हिंदी फिल्मों के जाने-माने अभिनेता मनोज कुमार शनिवार को राजकीय सम्मान के साथ पंचतत्व में विलीन हो गए. उनका शुक्रवार, 4 अप्रैल को 87 साल की उम्र में मुंबई के कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी हॉस्पिटल में निधन हो गया था. फ़िल्मकार मनोज कुमार का वास्तविक नाम हरि कृष्ण गिरी गोस्वामी था. उनका जन्म 24 जुलाई 1937 को अविभाजित भारत के एबटाबाद में हुआ था, जो अब पाकिस्तान का हिस्सा है. उनके अंतिम संस्कार में गुजरे जमाने के कलाकारों से लेकर वर्तमान कलाकारों तक ने शिरकत की और अपनी ओर से उन्हें श्रधांजलि दी.

मनोज कुमार जी सिर्फ एक शानदार अभिनेता ही नहीं थे, बल्कि वो साथ ही एक अच्छे निर्माता, निर्देशक, लेखक, पटकथाकार, संवाद लेखक, गीतकार और सम्पादक भी थे. अपने शानदार काम के जरिए दुनियाभर में अपना लोहा मनवाने वाले फ़िल्मकार मनोज कुमार को 2015 में फिल्मों के सर्वोच्च पुरस्कार 'दादा साहेब फाल्के अवार्ड' से नवाजा जा चुका है. इसके अलावा वो 7 बार प्रतिष्ठित 'फिल्म फेयर अवार्ड' जीत चुके हैं, साथ ही वो प्रतिष्ठित 'राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार' भी जीत चुके हैं. इसके अतिरिक्त उन्हें भारत के प्रमुख नागरिक सम्मान 'पदम श्री' से भी सम्मानित किया जा चुका है.

मनोज कुमार ने अपने प्रोडक्शन हाउस के जरिए कई फिल्मों का निर्माण किया. इनमें से ज्यादातर फ़िल्में उन्होंने देशभक्ति की बनाईं. अपनी इन देशभक्ति की फिल्मों के माध्यम से उन्होंने देश की कई पीढ़ियों के अंदर देशप्रेम की अलख जगाई. उनकी देशप्रेम को समर्पित फिल्मों में 'उपकार', 'शहीद', 'पूरब और पश्चिम', रोटी कपड़ा और मकान', 'जय हिन्द', 'देशवासी', 'क्रांति' आदि प्रमुख हैं. अपनी इन्हीं देशभक्ति से ओतप्रोत फिल्मों के कारण वो अपने चाहने वालों के बीच भारत कुमार के नाम से विख्यात थे.

देशभक्ति की फ़िल्में बनाने की प्रेरणा उन्हें फिल्म 'शहीद' में भगत सिंह जी का किरदार निभाने के दौरान मिली. इस रोल में जान फूंकने के लिए उन्होंने शहीद ए आजम भगत सिंह के बारे में काफी रिसर्च की. इस दौरान वो भगत सिंह जी के विचारों से बहुत ज्यादा प्रभावित हो गए. उनके मन में देश के लिए कुछ करने का जज्बा जाग गया. फिर उन्होंने देशभक्ति की ऐसी अलख जगाई कि जिसने लाखों-करोड़ों लोगों को देशप्रेम के लिए प्रेरित कर दिया. उनकी इसी बात से प्रभावित होकर भारत के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी ने उनसे अपने प्रसिद्ध नारे 'जय जवान जय किसान' पर फिल्म बनाने को कहा. मनोज कुमार जी ने उन्हें निराश नहीं किया और 'उपकार' जैसी अमर फिल्म बनाई.

दिलेर फ़िल्मकार और दोस्तों के दोस्त थे मनोज कुमार

मनोज कुमार ने बिना व्यवसायिक सफलता की चिंता किए हुए अपनी फ़िल्मों का निर्माण किया. वो एक निडर और जांबाज फ़िल्मकार थे. उन्होंने अलग-अलग विषयों पर अपनी फ़िल्में बनाईं. उनकी फिल्मों में देश और समाज के बारे में बात की जाती थी. उनकी फिल्मों में आम जनता से जुड़ी समस्याओं को उठाया जाता था. इस कारण से उनकी फ़िल्में सीधे लोगों के दिलों में घर कर जाती थीं और यही वजह है कि उन्हें व उनकी फिल्मों को लोगों का भरपूर प्यार मिलता था. इसके अलावा मनोज कुमार ने अपनी फिल्मों में काम करने वाले कलाकारों को उनकी अभिनय की पूरी रेंज साबित करने का भरपूर अवसर दिया और उन्हें उनकी सालों से बंधी-बंधाई छवि से बाहर निकाला.

