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साशि, जब बार बार बीमार होने लगी तो उसके मन में प्रश्न उठा कि कारण क्या हो सकता हैं। सुबह उठकर व्यायाम करना, अच्छी नींद लेना, समय पर खाना खाना , फल खाना सब समय पर कर रही थी फिर भी स्वास्थ्य ठीक न रहना। वो हर बात पर नजर रखने लगी कि कारण पता चले बीमार होने का।
उसका ध्यान गया कि पिछले कुछ समय से दीवारों में सीलन हैं। उसने सीलन रोकने के लिए पूरी जमा पूंजी खर्च कर डाली थी फिर भी सीलन थी । कभी छत का पाइप तो कभी टंकी निशाना बनती थी और पानी बहता और पूरी दीवार गीली। कभी पड़ोसी के घर का पानी उसके घर की दीवार पर गिरता तो दीवार गीली। बारिश कम हो ज्यादा सारी दीवारें गीली। जब वो गौर से देखती तो पाती कि जमीन और दीवारों में छेद कर दिये गये है बड़े बड़े। दीवारों में छेद कर दिये गये हैं कि पानी सीधे दीवार में जाकर जमा हो जाये। दीवारों का पानी अब जमीन तक आने लगा था और जमीन भी गीली होने का एहसास कराती थी।
हर बात पर बारिकी से नजर डालने पर पता चला कि इन दीवारों से गैस बन रही है। गर्मी में गर्म गैसे और सर्दी में ठण्डी को बढ़ाने वाली गैसे। ये गैस जहरीली भी होती थी जो उसके स्वास्थ्य को खराब कर रही थी।
कोई उसे नुकसान पहुंचाना चाहता था इसलिए ये सब कर रहा था। इन गैसों से सिर दर्द और चक्कर आने लगते थे।
पहले बन्द कमरों में ये ज्यादा नुकसानदायक होती थी । अब उसने जाली के दरवाजे लगवाये थे घर में कि गैस बाहर निकलती रहे जिससे उसे राहत मिल सके। पर अब गैस की अधिकता हो रही थी। जो ज्यादा प्रभावित कर रही थी।
उसे पता था उसे नुकसान पहुंचाने वाले कौन थे। उसने अपने साथ हुए बलात्कार पर सख्त रूख अपनाते हुए पुलिस को सूचना देकर मामला दर्ज करवाया था । मामला दर्ज होने में सालों लग गये । मामला दर्ज होने के बाद भी अपराधी पांच साल से पकड़ा नहीं गया था । न्यायालय से मामले में तारीख पर तारीख मिल रही थी। न्यायप्रणाली ऐसी थी ही नहीं कि उसके पक्ष में खड़ी हो उसे न्याय दिला सके। अब तो न्यायालय जाना भी अपना खुद का अपमान करने जैसा लगने लगा था । जहां सच का पक्ष समय से न सुना जाये वहां सच जाकर क्या करें।
इस महीने भी केस में तारीख थी तो उसे परेशान किया जा रहा था पर वो अटल थी कि उसे न्याय मिलना ही चाहिए। या तो सब स्वीकार करें कि बलात्कार में रंजामंदी सबकी होती हैं क्योंकि मकसद सबक सिखाना होता है औरत को। औरत को या तो बचपन से बताया जाय कि ये समाज यही सोच रखता हैं कि औरत को शारीरिक रूप से प्रताड़ित करेगा। अगर ये स्वीकार नहीं किया जाता और कहा जाता हैं कि बलात्कार अपराध हैं तो समय से अपराधी को पकड़ कर गलती स्तर अनुसार सुधारा जाये। समाज स्वीकार तो करें कि बड़े पैमाने पर औरतों का शारीरिक शोषण किया जाता हैं। आंकड़ों के रूप में ही नहीं नैतिकता स्तर पर भी, तभी तो बदलाव की अपेक्षा की जायेगी। नैतिकता स्तर पर हर परिवार अपने सदस्यों को रोके । अभी तो मुकरने की आदत ज्यादा हैं कि नहीं हमारे परिवार का सदस्य ये काम कर ही नहीं सकता। अपराध स्वीकार कर समय से पश्चाताप करना जरूरी हैं व्यक्ति का। ऐसा नहीं हो रहा इसलिए समाज में छिपी हुई गंदगी की तरह पैर पसार हैं बलात्कार।
औरत को खुश रहने का अधिकार है। अपनी बात कहने का अधिकार है । न्याय पाने का हक हैं तो न्याय मिलना ही चाहिए। न्याय के लिए आवाज उठाने पर बीमारी के दलदल में क्यों धकेलना चाहता है समाज। इतनी बड़ी साजिश कि हवा में जहर फैलाया जा रहा हैं। इसे रोकना होगा। अपराध जिसने किया है सजा उसे ही मिलनी चाहिए, न कि उसे जो अपराध के खिलाफ आवाज उठाता हैं।