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क्योंकि वो हमारी जीभ के लिए स्वादिष्ट है और उसे खाने के हम आदि हो चुके है l
पढ़ने वाला पाठक यह सोच रहा होगा कि एक लेखिका स्वयं सड़ाकर इसलिए खा रही है, क्योंकि वह उसकी जीभ के लिए स्वादिष्ट है और लेखिका उस सड़े हुए खानें की आदि हो चुकी है ।
जबकि, लेखिका के अनुसार “हमारे” से तात्पर्य है सम्पूर्ण मानव जाति जिसमें आप,मैं और हम सब खाद्य पदार्थों को अक्सर सड़ाकर खाते है l
हमारा शरीर उसी सड़े हुए खाद्य सामग्री की और अक्सर आकर्षित हो रहा है जिसके कारण से हम सभी की जीवन शैली और हमारे संतुलित विचार प्रभावित हो रहे हैं l
अक्सर आप देखते होंगे की बाजारों में मिलने वाले खाद्य पदार्थों के पैकेट पर लिखे हुए पौष्टिक गुणों और समाप्ति तिथि को जांचने के बाद हम सभी उस खाद्य पदार्थ को खरीदते हैं l
क्या कभी हम सभी ने उस खाद्य सामग्री को पैकेट में बंद होने से पूर्व उसकी वास्तविक गुण की जांच की है, चकाचौंध पैकिंग होने वाली खाद्य सामग्री को जब उसकी प्राथमिक उत्पादक के रूप में जानते है तो वो हमें साधारण सी प्रतीत होती है, परन्तु उसकी असली पौष्टिक गुणवत्ता उसी में छिपी होती है l
जो वर्ग उस उत्पादकता की वास्तविक गुणवत्ता को जानता है वह उस उत्पादकता को एक स्वयं की सफल कोशिश के रूप में देखता है और उसे अच्छा पोषण देता है जो एक अच्छे उत्पादकता की जरूरत हो,जब मनुष्य इस उत्पादन का उपभोग करता है तो उसमें जीजिविषा दिखाई देने लगती है l
मनुष्य उस खाद्य वस्तु पर प्रयोगात्मक कार्य शुरू करता है, क्योंकि यह मनुष्य का स्वाभाविक गुण है कि जो वस्तु शुरू में उसको लाभ प्रदान करती है उसे वह जादुई चिराग समझने लगता है और वह अपने नियम बनाने लग जाता है l
जब मनुष्य खाद्य पदार्थ को शीघ्र तैयार करने के लिए तेज गति से उत्पादकता को बढ़ाता है ताकि ज्यादा से ज्यादा मात्रा में उसकी उत्पादन क्षमता में बढ़ोतरी हो इतनी बढ़े की बड़ी - बड़ी मशीनों को इसमें झोंक देता है जीभ के स्वाद के लिए ये क्रिया कलाप शुरू हो जाता है।
प्राथमिक दृष्टि से खाद्य पदार्थ जब प्राकृतिक रूप से उत्पादित होते थे तब उसमें पौष्टिकता के गुण अच्छी मात्रा में होते थे l बदलते समय के अनुसार खाद्य सामग्री पर आधुनिकता का रंग परवान कर गया इसका प्रभावित कारण पर्यावरण का दूषित होना है कारखानों का दूषित पानी, रासायनिक उर्वरक, मशीनी क्रिया आदि से खाद्य पदार्थों को सड़ाने का अच्छा कारण हैं l पैकिंग खाद्य सामग्री को भंडारण करना अक्सर हम उसकी गुणवत्ता और नियत समाप्ति तिथि को देखना भी अनुकूल नहीं समझते औ र हम सभी उस वस्तु को खरीदकर यह महसूस करते है कि इस खाद्य वस्तु की आज ही पैदावार हुई ओर हम सभी इसके सबसे अच्छे उपभोक्ता हो गए है हमारी सोच उस वक्त ये महसूस करती है ये सबसे ज्यादा हमारे लिए लाभदायक है l
मनुष्य आज कल इतना समय नहीं दे पा रहा जो अपने खाद्य वस्तुओं की गुणवत्ता को भी अनदेखा कर रहा है बाजारों में छीली हुई सब्ज़ियां भी पैकिंग मिल रही है और इस सलाह को हम सभी अमल में लाते है कि इन्हें अच्छे से धोकर फिर पकानी है अर्थात् इस सब्जी को मसाला युक्त करके तेल में इसे सजाना है ताकि थोड़े बहुत बचे हुए पोषक तत्व समूल नष्ट हो और उसे पकाते हुए समझते है ये हमारे लिए सेहतमंद हैं l
