साशि, जब महाविद्यालय में थी तो प्राचार्या ने उसे बहुत स्नेह दिया था। नया महाविद्यालय था तो उसे वजीफा भी मिला था पढ़ने के लिए। स्नातक के तीनों साल वजीफा मिला और बिना किसी रूकावट के उसकी पढ़ाई पूरी हुई।
स्नातक थी और कम्प्यूटर सीखा था तो उसे एक सरकारी आफिस में कम्प्यूटर आपरेटर के पद पर नौकरी मिली। ये नौकरी छह महीने के लिए मिली थी। यहां छात्र -छात्राओ को वजीफा देने का काम किया जाता था। उसका काम था कि वजीफे के लिए आये आवेदनों को महाविद्यालय की फाइल बनाना और उसमें छात्र -छात्राओ के नाम चढ़ाना।
उसे जिस महाविद्यालय का बंडल मिलता , उसकी प्रविष्ठियां कम्प्यूटर पर करती। वहां हर रोज सैकड़ों विद्यार्थी आते कि हमें वजीफा कब तक मिल जायेगा। धीरे धीरे उसने जाना कि वजीफे की ऐवज में विद्यार्थियों से पैसे लिए जाते थे। जो पैसा दे देता था उसको कुछ ही दिन में खाते में वजीफे का पैसा मिल जाता था जो नहीं देता था हर कुछ दिनों बाद विभाग के चक्कर काटता था। वहां वजीफे का स्टेटस बताने के बदले भी पैसा लिया जाता था। पैसा न देने पर कोई जानकारी नहीं दी जाती थी।
साशि से जब कोई छात्रा पूछने आती तो वो कम्प्यूटर में देखकर उसका वजीफे का स्टेटस बता देती कि उसे कब तक वजीफा मिल जायेगा। अब उसे निर्देश मिले थे कि किसी भी विद्यार्थी से उसे बात नहीं करनी हैं सीधे अपने से बड़े अधिकारी के पास भेजना हैं। उसने उस निर्देश का पालन नहीं किया और छात्र -छात्राओ की मदद जारी रखी।
उन वजीफे के बण्डलो में उसे अपने महाविद्यालय का बंडल दिखा। उसका महाविद्यालय अब स्नातकोत्तर शिक्षा भी देता था तो पच्चीस छात्राओं का बंडल रखा था। जब जब उसने उसे उठा कर कम्प्यूटर पर चढ़ाने की कोशिश की उसे मना कर दिया गया कि अभी नहीं चढ़ाना ये बंडल कम्प्यूटर पर।
उस दिन भी वो आफिस में कम्प्यूटर पर महाविद्यालय के वजीफे के फार्म की प्रविष्टियां कर रही थी। एक छात्रा उसके पास आयी। दीदी, मेरे पापा नहीं हैं मैंने फार्म बहुत पहले भर दिया था पर अभी तक वजीफे की राशि खाते में नहीं आती हैं। उसने महाविद्यालय का नाम पूछा और कम्प्यूटर पर चैक किया तो उसका नाम नहीं था लेकिन दूसरी लड़कियों के नाम दिखाई दे रहे थे यानी बंडल चढ़ाया गया था । उसने उस महाविद्यालय का बंडल देखा तो उस लड़की का फार्म था पर उसे कम्प्यूटर में चढ़ाया नहीं गया था । उस लड़की का कहना था कि महाविद्यालय में जो पैसे देता है उसको वजीफा मिल जाता हैं जो नहीं देता उसे वजीफा कभी मिलता ही नहीं हैं। सबूत साशि के सामने था कि जब बंडल चढ़ाया तो पूरे नाम चढ़ने चाहिए थे। उस लड़की के अलावा और भी कुछ छात्राओं के नाम चढ़ाये नहीं आते थे। साशि उस लड़की की प्रविष्टि कर दी फार्म में दी जानकारी के अनुसार और उसकी आई डी भी लिख कर दे दी कि कैसे वो कम्प्यूटर में चैक करेगी कि कब तक उसके खाते में वजीफा आयेगा। साथ ही उन लड़कियों की भी प्रविष्ठियां कर दी जो उस बंडल में रह गयी थी। उस दिन उसे बड़े अधिकारी की डांट खानी पड़ी कि किसके कहने पर छात्रा का नाम चढ़ाया कम्प्यूटर में। साशि चुप रही। पर उसने बच्चों की मदद करना जारी रखा।
एक दिन उसे अफसर ने बुलाया और कहा कि आपकी सेवाएं समाप्त की जा रही हैं आप जा सकती हैं। साशि ने अपने महाविद्यालय की छात्राओं का बंडल कम्प्यूटर पर नहीं चढ़ाया था अभी तक। वो अपनी सीट पर गयी और उसने अपने महाविद्यालय की छात्राओं का बंडल ढूंढा और उसे जल्दी जल्दी कम्प्यूटर पर चढ़ाने लगी।
चपरासी ने उसे टोका कि सर आपको बुला रहे हैं। उसने कहा बस अभी आती हूं। उसने सभी लड़कियों के नाम कम्प्यूटर में फीड कर दिये। एक बार जो नाम कम्प्यूटर पर चढ़ जाते थे उन्हें कोई डिलीट नहीं कर सकता था। तो इनको वजीफा मिलेगा ही।
इस बार दूसरे कर्मचारी उसे बुलाने आये कि साहब ने बुलाया हैं। उच्च अधिकारी बहुत गुस्से में था उसने पूछा किसके कहने पर बंडल चढ़ाया कम्प्यूटर में, जाने के लिए कहा गया हैं। निकालो इस आफिस से। गेट आउट फ्राम हियर।
साशि जानती थी ऊपर से नीचे सब मिल बांटकर खाते थे रिश्वत का पैसा। उसे इस बात की सन्तुष्टि थी कि जिस प्राचार्या ने उसका स्नातक का सपना पूरा किया था वजीफा देकर आज उस महाविद्यालय की पच्चीस छात्राओं का स्नातकोत्तर करने का सपना पूरा कर दिया था वजीफे की मदद से। छात्राओं के लिए पढ़ाई के लिए आर्थिक मदद क्या मायने रखती है वो बहुत अच्छे से जानती थी । उसके पिता नहीं थे उसने भी तो वजीफे के बल पर अपनी पढ़ाई पूरी की थी।