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यह भक्ति कि गूंज है
यह धर्म कि दहाड़ है
कारवाँ चल रहा है, महाकुम्भ कि ओर
यह श्रद्धा का गूढ प्रसार है
सदियों का पुण्यप्रताप है
धरती जब ठान लेती है
आसमां को उतरने मजबूर करती है
व्यवस्था अपने आप आकार लेने लगती है
इनके पीछे
महान सत्ता कि सहाय होती है
यह कोई मानव कि हैसियत नहीं
कोई धर्म कि प्राथमिकता नहीं
ये तो समस्ती जोड़ने आमादा हुई
'विश्वरूप दर्शन 'योग कि गाथा है
नदी का पावन तट है
संगम का सिमित वरतुल है
साधन, संसाधन, भोजन, भजन
आस्था ने सभी को आशीष दिया है
कारवाँ चल रहा है.. लाखो .. करोडो के
अनंत आनंद संग, सनातन मुस्कुरा रहा है
बम बम भोले के जयकारे से
आध्यात्म खिल रहा है
यह न तो तेरी, न मेरी
न सरकार कि,
न तो उस धरती के पुण्य कि हैसियत है
यह दिव्य आयोजन कि लीला का समस्त स्त्रोत
सीधे शिव कि जटा से बह रहा है
भारत भूमि को आशीर्वाद दे रहा है.

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