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ख्वाबों को अपनी मुट्ठी में लिए निकली हूँ आज दुनिया को असमाने
बंजारापन से इश्क करते हुए निकली हूँ आज अपने घर का सुख पाने
अपनी बेखुदी ना किया किसी से इज़हार है
न जाने क्यों अब अपनी मंजिलों को हासिल करने की धुन सवार है

कैसी कश्मकश है ये दोगली ज़िन्दगी
अकेलेपन में साथ और भीड़ में तन्हाई का एहसास दिला रही है
आज न जाने क्यों मेरी मुक्तसर सी तकदीर मुझसे रूबरू होने आ रही है
आसमाने अपनी किस्मत का सिक्का आज निकाल पड़े हम

गमों के बादल फिर भी छाए, लेकिन अपनी मंजिलों की कैफियत में होना चाहती हूँ गुम
तिनका उस रोशनी का लेकर चली अपनी किस्मत बनाने
उस सुकून की तलाश में न जाने कितने ढूंढे इस बंजारे दिल ने अपने ठिकाने

कतरा कतरा मेरे मंज़रों का जोड़कर अपना आशियाना सजा रही हूँ
अपने ख्वाबों आंखों में सिमते, कदम से कदम मिलाकर बस चलते जा रही हूँ
बस चलते जा रही हूँ

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