उसकी आंख से दरिया बह रहा था,
वो अपने आप से कुछ कह रहा था।
वो अपने अंदर को झंजोड़ रहा था,
शायद बीते लम्हों को फरोल रहा था।
वो ऊपर वाले को कोस रहा था,
ऐसी जिंदगी क्यों दी, यहीं सोच रहा था।
वो अपने बचपन को लोच (तरस) रहा था,
एक बीता लम्हा उसे दबोच रहा था,
जो बुरी तरह उसे नोच रहा था।
वो धूप में काम करते-करते सड़ रहा था,
उसका शराबी पिता उसके पैसों पर पल रहा था।
अपनी मां को बचपन में खोने का डर आज भी उसके अंदर था,
वो उस समय अपने पिता के इशारों पर नाचता महज एक बंदर था।
यहीं उसकी जिंदगी का मंज़र था।
अब उसकी आंखों का दरिया उसे उसकी जवानी में ले आया,
जिस वक्त उसने अपनी बड़ी बहन के घर को बसाया।
इसके बाद उसने अपना घर चलाया,
और आगे चलकर बेटे के रूप में अपने पिता को पाया।
जिसने फिर उसकी जिंदगी को तबाया।
फिर उसने बुढ़ापे में भी कमाया,
और अपने बेटे के साथ उसके बच्चों को भी खिलाया।
बस यहीं सब उसे याद आया।
और उसकी आंखों का दरिया रुक न पाया।