यह जवानी बिनधास्त घूमती है
बिस्तर बदलती है
कश लेती है
धुँए से आकर्षित होती है
अगर इसमें से कुछ भी नहीं करते हो
लानत है
कहते हुए जिल्लत कि आग में धकेलती है
तुम्हारी आँखो के रतन अपना असबाब टके में बेचते है
अस्मत क्या है भाई
पुरानी सभ्यता कि माँ बहन करते है
लिपस्टिक में दबी,काले लबों कि कालीमा से
गालियाँ बकते है
गांजे के कुल के देसी विदेशी संसाधनों में
स्टडी से भी ज्यादा डूबते है
यह भारत कि बात है
कैसे नाज करे
ये श्रेष्ठ शक्ति, पतन कि ओर मुड़ रही है
जिश्म नंगा, जुबान नंगी
उच्च अभ्यास के आडम्बर से
आड़ पैदास बनकर अभद्रता है उभरी
पितज़ा, पास्ता, मोमोज़ और मैकडोनाल्ड ठूंसकर
पब कल्चर में डूबी हुई है
इस काल में
अति कठिन है,अभ्यासु के मन का स्थिर हो पाना
सत्य तो यह है
पालक कि आँखों में, उनके ही सूरज -चाँद
डाल रहे है, झूठ और फरेबी का धुँआ काला.