जीवन जैसे एक रंगमंच के पायदान पर किसी प्रसिद्ध लेखक का कोई उपन्यास प्रस्तुत किया जा रहा हो। (पर ये पायदान मखमली नहीं ) उपन्यास जिसमें एक साथ कई छोटी-बड़ी कहानियाँ हो और किरदार भी।
जिसमें नाटक को रोचक बनाने के लिए प्रत्येक पात्र को दूसरे पात्र की कहानी से जोड़ दिया जाता है।
रोचकता बनाये रखने के लिए सामान्य नाटक में जिस प्रकार एक नायक/नायिका का होना अनिवार्य होता है इसी तरह यहाँ भी नायक/ नायिका उपस्थित होते हैं और खलनायक भी। आप जरा कभी किसी पात्र की कहानी पर गौर फरमाये तब आप देखेंगे कि वह अपनी कहानी का खुद नायक होता है या यूँ कहें कि वह खुद को नायक समझता है। वह अपनी कहानी में सदैव खुदको नायक की भूमिका में ढालकर ही बताता है।
जैसे कोई प्रेमी किसी लड़की से प्रेम करता है तो वह खुदको अपनी कहानी का नायक मानता है और उस लड़की को नायिका फिर चाहे वो लड़की किसी और से ही प्रेम क्यों न करती हो वो अन्य सभी लड़के जो उस लड़की को चाहते होगे सबको अपनी कहानी का खलनायक मानता है।
वहीं दूसरी ओर वो लड़की खुदको अपनी कहानी की नायिका और जिसे वो प्रेम करती है उसे नायक मानती है।
कितना विचित्र है ना।..
अब इसे जरा इस तरह देखिए, एक गरीब व्यक्ति जो दिन भर मेहनत करके रोटी कमाता है वह भी अपनी कहानी का नायक है और वो उसकी कहानी का खलनायक शायद भगवान को मानता होगा। पिता के व्दारा डांटने पर एक छोटा बच्चा अपने पिता को खलनायक मानता होगा । इसी प्रकार प्रत्येक व्यक्ति खुदको नायक और किसी अन्य को अपनी कहानी का खलनायक मानता है। इसी प्रकार जो हमारी कहानी का खलनायक है वो अपनी कहानी ( जीवन) में किसी और को खलनायक समझता होगा | यानि हम सभी अनजाने ही, किसी न किसी की कहानी के खलनायक की भुमिका निभा रहे हैं |
अब सवाल ये उठता है कि आखिर जब हम हीरो/ नायक हैं तो खलनायक कैसे? अर्थात् हम अच्छे भी हैं और बुरे भी? जी हाँ यही तो इस जीवन रुपी नाटक का सस्पेंस है कौन जाने आगे कहानी क्या मोड़ लेगी? बस हर शख्स इस दुनिया रूपी रंगमंच पर अपनी अपनी भूमिका निभाने में व्यस्त है। यहाँ किसी का किरदार बहुत छोटा है तो किसी का बड़ा। जाने ये नाटक कब तक चले जाने वो हम सबसे ऊपर बैठा निर्देशक "नाटक समाप्त " का ऐलान करदे| इसलिए फिलहाल तो जब तक की स्क्रिप्ट मिली है किरदार निभाइए और जीवन रुपी नाटक का आनंद लिजिए|