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सड़क पर चलते हुए उसे लग रहा था कि उसका सिर चकरा रहा हैं। ये पहली बार नहीं था कुछ समय से ये अक्सर होने लगा था। सामने पताशी वाला खड़ा था तो उसका मन पताशी खाने को हुआ। पताशी खाने के बाद उसका सिर चकराना बन्द हो गया था और उसे अच्छा महसूस होने लगा। 

उसे कारण तुरन्त समझ नहीं आया। उस शाम वो टीवी पर एक मूवी देख रही थी उसमे जब एक आदमी नशा करके आता है तो उसके घर वाले उसे नीम्बू पानी पिलाते हैं कि नशा उतरे। तब उसे समझ आया था कि नशे और खट्टाई में सम्बन्ध है। खट्टाई नशा खत्म करती हैं फिर वो नींबू पानी हो या पताशी का खट्टा पानी। 

अब एक दूसरा प्रश्न था दिमाग में कि क्या घर के खाने और पानी में भी नशा हैं जो उसका सिर चकराता है। अब जब भी सिर चकराता वो नींबू पानी पी लेती थी तो उसको अच्छा महसूस होता था। उसने घर में नींबू का खट्टा अचार भी खरीद के रख लिया था कि नीम्बू न हो तो अचार का एक टुकड़ा खा लेना है। सिर चकराने की समस्या खत्म हो गयी थी इस उपाय से। सिर चकराने की समस्या सिर्फ उसको ही नहीं थी मोहल्ले की दूसरी महिलाओं को भी थी । बातों के दौरान उसने महसूस किया था कि महिलाओं के द्वारा ये कहा जाता था कि जाने क्यों आजकल सिर चकराता रहता है। कुछ का कहना था खाना खाने के बाद तीन चार घंटे सो नहीं तो सिर घूमने लगता है। कुछ का सिर खाना खाने के बाद ही दुखना शुरू कर देता था। यानि ये समस्या किसी एक महिला की नहीं थी बल्कि बहुत सारी महिलाओं की थी। ये महिलाएं नशा खरीदती नहीं थी फिर भी ये नशा उनके खाने में था जिससे उनका स्वास्थ्य प्रभावित हो रहा था। 

वक्त के साथ उसके घर के नींबू का खट्टापन गायब हो चुका था क्योंकि अब वो खाना खाने के बाद घन्टो सोती नहीं थी बल्कि जागकर अपना काम करती थी , स्वास्थ्य भी उसका अच्छा रहने लगा था, ये बात उन अपराधियों को पसंद नहीं आयी थी जो इस नशे का व्यापार करते थे। क्योंकि इस नशे के साथ शारिरिक शोषण भी तो छुपा था । नशे में सोयी महिला को ये तो एहसास होता है कुछ तो हुआ हैं पर क्या, ये बात कभी उसे समझ नहीं आती , दिमाग काम जो नहीं करता था। नशे का खर्चा शारीरिक शोषण करके वसूला जाता था। 

नींबू अब खट्टा नहीं होता था। वो पूरे नींबू को हाथ की हथेली पर निचोड़ कर रस पीने लगी थी , पर ये तो पानी की तरह होता था , खट्टा पन गायब था । नींबू का अचार का डिब्बा वक्त से पहले खत्म हो जाता था आधे से ज्यादा अचार चोरी हो जाता था। अब तो दुकानदार बदमाशी करने लगे थे कि वो लेती नींबू का खट्टा अचार थी पर घर आकर देखती वो मीठे अचार में बदल जाता था। बाद में तो दुकानदार कहने लगे थे कि नींबू का खट्टा अचार अब बनता ही नहीं है। कैरी का अचार लेने लगी थी वो। पर अचार की बर्नी इतनी जल्दी खाली हो जाती जैसे बर्नी खुद भी अचार खाने लगी थी। कभी बर्नी नीचे गिर जाती और सारा अचार फैल जाता। 

कच्ची कैरी अब खट्टी नहीं थी वो आम की तरह मीठ्ठी होती थी। कच्ची कैरी की चटनी खट्टी नहीं मीठ्ठी बनने लगी थी। 

अब जब भी वो पताशी खाने जाती , कोई आदमी आता और पताशी वाले के कान में कुछ कहता। उसके बाद पताशी वाला टूटी पताशी देना शुरू कर देता जिसमें से पताशी का पानी बह जाता, दोने में। तो पताशी खाने का मतलब ही नहीं रह जाता था। कभी कभी वो पताशी के मसाले में कुछ मिला देता जो उस आदमी द्वारा लाया जाता था , बहुत अजीब सा स्वाद, जिसे अब वो पहचानने लगी थी और तुरन्त पताशी बाहर थूक देती थी और पताशी वाले को वार्निंग देने लगी थी कि पताशी बेचने के नाम पर जो कर रहे हो वो महिलाओं को समझ में आता है। कभी कभी बिना कारण पताशी के ठेले पर पुरुषो की भीड़ कि महिलाओं को पताशी खाने को न मिले। इन पुरूषों का ग़लत तरीके से खड़ा होना बताता और ज्यादा देर तक बिना कारण वहां खड़ा रहना बताता था वो क्यों खड़े हैं इस ठेले के आसपास। 

नशे के बाजार ने महिलाओं के जीवन को बहुत प्रभावित किया है। मानव संसाधन नष्ट हो रहे हैं देश के , सरकार ध्यान देना नहीं चाहती या अनदेखा कर रही है इस बात को, ये सोचने वाला बिन्दु है। अकेली औरतें ज्यादा निशाना बनाती है। 

हम वार्ड और पंचायत स्तर पर महिलाओं के काम का मूल्यांकन उस स्तर पर नहीं कर रहे, जिस स्तर पर करना चाहिए। आधी आबादी महिलाओं की है तो उनकी सुरक्षा की परवाह तो करनी चाहिए।  जब तक नींबू का खट्टापन गायब रहेगा , महिलाओं की सुरक्षा पर प्रश्न चिन्ह लगता रहेगा। 

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