क्या आपने महसूस किया है ये खाद्य वस्तु जो स्वादिष्ट समझकर खाते हैं उसके बाद शरीर में इसके गलत प्रभाव की झलक देखने को मिलती है जिसे हम स्वादिष्ट समझकर खा रहे है वास्तविक में वह खाने की वस्तु हमारे द्वारा सड़ाकर खाई जा रही है l
सड़े हुए खाने से धीरे - धीरे व्यक्ति का शारिरिक संतुलन बिगड़ने लगता है ओर इसके साथ ही आर्थिक रूप से व्यक्ति का संतुलन भी बिगड़ने लगता हैं और इसका गहरा असर व्यक्ति के मानसिक संतुलन पर होता है जो स्वयं नष्ट के कगार पर होता है l
शारिरिक संतुलन बिगड़ने के कई उदाहरण है - बालों का झड़ना, रूसी होना, आंखों की रोशनी का प्रभावित होना ,सुनाई देने की क्षमता का कम होना , सिर से लेकर पैर तक बाहरी और अंदरूनी क्रियाओं का प्रभावित होना , व्यक्ति के कंधे थके महसूस होना, हाथों में थकावट होना, कमर का हर बार टूट जाना जब शरीर के किसी हिस्से में दर्द जैसी गांठ का संकेत होना उस वक्त व्यक्ति खुद को कैंसर पीड़ित रोगी समझने लगता है l
व्यक्ति के पेट की बात ही मत कहो जब मस्तिष्क सड़े हुए खानें की क्रियाओं का परिणाम भेजता रहता है मस्तिष्क बताता रहता है कि सड़े हुए खाने को ज्यादा कहां हावी होना है ताकि,जब शुरू में मोटी रकम पाने के लिए उस प्राकृतिक खाद्य वस्तु के साथ खिलवाड़ किया था अब उसी मोटी रकम से सड़े हुए हुए खाने को पचाने के लिए उपयोग में लानी पड़ती है l
प्रथम पीढ़ी ने जो हमारे लिए संजोया है अगर उस दौर मे खाद्य वस्तु मशीनी और बंद पैकेटों में निर्भर होती तो वर्तमान समय में मानव सभ्यता का अंश विद्यमान न रहता l
आज के वर्तमान दौर को देखते हुए हमें यह संकेत प्राप्त हो रहे है कि आने वाली पीढ़ी शुद्ध खाद्य वस्तु के लिए तरस जायेगी वो बीती पीढियों का आचरण इतिहास के पन्नों में पढ़ेंगे की तात्कालिक पीढ़ी ने उनके भविष्य को बचाने के लिए कुछ नहीं संजोया l आने वाली पीढ़ी इस समय वर्तमान की पीढ़ी को इसलिए कोसेंगी कि वर्तमान पीढ़ी ने प्रकृति को बचाएं रखने के लिए कोई ऐसी जादुई कला उनके लिए संजोए नहीं रखी l खाद्य वस्तु को सड़ाकर खाने और मशीनी क्रियाओं के हवाले छोड़ दिया गया बस मोटी रकम की होड़ रखी होगी , जब तक वो गुणवत्ता को खत्म होता हुआ देख चुके होंगे l
लेखिका की एक लिखी हुई पंक्ति है -
“हाथ का हुनर कोहिनूर को तराश कर निखारता है l”
खानें को सड़ाकर खानें को दूसरे पहलू की ओर देखे जो हम सभी पौष्टिक समझकर खा रहे है दरअसल,वो एक सड़ा हुआ खाना है जिसे हम सभी पुरा सड़ा गलाकर खाते हैं l उसे ज्यादा ही शुद्ध करते - करते उसकी मुख्य पौष्टिकता को समाप्त कर देते है, उसके निम्न कारण है l
आधी से ज्यादा आबादी खाने का शॉर्ट कर्ट अपनाने लगी है, जंक फूड इतना तीव्र गति से आज की दिनचर्या का हिस्सा बन गया है इसका वातावरण पर गहरा असर पड़ता जा रहा है जीभ के स्वाद के लिए चटपटा और आंखों को आकर्षित करने वाले पिज्जा, बर्गर,, मोमोज ऐसे कई खाद्य पदार्थों का सेवन करते है ये खाद्य पदार्थ जब हमारी जीभ पर जाते ही हमारी आंखें बंद हो जाती है l तेल से भरे हुए खाद्य पदार्थ,लाल दिखने वाली चटनियां हमारे पेट में तबाही मचाने के लिए तत्पर हो जाते हैं l हम ऐसे सड़े हुए खाने को स्वयं निमंत्रण देते है और पेट को भी सड़ा देते है l
