मैं जब छोटी थी तो बड़ी होना चाहती थी।
चाहती थी कि जल्दी से बड़ी हो जाऊँ
घर के अन्य समझदारों में, मैं भी गिनी जाऊँ
बच्चों के जैसे बाहर खेलना छोड़ दिया
बड़ी बहनों के जैसे ही दुपट्टा ओढ़ लिया
भले ही कुछ समझ ना आये
पर कार्टून छोड़ कर, खबरें लगा देती थी
शायद घर के काम करने से बड़े बनते होंगे
कभी कभी झाड़ू लगा देती थी।
बड़े लोग बात बात पे नहीं हंसते
मैंने भी खिलखिलाना छोड़ दिया
बड़े लोग हर बात का जबाब नहीं देते
सो बातों को अनसुना करना सीख लिया
बड़ी कोशिशें करी बचपन को बड़ा करने की
पर वक़्त की सुई सही चल रही थी,
उम्र खुद ही धीरे धीरे बड़ा कर रही थी।
बढ़ने के क्रम में एक दिन
उन झुर्रियों पर अचानक मेरा ध्यान गया,
जिनकी उम्र मेरे साथ ही बढ रही थी!
वो चार आँखें भी तो बूढ़ी हो रही थीं!
अब खबरों से चिढ होने लगी और
खमोशी आदत बन गयी,
मेरे बड़े होने की ईच्छा इस पल से समाप्त हो गई!
मुझे इससे आगे नहीं बढना
अब यहाँ से वक़्त रोक देने का मन करता है
मुझे खुद के बड़े होने से ज्यादा
उनके बूढ़े होने से डर लगता है।