्य की पूर्ति जैसे भौतिक समानता, व्यवहारिक तत्वौ संग्रहित कर अपने जीवन को नियंत्रण करने के लिए सर्वोत्तम सैद्धांतिक विचार प्रवाह कर अपने जीवन से संबधी समस्याओं का निवारण करता है| जिस प्रकार परिवर्तनों की एक श्रृंखला जिससे एक जीव अपने जीवन भर गुजरता है जो निषचेन से शुरू होकर मृत्यु पर समाप्त होने वाले महत्वपूर्ण चरणों से चिन्हित होती है, उसी प्रकार मानव जीवन चक्र को पाँच मुख्य चरणो मे वर्णित करते है लोग इन सभी चरणो के दौरान लगातार और धिरे – धिरे दिन प्रतिदिन अपने जीवन के विकास के लिए बुद्धि, कौशल, विवेक जैसे विशेषताओ की संरचना कर परिणामस्वरूप मे वर्तमान स्थिति को सुधारने और मानव जीवन को उत्कृष्ट बनाने के लिए अपने जीवन मे निरंतर दिन – प्रतिदिन बढलते रहता है, अथवा मनुष्य अपने जीवन का संचालन करता है। ऐसे गुणों को विकसित करके यह जीवन को स्थायी बनाता है और कई अवसर प्रदान करता है। जो मानव जीवन के मूल उपकरण हैं।

प्रथम अवस्था

बाल्यावस्था (आयु 0 से 12 जिसका अर्थ विचारशील होना है)

बाल अवस्था में प्राप्त शिक्षा को जीवन में समाहित करने से सामान्य विचार उत्पन्न होकर मन में घुलमिल जाते हैं और सकारात्मक प्रतिक्रिया के रूप में दो प्रकार के श्रेष्ठ गुण प्राप्त होते हैं जो जीवन के सूक्ष्म अंग हैं जैसे चरित्र और आचरण, जिनसे प्रभावित होकर अपनी जीवन शक्ति का निर्माण और विकास करता है, अपने जीवन को आकार देता है और अपने जीवन को बदलता है और फलस्वरूप चरित्र विकास (चरित्र निर्माण) के बीज को आधारभूत या आवश्यक रूप से बोकर अपने जीवन को संतुलित और विकसित करता है।

द्वितीया अवस्था

किशोरावस्था (आयु 11 से 21 जिसका अर्थ बुद्धिमान और समझदार होना है)

किशोरावस्था में वह शैक्षिक ज्ञान का उपयोग अपने रचनात्मक, व्यावहारिक, सांसारिक एवं सामाजिक कर्तव्यों के लिए करता है। यह वह माध्यम है जिसके माध्यम से वह अपने मन में उठने वाले विचारों को लिखकर, बोलकर या सुनकर व्यक्त करता है तथा उनसे उत्पन्न श्रेष्ठ गुणों को ऐसे विशिष्ट रूप में परिवर्तित करता है कि वह अपने जीवन में जीवनशैली, क्रियाकलाप आदि व्यावहारिक गतिविधियों को सम्मिलित कर अपने जीवन को आकार देता है। यह संचार का वह माध्यम है जो जीवन में सामाजिक जागरूकता, अवधारणाओं एवं दृष्टिकोण जैसी विशेषताओं को मापता है, किसी भी विषय या वस्तु के अनुभव के संदर्भ के महत्व को पहचानता है, सार्वभौमिकता एवं निरपेक्षता में दार्शनिक एवं बौद्धिक रुचि के प्रति प्रतिरोध प्रदर्शित करता है, अपने जीवन की परिस्थितियों को बदलता है तथा अपने जीवन स्तर की गति या दिशा को बदलकर अपने जीवन का विकास करता है।

तृतीय अवस्था

युवावस्था (आयु 21 से 45 जिसका अर्थ सृजन, सीखना और योगदान होना है)

