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रोशनी से रूबरू होती हूँ, फिर भी अँधेरे मेरा पीछा नहीं छोड़ते।
आँधियों से लड़ती हूँ, फिर भी न जाने क्यों छोटी-छोटी बातों पर ये आँसू मुझसे अपना रिश्ता नहीं तोड़ते।
मुस्कुराहटों के पीछे और मुखौटों के परे, एक दर्द है जिसे मैंने अपनी रूह में समाए रखा है।
न जाने कितने सितम किए इस ज़िंदगी ने,
यही जीने की आरज़ू है जिसने मुझे बचाए रखा है।
क्या ख़ूबसूरत उस ख़ुदा ने इस इंसान को बनाया है,
बे-सब्री में भी सब्र का सबब उसने हमें सिखाया है।
यूँ तो हम कठपुतलियाँ ही हैं जो उस रब के इशारों पर नाचती हैं,
मौत का कफ़न हर दिन अपने सिर पर लिए, अपनी आरज़ुओं के आशियाने बसाने निकल जाती हैं।
कुछ ख़्वाब ऐसे होते हैं जो ख़ूबसूरत नींद देते हैं, और कुछ ऐसे जो सोने नहीं देते।
मंज़िलों का नशा क्या करे, जब ये कमबख़्त रास्ते हमें चैन के मोती पिरोने नहीं देते।
है हर किसी के हिस्से में ये पागलपन—एक ऐसा फ़ितूर, जिसके लिए कोई हर दीवानगी की हद पार कर जाए।
मलाल भी, और मलंग भी—ये ज़िंदगी का सफ़र तब बन जाता है, जब एक आरज़ू तुम्हारे जीने की तमन्ना बन जाए।
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