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बांग्लादेश के हालात इन दिनों बेहद ख़राब नजर आ रहे हैं. बांग्लादेश में वहां के बहुसंख्यक समाज द्वारा वहां के अल्पसंख्यकों पर निरंतर अत्याचार किए जा रहे हैं. बांग्लादेश में सभी अल्पसंख्यकों को बहुसंख्यकों द्वारा निशाना बनाया जा रहा है, फिर वो चाहे किसी भी धर्म के अनुयायी हों. बांग्लादेश में हिन्दुओं के साथ-साथ ईसाई और बौद्ध धर्म के मानने वाले लोग भी इस हिंसा का शिकार हो रहे हैं.

बांग्लादेश में न सिर्फ अल्पसंख्यकों के धार्मिक स्थलों को तोड़ा जा रहा है. बल्कि साथ ही साथ उनके घरों को भी उपद्रवियों द्वारा निशाना बनाया जा रहा है. इसके अलावा उन लोगों को जानवरों की तरह पीटा भी जा रहा है, और तो और उनके घरों की महिलाओं के साथ इन वहशी दरिन्दों द्वारा दुष्कर्म भी किया जा रहा है. ये सब बड़ा ही दुर्भाग्यपूर्ण, दुखद और निंदनीय है. ये घटनाएं सभ्य समाज के लिए कलंक की तरह हैं और मानवता को शर्मसार करने वाली हैं.

वहां इस तरह की घटनाओं की शुरुआत तब से हुई, जब से वहां सत्ता परिवर्तन हुआ है. बांग्लादेश में हाल ही में सत्ताधारी शेख हसीना सरकार का तख्तापलट हुआ था. ऐसा तब हुआ जब बांग्लादेश में चल रहे छात्रों के हिंसक प्रदर्शन को रोकने में तत्कालीन शेख हसीना सरकार नाकाम रही थी. सुप्रीम कोर्ट के कोटा सुधार संबंधी एक निर्णय के खिलाफ शुरू हुए इस प्रदर्शन में कई लोगों की जान भी गई थी.

शेख हसीना सरकार से नाराज उग्र छात्रों ने अपने हिंसक प्रदर्शन से न सिर्फ बांग्लादेश की पीएम शेख हसीना को पद छोड़ने पर विवश कर दिया, बल्कि उनके आवास पर भी कब्ज़ा कर उन्हें देश छोड़कर भागने के लिए विवश कर दिया. उपद्रवियों ने उनके आवास में जमकर लूटपाट की. इसके बाद बांग्लादेशी पीएम शेख हसीना को बांग्लादेश से जान बचाकर भागने और फिर भारत में राजनीतिक शरण लेने के लिए विवश होना पड़ा. इन दिनों वो भारत में ही राजनीतिक शरण लिए हुए हैं.

इस सब घटनाक्रम के बाद वहां एक अंतरिम सरकार का गठन किया गया, जिसकी अगुवाई नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद युनुस कर रहे हैं. मोहम्मद युनुस सरकार के सत्ता में आने के बाद बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की स्थिति और भी दयनीय हो गई. बांग्लादेश की इस अंतरिम सरकार की शह मिलने के कारण दंगाइयों के हौसले और भी बुलंद हो गए हैं. इस सरकार के गठन के बाद बांग्लादेश के बहुसंख्यकों ने अल्पसंख्यकों पर जुल्म करने शुरू कर दिए.

बांग्लादेश में इस तरह की घटनाओं का जो सिलसिला शुरू हुआ है, वो अभी भी जारी है. बड़े दुख की बात है कि ये उपद्रवी बेकसूर लोगों पर जरा भी रहम नहीं खा रहे हैं. बांग्लादेश की वर्तमान स्थिति को देखकर तो यही लगता है कि वहां की सरकार, सेना, पुलिस और प्रशासन का भी इन हिंसक तत्वों को पूर्ण रूप से मूक समर्थन प्राप्त है, इसीलिए ये इतने बेख़ौफ़ होकर इस तरह की घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं, वर्ना उपद्रवी तत्वों के लिए ये सब इतने समय तक कर पाना इतना आसान नहीं होता.

हैरान करने वाला है गैर मजहबी आधार पर बने बांग्लादेश का ये उन्मादी घटनाक्रम -

बांग्लादेश में चल रहा हिंसा का ये घटनाक्रम इसलिए हैरान करने वाला है, क्योंकि बांग्लादेश के निर्माण के पीछे जो वजह थी, वो धार्मिक नहीं थी. बल्कि वो वजह थी बंगाली संस्कृति और अस्मिता को बचाना, उसकी पाकिस्तानी सेना से रक्षा करना. जैसा कि सर्व विदित है कि सन 1971 में पूर्वी पाकिस्तान में बांग्लादेश का निर्माण भारत की सहायता से तब किया गया था, जब वहां पाकिस्तानी सेना के जुल्म हद से ज्यादा बढ़ गए थे.

