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(सवाल):

जब रोटी रात रुलाती है,
तुम्हें नींद कैसे आ जाती है!

जब ठंडे चूल्हे की लकड़ी,
तुमको मुँह चिढ़ाती है,
तुम्हें नींद कैसे आ जाती है!

ये चाँद भी पूर्णमाशी का,
बन बन के रूप लुटाता है,
गोल-गोल रोटी की सूरत,
तुमको आन चिढ़ाता है,
हँसता है तुम पर और,
हँस-हँस कर तुम्हें सताता है,
जब शमा, सीने में समाती है,
तुम्हें नींद कैसे आ जाती है!

(जवाब):

यूँ तो रातों को सोते भी नहीं हम,
भूख-प्यास से बोझिल पलके,
खुद-ब-खुद गिर जाती हैं,
नहीं झपकने की कुव्वत इनमें,
ये थक कर सो जाती हैं।

हमें नींद यूँ आ जाती है!


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