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तेरी हसरत में अपना अक्स मैं हर बार तलाशती थी,
तुझे पाने के ख्वाबों में मैं अक्सर खुद को भूल जाती थी.

चाहने वाले तो खूब थे हमारे, लेकिन मेरे नज़रों का एक ही ठिकाना था,
तेरे अखों के समुंदर में डूबने को मनजूर, मेरी ज़िंदगी को तो बस टिकने का सहारा था.

पर तेरी नाफ़रमानी ने उस ब्रह्म को कुछ ऐसा तोड़ा कि भिखरने से पहले मैंने खुद को संभाल लिया,
तेरे इश्क़ में फ़नाह होने को जो दिल कुछ वक्त पहले तैयार था, अब उस दिल से तेरा वजूद निकाल दिया.

इसे मैं उपर वाले की रहमत कहूँ या ज़िंदगी का सब्र, कि तेरा नाम अब मेरे होंठों पे वो मुस्कान न ला पाता है,
तेरा ज़िक्र तो कई महफ़िलों में हुआ, पर अब तू वो दास्ता है जिसका न मुझसे कोई वास्ता है.

तुझसे प्यार तो बेशुमार था, पर अपनी खुदाई पर मुझे नाज़ है,
तू तो आम सा ही था, ये तो मेरी मोहब्बत थी जिसने तुझे खास होने के खिताब से नवाज़ा।

अब इस बात का आखिर मुझे एहसास है...

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