खाना जो हम अपने हाथों से खा रहें हैं उसको बनाने वाला व्यक्ति किन भावों से होकर गुजरा है , उसका मन शुद्धता के भाव को प्रकट करते हुए उसने खान पकाया है ओर खाने वाला भी उसी शुद्धता से उसे ग्रहण कर रहा है तब वह खाना हमारी सोच, हमारे आचार - विचार को शुद्धता की ओर ले जाता है और वो खाना अमृत तुल्य और सर्व गुण पौष्टिकता से भरा हुआ होता है । वही दूसरी तरफ, खाना बनाने वाला व्यक्ति अगर नकारात्मक भावों से होकर गुजरा है जैसे उस वक्त उसका भाव मलिन हो अर्थात् वो किसी पर क्रोधित है उस अवस्था में है या उसने किसी के लिए अमर्यादित शब्दों का प्रयोग किया है तब उस वक्त की सारी नकारात्मक ऊर्जा उस खाने में आ जाती है नकारात्मक ऊर्जा के कारण सड़ा हुआ हो जाता है ओर वही खाना ग्रहण करने वाले व्यक्ति के विचार को प्रभावित करता है उस सड़े हुए खाने को खाने से उसकी आत्मा दूषित होकर वातावरण को प्रभावित करती है खाने से संबंधित जो भी उसके ईद - गिर्द रहती है वो उसके सकारात्मक और नकारात्मक वातावरण को प्रभावित करती है l आज के वर्तमान युग मे जो लोगों में उग्रता, हिंसा और पारिवारिक दुराचरण बढ़ता जा रहा है उसका मुख्य कारण भी दूषित वातावरण में तैयार सड़े हुए खाने को ग्रहण करना l
बर्तन की गुणवत्ता का भी महत्वपूर्ण कारण है l मानव ने मिट्टी के बर्तनों का आविष्कार किया था मिट्टी में काफ़ी पोषक तत्व विद्यमान होते है उन्हीं बर्तनों में भोजन पकाया जाता था जो शरीर के स्वास्थ्य के लिए लाभदायक साबित हुआ ओर इसी के साथ कांसे के बर्तनों का भी प्रयोग स्वास्थ्य के लिए उत्तम माना जानें लगा लेकिन, बदलते दौर में इन बर्तनों की जगह चकाचौंध चमकने वाले एल्यूमिनियम परत के बर्तन उपयोग में आने लगे है और मिट्टी जैसी पोषक तत्व के बर्तनों को अनदेखा कर दिया गया और हम खाने को इन एल्यूमिनियम में खाना बनाकर हमारे शरीर के हम जहर तैयार कर रहें हैं l
बढ़ती चकाचौंध से हमारे खाने में भी चकाचौंध चढ़ गई है, जितना शाही खाना होगा वो उतना ही ऊंचे दर्जे का समझा जायेगा वही दूसरी ओर, सामान्य खाना जिसे सात्विक की श्रेणी में रखा गया है जिसे पूर्व के समय आध्यात्मिक दौर में उच्च कोटि का खाना समझा था, वहीं आज की पीढ़ी इस सात्विक खाने को निम्न दर्जे और बीमार लोगों का खाना बताती है lशाही खानें को इस तरीके से सड़ाकर खाते है वो कुछ समय में वो शरीर बीमारी को दावत देने लगता है l नीम , हकीम, डाक्टर के द्वारा ये सलाह दी जाती है की कम तेल, मिर्च और नमक और शाही खानें को अब कम करों तुम्हारे शरीर ने बीमारी की दावत दे दी है lवर्तमान पीढ़ी सात्विक और शाही खानें को अलग अंदाज से देखती है, जिससे आज की युवा पीढी, बच्चें जल्दी मानसिक संतुलन खो बैठते है जिस कारण से आत्महत्या जैसी चीज अग्रसर हो रही है l
“जीने के लिए खाओ न की खानें के लिए जियो”
नोट: खानें की वास्तविकता को पहचानना ही वर्तमान जीवन शैली की सत्यता है l