युवावस्था में अपने जीवन में ज्ञान और शिक्षा का संयोजन या विश्लेषण से उत्सर्जित विचारों या उत्तेजनाओं को ग्रहण करता और संवेदी तंत्र के माध्यम से मस्तिष्क में मानवीय धारणा की एक विस्तृत श्रृंखला को अवशोषित करता है और विभिन्न श्रेणी में विशिष्ट गुणों या क्षमताओं को प्राप्त करता है। जब यह जीवन चक्र में शामिल होते हैं तो अपने अवधारणाओं या उत्तेजनाओं को अपने भीतर पूरी तरह अवशोषित कर लेते हैं, जिसका उपयोग वह कई संबंधित शैक्षिक और अन्य गतिविधियों में तार्किक क्षमता और दृष्टिकोण का समन्वय और निर्माण करके स्वचालित रूप से संचालित करता है, जैसे भौतिक समानता पहलू, व्यवहारिक तत्व, उपलब्ध संसाधनों का कुशल और प्रभावित तरीकों में उपयोग करना, लोगों के कार्यों में समन्वय होकर ताकि एक लक्ष्य को प्राप्त करके अपने जीवन को नियंत्रित करता है, और अपने जीवन को एक निश्चित रूप देता है। शैक्षिक ज्ञान से उत्पन्न अवधारणाओं और विचारों से अपने जीवन में मूलभूत गुना का विकास करता है। शैक्षिक ज्ञान से युवा अवस्था में आर्थिक, तार्किक क्षमता, दृष्टिकोण, मानसिक और बौद्धिक क्षमता विकसित करता है और अपने जीवन में आने वाले समस्याओं का समाधान करता है और अपने जीवन चक्र का प्रतिनिधित्व और विकास करता है। यह जीवन में उन्नति या परिवर्तन लाता है तथा इसे उत्पन्न गुना के साथ कौशल का संयोजन कर मानव जीवन में आने वाली समस्याओं का समाधान करता तथा व्यक्तियों के विभिन्न पर्स पर संबंधित विशिष्ट लक्ष्य या उद्देश्यों को प्राप्ति में सक्षम बनाता है तथा उसके जीवन स्तर की गतियां दिशा में परिवर्तन कर उसके जीवन की संरचना करता है जिससे मनुष्य के जीवन में विकास बनाया जा सके उसके जीवन में सफलता प्राप्त करने में सहायता मिल सके। जो जीवन में लागू होने पर मानव मनुष्य विचार जैसे जहरीले कचरे को निकलता है नैतिक मूल्यों का विकास करता है तथा जीवन के विशेष कार्य का प्रशिक्षण देकर जीवन को दिशा प्रदान करता तथा विस्तृत गुना की योग्यताओं को आत्मसात कर उन्हें विभिन्न श्रेणियां में संरक्षित करता है, नहीं जिससे मनुष्य के जीवन को उज्जवल एवं विकसित बनाया जा सकता था उसके जीवन में सफलता प्राप्त करने में सहरका मिल सके।

चतुर्थ अवस्था

प्रौढ़ावस्था अथवा वृद्धावस्था (आयु 45 से 60 जिसके अर्थ अंतर्दृष्टि, ज्ञान,विवेकशील होता है)

प्रौढ़ावस्था अथवा वृद्धावस्था में ज्ञान और शिक्षा के संयोजन से उत्पन्न महान विचारों से अपने जीवन को अनेक प्रकार से प्रभावित करके जीवन को विकसित और उन्नत करते हैं वैचारिक संचार से उत्पन्न विचारों सिद्धांतों अवधारणाओं और विचारों को एकत्रित करते हैं, तथा अपने जीवन में संतुलन लाने के लिए व्यक्तियों के साथ न्यायपूर्ण और निष्पक्ष व्यवहार करते हैं , जैसे नैतिकता, तर्कसंगत सोच ,धार्मिक सिद्धांत, सामाजिक वर्ग , प्रत्येक वर्ग के साथ समानता, सम्मान साथ ही एकता की मूल्यों को समझने और स्थापित करने का प्रयास करते हैं तथा व्यक्ति की गरिमा को समझते हैं और अपने जीवन में गुणवत्ता द्वारा परिवर्तन लाने की क्षमता रखते हैं।

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