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यह कैसी तड़प है जो मेरे मन को इतना बेचैन कर रही है
ये कैसी कश्मकश है जो मेरी रूह सहन कर रही है
ख्वाबों के टूटने की कोई आवाज़ नहीं होती, वो उस शांत कमरे की आहट की तरह चले जाते हैं
नींद से जगाकर न जाने कहाँ खुद गुम जो जाते हैं
मत पूछो मुझसे कि मेरा हाल कैसा है
सब ठीक होने पर भी सब कुछ खोने जैसा है
ना अपनी खुशियों में खुलकर मुस्कुरा पा रही हूँ
ना दुख में आंसुओं से खुद को सँवार पा रही हूँ
मत रखो मुझसे उम्मीद तुम्हें असरा देने की
मेरे अंदर एक तूफान है जो अपने सुकून की पुकार लगा रहा है
एक अजीब सी कश्मकश में हूँ मैं, सबके साथ होते हुए भी किसी के साथ होने से इनकार रहा हूँ
कहा जाओ, किस रटे, किस गली, किस शहर जहाँ मेरी खुदी होने का एहसास हो
जहाँ मेरा सुकून मेरे पास हो
रहने दो ना मुझे कुछ पल अकेला...
शायद तब मेरी रूह अपनी दबी आवाज़ सुन पाएगी
अपने दर्द से उसके दर्द की मुलाकात करवा पाएगी
बैठने दो मुझे उस भीड़ में जहाँ टूटा सबके दिल का हिसाब है
जहाँ हर किसी के दो वक्त की चाय का घूँट शराब सा है
खुद को अंधेरों की बाहों में आज ढलना चाहती हूँ
आज मैं मेरी कश्मकश के साथ बस बैठना चाहती हूँ...