जाने-माने अभिनेता प्राण इसका जीता जागता उदाहरण हैं. मनोज कुमार ने अपनी फिल्म 'उपकार' के जरिए उस समय हिंदी फिल्मों के सबसे बड़े खलनायक माने जाने वाले प्राण को एक नई पहचान दी. दरअसल विलेन प्राण को उनके जीवंत अभिनय के कारण लोग सच में ही बुरा आदमी समझ लिया करते थे. लेकिन इसके बावजूद भी मनोज कुमार ने बड़ा रिस्क लेते हुए उन्हें पॉजिटिव रोल में कास्ट किया. शानदार अभिनेता प्राण ने भी उन्हें कतई निराश नहीं किया और मलंग चाचा के रोल में जान डाल दी. लोगों को भी प्राण साहब का काम बहुत पसंद आया और दर्शकों ने प्राण जी को इस रोल में खूब प्यार दिया.

वैसे मनोज कुमार ने अपनी फिल्मों के जरिए न केवल अभिनेता प्राण बल्कि कई अन्य अभिनेताओं को भी उनकी बंधी-बंधाई इमेज से इतर एक नई पहचान प्रदान की. इनमें प्रेम चोपड़ा, मदन पुरी, प्रेम नाथ, मनमोहन आदि प्रमुख हैं. साथ ही मनोज कुमार दोस्तों के दोस्त भी थे. उन्होंने जिससे भी दोस्ती की, उसे पूरी तरह से निभाया. उन्होंने अभिनेता धर्मेन्द्र, राजेन्द्र कुमार, दिलीप कुमार, प्राण, प्रेम चोपड़ा, लेखक सलीम खान और गीतकार संतोष आनंद आदि से अपनी दोस्ती को जीवनभर बखूबी निभाया. धर्मेन्द्र और अमिताभ बच्चन को तो उन्होंने सफलता नहीं मिलने के बाद निराश होकर बॉलीवुड छोड़ने का निर्णय लेने के बाद उन्हें समझा-बुझाकर ऐसा करने से रोका.

मनोज कुमार के ओरिजनल क्रिएटिविटी, दिल लगाकर काम करना और साफगोई रखने के गुण

फ़िल्मकार मनोज कुमार एक बात हमेशा गर्व से कहते थे कि "मेरा काम किसी को भी अच्छा या बुरा लग सकता है. इस वजह से कोई भी मेरे काम की तारीफ या आलोचना कर सकता है, इसके लिए वो पूरी तरह स्वतंत्र है, लेकिन कोई भी मेरे काम को चोरी का काम नहीं कह सकता. मेरी फिल्मों की स्टोरी हो या गीत-संगीत मेरा हर काम एकदम ओरिजनल होता है, इसलिए कोई भी मुझ पर चोरी का आरोप नहीं लगा सकता. वो ये नहीं कह सकता कि मैंने ये चीज कहीं से कॉपी की है. यह मेरे जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है."

एक ओर जहाँ सभी सफल कलाकार कई-कई शिफ्टों में काम कर अनगिनत फ़िल्में करते हैं, वहीं मनोज कुमार जी ने अपने करियर में सफल होने के बावजूद भी बहुत ही सीमित काम किया. इसकी वजह ये थी कि वो जो भी काम करते थे, वो पूरे दिल से, तन्मयता से और समर्पित होकर करते थे. यदि वो चाहते तो जब वो अपने पीक पर थे, तो कई-कई शिफ्टों में काम करके अनगिनत फिल्मों में काम कर सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया. उन्होंने अपने करियर में एक ही शिफ्ट में काम किया, इस कारण से इतने लम्बे करियर के बाद भी उनका काम बहुत सीमित रहा. लेकिन उनके काम में क्वालिटी की कोई कमी नहीं रही, इसलिए उनका प्रत्येक काम यादगार रहा और उनके हर काम को लोगों द्वारा खूब पसंद किया गया. .

इसके अलावा उनकी एक विशेषता यह भी थी कि वो अपने दिल में कुछ नहीं रखते थे, जो भी दिल में आता था वो बिल्कुल साफगोई से सामने वाले को बता दिया करते थे. हालाँकि इस साफगोई के कारण कभी-कभी लोग उनसे नाराज भी हो जाया करते थे. शाहरुख़ खान ने जब अपनी फिल्म 'ओम शांति ओम' में

एक करेक्टर के माध्यम से उनकी खिल्ली उड़ाने का प्रयास किया, तो उन्हें ये बुरा लगा और उन्होंने इस बात पर शाहरुख़ खान के प्रति खुलकर अपनी नाराजगी जाहिर की. इसी साफगोई के चलते इमरजेंसी के दौरान सरकार के निर्णयों का विरोध करने के कारण तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी उनसे नाराज हो गईं थी, लेकिन मनोज कुमार ने इसकी चिंता नहीं की.

मनोज कुमार जी भले ही अब हमारे बीच नहीं रहे हों, लेकिन अपने काम के जरिए वो हमेशा लोगों के दिलों में जीवित रहेंगे. उनकी अमर फ़िल्में और उनका शानदार कार्य हमें उनकी हमेशा याद दिलाता रहेगा. स्वाधीनता दिवस और गणतंत्र दिवस पर उनके देशभक्ति से भरे गीत हमें बार-बार उनकी याद दिलाते रहेंगे. महान फ़िल्मकार मनोज कुमार उर्फ़ भारत कुमार को हम सभी की ओर से विनम्र श्रधांजलि. 

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