Image by Gerd Altmann from Pixabay 

नमस्कार मैं प्रीति चौहान एक फार्मासिस्ट स्टूडेंट हूं मैं ना ही कोई कवि ना ही कोई लेखिका हूं परंतु फिर भी कुछ देखकर या कुछ परख कर यह लिख रही हूंl.

कि शायद सच में हम इंसानों ने आसमान को छूने की चाह में जमी को भूल गए हैं हम जैसे जैसे इंसान तरक्की करता जा रहा है वैसे वैसे ही कुछ चीजों को खोता भी जा रहा है। जैसे कि यह कहावत सच ही तो है कि कुछ पाने के लिए कुछ खोना अनिवार्य होता है । जैसे कि शहरों की चाह में हम पहाड़ों को भूल गए हैं यह बात तो 2021 में मैं लिख रही हूं की परंतु एक महामारी जिसे हम कोरोनावायरस कहते हैं 2018 से लेकर 2021 तक होने वाली यह बीमारी कितने ही लोगों की जान ले चुकी है। इन बीते हुए सालों में शायद कुछ पाया तो नहीं पर शायद खो बहुत कुछ दिया है। इस बीमारी ने जिंदगी की बहुत सी चीजें दिखा दी है जैसे कि लॉकडाउन लग जाने के कारण गरीब और अमीर दोनों ही घर के अंदर बंद पड़े हैं।.बस तरीके थोड़े अलग-अलग है रहने के जैसे गरीब यह सोच कर परेशान है कि वह घर में रहेगा तो भूखे पेट मार जाएगा और अगर बाहर गया तो महामारी उसे मार देगी। और दूसरी जगह अमीर यह सोच कर खुश है कि अब थोड़ा समय उसे अपने परिवार के साथ बिताने को मिलेगा जो वह अपना काम के कारण अपने परिवार के साथ नहीं बीता पाता था।. 

घर में बंद तो दोनों ही हैं बस तरीके थोड़ा अलग है।. पर यह महामारी अमीर हो या गरीब दोनों को ही परेशान किया है इसने पर लड़ना तो दोनों को ही है इससे वजह या बेवजह जिम्मेदार इंसान ही है इसके लिए आसमान को छूने की चाह में जमीन को छोड़ दिया है हमने गलत है । क्योंकि कार की चाह में पैदल चलना भूल गए हैं हम फोन की चाह में किताब पढ़ना भूल गए हैं हम कभी-कभी तो लगता है एक दिन कुछ अच्छा पाने के लिए कहीं इंसान को ही ना भूल जाएंगे हम इन्हीं तरक्की ओ के चक्कर में इंसान खुद भी विलुप्त ना हो जाए एक दिन जैसे कि इस महामारी में कैद होना किसे कहते हैं यह पता चल गया था। 

जैसे की हम जानवरों को कैद करते हैं ऋषि और पिंजरे में बंद कर l.वैसे ही इंसान इस बार घर में कैद था।.जैसे किसी समय पर इंसान बाहर घूमता था और जानवर कैद रहता था। परंतु इस बार इंसान घर में कैद था और जानवर बाहर घूम रहा था।.इस महामारी में बड़े से बड़ा देश बड़े से बड़ा व्यक्ति या छोटे से छोटा देश है छोटे से छोटा व्यक्ति परेशान था बस तरीके अलग थे परंतु परेशानी एक ही थी। इस बार ना सवाल जाति का था और ना ही धर्म का क्योंकि इस बार महामारी थी ना उसने धर्म देखा ना जाति हॉस्पिटल में माैत अमीर की भी आई और गरीब की भी ना ही डॉलर का जोर चला ना ही सिखों की नुमाइश मौत आई अमीर और गरीब दोनों को ही ले गई इंसान ही तो है मिट्टी से जन्म लिया मिट्टी में ही मिल जाना है । कुदरत के आगे किसी की ना चली l.

मेरी मंशा इस आर्टिकल से किसी का दिल दुखाना नहीं है अगर मेरे से कोई गलती हो गई हो तो मुझे क्षमा करें।.

धन्यवाद.....

.    .    .

Discus