Image by Ralph/Altrip/Germany from Pixabay

पापा अपनी परी का दुश्मन कैसे हो सकता है?
आने वाला वक़्त बताएगा
परियां नाजुक होती है, उसे नजाकत से पालना पड़ता है
समाज में शान बढ़ाने की होड़ मची है
अगर उसे कान्वेंट में नहीं पढ़ाई तो गँवार बताई गई है
उसे तो सिर्फ पितजा और पास्ता ही पसंद है
यह सब्जी रोटी की बात हजम नहीं हो पाती है
पॉकेट मनी कितना चाहिए?
यह कोई पूछने की बात है
पुरे पांच घरों में, झाड़ू पोंछा लगाने वाली बाई की
यह चार महीने की कमाई है
पापा,तुझे मालूम है
तेरी परी एक दिन तेरा आधार ठुकराकर आगे बढ़ जाएगी
तेरे विश्वास की विरासत से खिलवाड़ कर जाएगी
तुझे आँसू का दरिया उपहार में दे जाएगी
तुम कहोगे, मेरी परी ऐसी नहीं
सच कहते हो
किन्तु खुली आँखों से, एकबार आसपास की हवा तो सूंघ लो
छिपे हुए भेड़िये शिकार की तलाश में है
बिना प्रतीकार वश में हो जाये ऐसा वजूद उसे चाहिए
उसे नशे में जोंखकर,
एक पूरी पीढ़ी का सत्व चूसने की चाल समझिये
परी टूट सकती है, बिखर सकती है
क्यूंकि परी को सत्य बताया ही नहीं गया
उसके वजूद में फौलाद भरा ही नहीं गया
उसे खुद के मन, देह और आत्मा की रक्षा का कवच क्या है
बताया ही नहीं गया
उसे एक नई पीढ़ी में संस्कार सींचने है
उसे नई पीढ़ी का नेतृत्व करना है
उसे अपने गर्भ से, गरजती गूंज प्रगट करना है
पापा को सब मालूम है
क्या मालूम है?
उसे बत्तीस लक्षना नार जो बनानी है
कैसे चलना, फिरना, बोलना और नेट चलाना
बात वहाँ तक आकर रुक जाती है
विचारों से भी गीता ज्ञान हटाकर
पाश्चात्य सभ्यता आवकारी गई है
गर्व की बात है
घर की पुरानी परंपरा नाराज है पर व्यक्त करने से डरती है
आखिर समझौता कर लेती है
जानती है, दुनिया ज़ालिम है
और नादा परियां अपनी स्वप्नसृष्टी में ही संतुष्ट है
बहार मची कत्लेआम की कहानियो से, अभी वो बेखबर है
वो तो आप की गोद में अभी निश्चिंत है, पर....
पापा, अब तुम तो जग जाओ.

.    .    .   

Discus