जब कोई इंसान जीते जी कोई अंग खोता है,
उसका पूरा परिवार उस दर्द के भार को धोता है।
लम्बी लम्बी कतारो में अंगो की बोली लगती है,
जिसपे बीतती है उसको ही ये समस्या समझती है।
मैने सुना है अंगो का वायपर होने लगा है
जो मरते थे हादसो मे उसका गला भी कटने लगा है,
इंसानो को अब हर चीज मे पैसा नजर आता है,
मरके भी जो जीवन दे जाये वही इंसान कहलाता है।
मरके अंगो को या तो जला दोगे या दफना दोगे,
अगर वही किसी को दे दिये तो बदले मे दुआ लोगे।
सभी ज़रुरत मंदो को अंग नही मिल पाते है,
बहुत है जो तड़प तड़प कर मर जाते है।
जन्म से ही पता है ह्मे एक दिन मर जायेंगे,
अपने अंग लेकर अपने साथ कभी ना जा पायेंगे,
किसी को आंख, किसी को धड़कन देकर फिरसे जी जाएँगे,
इंसान होने का इतना तो कर्तव्य हम निभायेंगे।
भगवान ने दिया ये जीवन सभी को एक बार है,
अंगदान करके इंसान बचा सकता किसिका घरपरिवार है।
जीते जी जो ना कर सके मरने पे वो काम करो,
अंगदान करके किसी को तो सुखी जीवन प्रदान करो।
हम वो दिए है जो बुझकर भी कई दिये जला सकते है,
हम अपने अंग दान करके कुछ पुण्य और कमा सकते है।
बहुत उदास होंगे परिवार जन आपके जाने से,
अगर हो सके तो अंगदान करना किसी बहाने से।