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मैं तुझे फिर मिलूंगी, कहाँ? किस तरह! पता नहीं!
मेरा प्यार था तू और मेरी जिंदगी में कुछ यूँ आया,
कि किसी शख्स पर गौर करने का ख्याल मेरे ज़ेहन में फिर ना आया।
तेरी मोहब्बत में कुछ इस तरह पड़ी कि सारा जहाँ बेगाना सा लगने लगा,
तेरी आँखों में डूबना इस दिल को उसका ठीकाना सा लगने लगा।
बेख्याली के सुकून का मेरे पास ना कोई सवेरा था
क्योंकि तेरी तकलूफ का मेरा दिल में जो बसेरा था
ज़माने के शोर से दूर, एक आशियाना जो सिर्फ हमारा हो
तेरे साथ हो, तो हर मुश्किल में मुस्कुराहटें हमारा गुजरारा हो
प्यार था पर शायद वक्त को हमारा इश्क ना गंवारा था
जुदाई का ग़म तो था, पर तेरी यादों का अभी भी सहारा था
जब इश्क़ दे सामने ख़ुदा झुक जाता है
तो वक्त क्या चीज़ है, वो भी अपने हमसफ़र का साथ पता है
शायद किसी राह पर, अनजाने शहर में जहाँ मुझे कोई ना जानता हो
लाखों चेहरों में भी मेरा दिल एक चेहरे को सब में पहचांता हो
किसी अनजानी राह पे, किसी अनकही मंज़िल पे, हमारा मिलना उस तक़दीर का दस्तूर है
इश्क़ के सामने खुद वक्त भी मजबूर है
मैं तुझे फिर मिलूंगी,
तेरी आँखों की नमी बनकर
तेरे होठों की हसीं बनकर
तेरे चेहरे का नूर बनकर
तेरे ज़ेहन का गुरूर बनकर
मैं तुझे फिर मिलूंगी
और इस बार जब हम मिलें, मैं तुझे जान नहीं दूंगी
मैं तुझे जान नहीं दूंगी...