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पतजड़ में एक दिन पत्तों के कमसिन हृदय की
गुलाबी आभा अपने मासूम हास्य की लहर से चूक जाएगी।
बंद आँखें खोलेंगी और आसमान से उनकी मुलाकात होगी।
वो आकाश की रहस्यमयी खामोशी को आत्मसात कर लेगी|
अपने भीतर चल रही उथल-पुथल को स्वीकार कर लेगी|
जिंदगी अपनी गति से आगे बढ़ती रहेगी|
पतझड़ में गिरती पीली पत्तियाँ बिदा होते कहेगी कि
अतीत को भूल जाओ और नई शुरुआत करते हुए
वसंत का स्वागत करो।
अभी भी उनके हृदय के सार की कोमल लाली
हँसी की मंद, चंचल हवा के लिए तरस रही है
पर आंखें बंद होने पर आकाशिय आलिंगन के लिए
पूरी तरह से सज्ज भी हो चुकी है|
भीतर उथल-पुथल है फिर भी शांतिपूर्ण गति पसंद कर रही है.
जीवन के झंझावातों और आत्मा के गहरे मर्म को
गले लगाकर बिदा हो रही है|
पतझड़ की सुनहरी पत्तियाँ, फुसफुसाहट की तरह,
धीरे से कहती है
"जब दिल की मासूमियत जागती है,
हास्य की कोमल धारा बहती है
और बंद आंखें स्वर्ग की किरण की ओर खुलती है|
तब आकाश में शांति छा जाती है
आत्मा की अंधेरी रात मौन हो जाती है|
जीवन उर्द्धव दिशा में आगे बढ़ता है,
स्थिर सा अपनी ही कोमल रोशनी में चमकता है
पतझड़ की गिरती पत्तियाँ रहस्य मुक्त फुसफुसाती हैं
अब मुझे जाने दो, प्रिय हृदय
और अपने अंदर नई शुरुआतों को खिलने दो।"
सुनकर आहिस्ता से नई पत्तियाँ अंगड़ाई लेती है
दूर खड़े बसंत को इशारे भेजती है|

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