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हे भारत भुमि तुझे नमन,
हे साधू संस्कृति तुझे नमन।
ये देश है वेद पुराणो का,
ये देश है तप साधनाओं का।
कह गये लोग यही,
पाना हो मुक्ती जिसे
रहना नारी से दूर ही।
नारी ही है माया,नारी से ही जग भरमाया।
पर सच पुछो तो मैं ये बात कहूं
नारी होकर भी कब तब चुप यूं रहूं?
नारी जीवन से बड़ा कोई तप नहींं।
गृहस्थ से बड़ा कोई जप नहीं।
जन्म से पहले ही न जाने
कितनी चुन्नौतियाँ मिली।
किसी को कोख में ही मार डाला
तो किसी ये जिंदगानी मिली।
आने से उसके सब खुश थे भी या नहीं,
खत्म न होती चुनौतिया उसकी यहीं।
स्कूलो से कॉलेजों तक का सफर था कठिन
हर परिस्तिथियों को जीतना था बड़ा जटिल।
कुरूप हो यदि तो मजाक की पात्र बनी।
रब ने दी गर खुबसुरती तो बलि समाज की बनी।
पार कर भी ली ईन सबको किसी तरह,
रूख पलटा उसका प्रियवर की तरह।
सज धज डोली पे बैठी वो,
राहें थी बिलकुल अनुठी वो।
खुद की खुशियॉं भी भूल गयी,
न जाने उसकी खुशियॉं कहाँ गयी।
कर के जतन भी वो जीत न पाती,
देकर भी सब वो पीहर सा प्रीत न पाती।
और कहूं कितनी उसकी व्यथा ,
खत्म ना होती जीवनभर नारी तपस्या।।
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