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भरोसा एक ऐसी भावना है जिसको हम या तो सरल रूप से प्रकट कर सकते हैं या हम इसे प्रकट भी नहीं कर सकते हैं।

यदि हम किसी पर भरोसा कर लेते हैं तो फिर हम उनके ऊपर ऐसे भरोसा कर लेते हैं जैसे कि उन्हीं से हमारे जीवन का अस्तित्व बना हुआ है, लेकिन यह बिल्कुल गलत बात है, किसी व्यक्ति ने कहा था कि हमें उनके ऊपर कभी भी विश्वास नहीं करना चाहिए जिनके विश्वास में विष का वास हो, लेकिन मजे की बात तो यह है कि जिस व्यक्ति ने ये शुभ बात बोली थी वो खुद हमारे देश का गद्दार था।

हां! बेशक हमें भरोसा करना चाहिए क्योंकि बिना भरोसा किए हुए हमारा पूरा काम हो ही नही सकता है। लेकिन भरोसा उतना ही करना चाहिए जितने में हमारा काम हो जाए, इतना भी भरोसा करना चाहिए जिससे कि हमारा काम तमाम हो जाए।

ये बात भी सही है कि भरोसा एक ऐसी भावना है, जो कि अगर किसी व्यक्ति की जितनी बड़ी ताकत है उतनी ही उस व्यक्ति की कमजोरी भी है, और यही कारण था कि गुरु द्रोण का वध भी हो गया था, इसी भरोसे के कारण गुरु द्रोण बलशाली से शक्तिहीन हो गए थे।

अपनी जिंदगी में यदि किसी पर भरोसा करना ही है तो केवल दो लोगों पर ही भरोसा करना चाहिए। प्रथम उनके ऊपर जिन्होंने आपको प्राण दिए हैं यानि कि भगवान के ऊपर क्योंकि अगर वो आपके साथ हैं तो आपका कुछ भी अनिष्ठ नहीं हो सकता है और द्वितीय, हमें खुद के ऊपर भरोसा करना चाहिए क्योंकि यदि एक बार हमारा मनोबल टूट तो उसे दोबारा से सहेजने के लिए बहुत कठिन हो जाता है।

यदि एक बार जब कांच टूट जाए तो उसके जगह पर नया कांच ले सकते हैं, लेकिन यदि हमने किसी का भरोसा तोड़ दिया तो वो कभी नहीं जुड़ सकता है। भरीसे को कभी भी कांच की तरह जोड़ा नहीं जा सकता है और यदि उसे जोड़ दिया जाए तो वो पहले जैसा नहीं रह पाता है।

भरोसा हमारे लिए एक ऐसी भूमिका निभाती है जो कि अगर वो एक परिवार को बांधे हुए रहती है तो उसे क्षण भर में तबाह करने का ताकत भी रखती है और इसी भरोसे की मात्र एक नोख पर महाभारत जैसा युद्ध छिड़ गया था।

यदि कभी भी हम सब ने एक बात पर गौर फरमाया होगा तो हमें ये जरूर जानने को मिला होगा और सदा मिलता रहता है कि जिनके ऊपर कभी भी हमें भरोसा नहीं करना चाहिए वो लोग ही बहुत शीघ्र हमारे दिल के बहुत पास आ जाते हैं और जिन लोगों को हमारी समझ होती हैं उनसे हम बहुत दूर चले जाते हैं।

एक बात तो है कि जब भी भरोसा किया जाता है तो किसी एक पर किया जाता है हजारों पर नहीं।

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