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मुख्तसर सी है जिंदगी,
अपना वक्त युं झाया न कर;
कर नई गलतिया हर रोज़,
सिख नए तजुरबे हर रोज़|
मशरूफ़ रहे अपने आप को बनाने में,
जैसे एक शिल्पकार रहता है मूर्ति तराशने में|
कुरूप सा पत्थर सुंदर सी मूर्ति बन जाता है,
हथौड़ी की मार से;
वैसे ही तू भी कल बहतरीन इंसान बन जाएगा,
जिंदगी की मार से!

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