महर्षि अगस्त्य ने जिन तथाकथित ज्ञानी मुनियों को शाप देकर राक्षस बनाया। वे साधुवेश में समाज को गुमराह करने का काम करते थे।राक्षस भयउ रहा मुनि ज्ञानी।।रामचरितमानस की यह पंक्ति सोचने पर विवश करती है कि एक ज्ञानी मुनि राक्षस कैसे बन गया। उसने ऐसा क्या किया कि ॠषि अगस्त्य ने शाप देकर एक ज्ञानी मुनि को राक्षस बना दिया।
इस पंक्ति को समझने से पूर्व ये समझना आवश्यक है कि शाप वास्तव में है क्या? शाप शब्द संस्कृत की शपँ आक्रोशे धातु से बना है जिसका अर्थ है आक्रोश प्रकट करना। न कि मनुष्य को पशु या राक्षस आदि बना देना। जब शत्रु प्रत्यक्ष युद्ध में नहीं जीत पाता है तब वह विभिन्न प्रकार के छल–छद्मों का प्रयोग करता है। जिनमें से एक यह भी है कि समाज के सम्मानित वर्ग का वेश धारण कर समाज को गुमराह करना।
उस समय राक्षसों की नीति का ये प्रमुख अंग था कि मुनि का वेश बना कर समाज को छलना उदहराण के तौर पर कालनेमि का साधु बनकर हनुमान जी को छलने का प्रयास करना, आतापी और वातापी राक्षसों का ब्राह्मण वेश धारण कर ॠषियों को मारने का प्रयास करना. बताते चले कि महर्षि अगस्त्य ने ही इन दोनों राक्षसों का वध किया था।
यहां तक कि स्वयं रावण ने भी माता सीता का हरण साधु वेश बनाकर किया था। चूंकि महर्षि अगस्त्य एक लम्बे समय से दण्डकारण्य में रहकर राक्षसों से संघर्ष कर रहे थे इसलिये वे राक्षसों के छल–छद्मों से भली–भांति परिचित हो गये थे। यही कारण था कि जब साधु वेश में किसी दुष्ट को देखते थे तो उसको शाप देकर उसकी सच्चाई समाज के सामने ला देते थे। इस पंक्ति में जिन तथाकथित ज्ञानी मुनियों को शाप देकर महर्षि ने समाज के सामने राक्षस बनाया। वे भी ऐसे ही साधुवेश में समाज को गुमराह कर रहे थे।
अतः वे शाप के कारण राक्षस नहीं हुये अपितु शाप के कारण उनका असली चरित्र जनता के सामने आ गया। आज भी समाज में ऐसे राक्षसों की कमी नहीं हैं जो साधु वेश बनाकर समाज को गुमराह करते हैं। बस कमी है तो उन तपःपूत महर्षि अगस्त्य की जो उनके चरित्र को उजागर कर समाज का मार्गदर्शन करें।