उस समय पाकिस्तानी सेना के जवान पूर्वी पाकिस्तान के बंगाली समाज द्वारा अलग देश की मांग किए जाने पर उनका दमन कर रहे थे. उन पर तरह-तरह के अत्याचार ढहा रहे थे. न सिर्फ उनको पीटा जा रहा था, बल्कि उन लोगों को मौत के घाट तक उतारा जा रहा था. उनकी महिलाओं पर पाकिस्तानी सेना वहशी बन कर टूट रही थी. इन महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार किया जा रहा था. उनके शारीर को ये लोग जानवरों की तरह नोच रहे थे.

ये सब अत्याचार पूर्वी पाकिस्तान में रहने वाले सम्पूर्ण बंगाली समाज पर बिना धार्मिक भेदभाव के किए जा रहे थे. पूरे बंगाली समाज को पाकिस्तानी सैनिक अपना निशाना बना रहे थे, फिर वो चाहे हिन्दू बंगाली हों या मुस्लिम बंगाली. हर कोई समान रूप से पाकिस्तानी सेना के जुल्म का शिकार बना. पाकिस्तानी सेना के जुल्म इतने बढ़े कि पूरा बंगाली समाज ही विद्रोही बन गया और कंधे से कन्धा मिलाकर इस मुक्ति आन्दोलन का हिस्सा बन गया.

शुरुआत में पाकिस्तान का आन्तरिक मामला होने के कारण भारत ने हस्तक्षेप करना उचित नहीं समझा, लेकिन जब पाकिस्तानी सैनिकों के जुल्म की इंतेहा हो गई, तो तत्कालीन इंदिरा सरकार ने इस मामले में हस्तक्षेप किया. भारत की शक्तिशाली सेना के सामने पाकिस्तानी सेना टिक नहीं सकी और उसने आखिरकार उसने भारतीय सेना के आगे घुटने टेक दिए और आत्मसमर्पण कर दिया.

इसके बाद बंगाली समाज की इच्छा के अनुसार पाकिस्तान के पूर्वी भाग को अलग कर एक अलग देश बना दिया गया. बंगाली समाज के लिए बनाए गए इस नए देश को बांग्लादेश का नाम दिया गया. नए देश के जन्म का आधार बांग्ला भाषी सम्पूर्ण बंगाली समाज के हितों की रक्षा करना था, इसमें मुस्लिम और हिन्दू दोनों ही शामिल थे. इनके मजहब जरुर अलग-अलग थे, लेकिन संस्कृति एक ही थी. दोनों समुदाय की संस्कृति में कोई खास अंतर नहीं था.

इसलिए बांग्लादेश में आज जो हो रहा है, वो दुखदायी होने के साथ-साथ हैरान करने वाला भी है. ऐसा लगता है कि आज बांग्लादेश की नई पीढ़ी के मुस्लिम युवा भटक गए हैं. वो मजहबी जूनून में पागल होकर वहां के हिन्दू और अन्य अल्पसंख्यक समाज के साथ अमानवीय व्यवहार कर रहे हैं. उन्हें ये भी होश नहीं है कि वो जिन पर जुल्म कर रहे हैं, वो कोई परदेशी नहीं, बल्कि उन्हीं के देश के नागरिक हैं. इन लोगों ने भी आजादी के संघर्ष में अपना बराबर का योगदान दिया था. उन्मादी लोग ये भी भूल गए हैं कि जो जुल्म वो आज वो कर रहे हैं, अतीत में उन्हीं जुल्मों का दंश उनके पूर्वज भी झेल चुके हैं. इस घटनाक्रम से उनकी आत्मा भी दुख रही होगी.

इसके अलावा ये लोग ये भी भूल रहे हैं कि जिस भारत को वो अपना दुश्मन मान रहे हैं, उसके बिना बांग्लादेश का निर्माण संभव नहीं था. यदि भारतीय सेना हस्तक्षेप नहीं करती तो पाकिस्तानी सेना के क्रूर सैनिक उनका पूरी तरह दमन कर डालते और उनका अस्तित्व खतरे में पड़ जाता. साथ ही अलग देश का उनका सपना भी अधूरा ही रह जाता. लेकिन ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि धर्मान्धता की वजह से धार्मिक कट्टरवाद के शिकार होकर ये लोग भारत को शत्रु और अपने दमन करने वाले पाकिस्तान को मजहबी आधार पर अपना दोस्त समझ रहे हैं. यदि समय रहते इन लोगों ने सबक नहीं सीखा, तो भविष्य में इन्हें इसके गंभीर परिणाम भुगतने पड़ेंगे.  

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