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फोन था जल्दी मिलने आओ , तबीयत बहुत खराब है तुम्हारे पिता की। बेटी दौड़ पड़ी 600 किलोमीटर की दूरी जो तय करनी थी। कार बुक की उसी समय । अस्पताल में पिता इमरजेंसी यूनिट में थे। अस्पताल ने केंसर बता कर भर्ती किया था। मोबाइल नीचे रिसेप्शन पर रखवा लिया गया कि मोबाइल अन्दर नहीं ले जा सकते।

पिता का केंसर की गांठ का आपरेशन हुआ था। सरकारी मेडिकल खर्चे पर - मुफ्त इलाज योजना में। उस दिन मिल ली या कहें देखा पिता को, क्योंकि बेहोशी की हालत में थे। आपरेशन में खून ज्यादा बह गया तो जीवन और मौत के बीच थे।

बेटी मां के साथ आयी थी । उसके माता-पिता का तलाक 10 साल पहले हो गया था। मां अन्दर नहीं गयी क्योंकि कुछ कारणों से उन्हें अपनी सुरक्षा की परवाह करनी थी मोबाइल रिसेप्शन पर देकर छठे माले पर बीमार से मिलने जाना उन्हें अजीब लग रहा था। 600 किलोमीटर दूर अस्पताल का चयन भी अपने आप में कुछ कह रहा था। जिस होटल में रूके वहां का स्टाफ भी उन्हें असुरक्षित कर रहा था। गर्मियों में पीने का पानी मांगने पर भी न देना। कमरे में एक भी खिड़की न होना , बार बार लाइटें बन्द कर देना कमरे कि लाईट आ ही नहीं रही। ससुराल वालों ने कभी उसकी मां को पसंद भी नहीं किया था। मां ने दूसरे दिन लौट जाने की बात कही। बेटी लौट आयी अपने शहर। एक हफ्ते बाद खबर थी कि ठीक हो रहे हैं।

एक बार फिर फोन बजा , एक रात को कि अन्तिम वक्त ही समझों और आ जाओ। बेटी ने फिर कार बुक की । मां को कुछ अनहोनी का एहसास हुआ। उन्होंने इन्टरनेट पर दिये करीब सभी नम्बर पर फोन किया कि अस्पताल प्रशासन से बात हो जाये । बहुत देर तक कोई नम्बर नहीं लगा।

फिर एक नम्बर लगा उसने सूचना मांगी तो दूसरे नम्बर पर बात करने को कहा गया। किसी ने फोन नहीं उठाया। मां को ससुराल में फोन करना पड़ा। काफी देर तक किसी ने फोन नहीं उठाया। फिर उठाया तो सूचना मिली कि बेटी के पिता दुनिया में नहीं रहें। मां ने ससुराल वालों से पूछा वो बेटी को लेकर आये तब तक शरीर को रखेंगे। जो जवाब था उसी में उत्तर छुपा था कि आप लोग कहोगे तो रख देंगे पर शरीर सड़ जायेगा तब तक।

मां जानती थी बेटी 600 किमी की दूरी तय भी कर लेगी तो उसे दाह-संस्कार का अधिकार नहीं मिलेगा । शरीर जलाया जा चुका होगा । बिताये थे उसने पति के साथ दस साल। सम्मान नहीं मिला था उसे , जिसकी वो हकदार थी।

बेटी भी नहीं चाहती थी कि उसे अन्तिम दर्शन करने है सिर्फ इसलिए शरीर दुख पाये , दुखी मन से कह दिया कि आप ही दाह-संस्कार कर दीजिए। वीडियो कालिंग के कहां गया कि अस्पताल से तो नहीं दर्शन करवाए गये पर जब अन्तिम विदाई हो तो उसे पिता के दर्शन करने का हक मिले।

हक नहीं मिला उसे कि वीडियो कालिंग नहीं लग रही है मोबाइल पर सूचना दे दी। मां ने वीडियो काॅल मिलाया कि अन्तिम दर्शन करने का हक है बेटी को। पर चिता जलायी जा चुकी थी। बेटी जलती चिता को देखकर, नमन कर , आंसू बहा रही थी। मां ने एक बार फिर अपमानित महसूस किया क्योंकि इस बार बेटी का हक छीना गया था। मृत्यु प्रमाण पत्र पर भी ससुराल का कब्जा था । अस्पताल ने मृत्यु प्रमाण पत्र नहीं दिया है हमने तो अपनी जान पहचान से यहां के नगर निगम से मृत्यु प्रमाण पत्र ले लिया है जिसका एक अस्पष्ट फोटो बेटी को वाट्स एप भेज दिया गया है।

इन्सानी रिश्ते ऐसे ही होते हैं। पर सरकारी योजनाओं में मुफ्त इलाज के नाम पर अपनों को सैकड़ों किमी दूर इलाज के लिए ले जाया जाये तो कुछ अधिकार सुनिश्चित होने ही चाहिए कि माता-पिता को बच्चों से और बच्चों को माता-पिता से अन्तिम समय में मिलने का हक मिलेगा।

बेटी चुप थी । चुपचाप दर्द सहन कर रही थी। मां ने जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रतियोगी परीक्षा का फार्म भरवाया और आनलाइन कोचिंग का फार्म भरवा दिया बेटी को। दर्द भक्त के साथ कम होता ही है ।

जीवन में बहुत से हक समाज और रिश्तेदार छीन लेंगे। इन सब से आगे बढ़ने की ताकत रखना । शिक्षा ही वो काबिलियत है जिससे अन्याय से लड़ सकते हो। 

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