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कंधे दर्द से कराह रहे थे और कमर झुकी हुई थी मेरी,
थकी हुई पहुंची उनके द्वार और अपनी श्रमवारि बिखेरी।

यमदूतों नें राहत की साँस ली और करी अपनी पकड़ ढीली,
यमराज ज़ोर से हँस रहे थे जब द्वारपाल नें कुंडी खोली।

सामने गद्दी पर विराजमान थे वृहत खाते के साथ चित्रगुप्त,
कभी मुझे देखते थे तो कभी सोचते थे मेरी सज़ा उपयुक्त।

मेरे अच्छे- बुरे कर्मों का लेखा जोखा था यमराज के समक्ष,
पर फिर भी मैं खड़ी थी अकड़ में, जैसे वे दोनों हो विपक्ष।

आखिरकार एक भ्रष्ट नेता से पाला जो पड़ा था यमराज का,
सटीक जवाब था मेरे पास उनके हर आरोप और प्रहार का।

क्रोध में चीखते हुए उन्होंने कहा कि महिला होते हुए भी,
मैंने उनको ठेस पहुँचाई जब वे रौंदी जा रही थीं तब भी।

ओह! दूसरा आरोप और भी गहरा था, एक माँ होते हुए भी ,
मैंने कितने बच्चों को अनाथ बनाया, वे रो रहे थे अब भी।

तीसरे तक पहुंचते-पहुँचते मेरा कठोर हृदय भी सुलगने लगा,
दिखा मेरी लगवायी हुई आग का मंज़र तो मेरा ज़मीर जगा।

लावारिस लाशें यूँ ही पड़ी थीं, अधजले वृद्ध बिलख रहे थे,
बदहवाशी में अपनों को बचाने के लिये अपने ही जल रहे थे।

तभी मुझे लगा कि मेरे पैरों तले गीला सा तरल पदार्थ था,
वो और कुछ नहीं, बस उन गरीब बेकसूरों का सस्ता रक्त था।

देशभक्ति के नाम पर मैंने जो हर जाति में दंगे करवाये थे,
अमानुष् हरकतों के गवाह बन, वे मेरे लिए नर्क माँग रहे थे।

भीषण आरोंपों के बोझ तले दब कर मैं अपने दर्द भूल गयी,
तभी हाथ गया पीठ पर जहाँ खंजर घुपने के निशान थे कई।

याद आया कि मेरा कत्ल तो मेरे अपने ही महल में हुआ था,
कर रही थी मैं भोजन जब किसी नें किया धोखे से वार था।

सोचने लगी कौन हो सकता था वो जो मुझ पर भी भारी पड़ा,
किसी की मजाल नहीं थी, ढाल के जैसे मेरा आतंक था खड़ा।

मेरी इस दौड़ती सोच पर यमराज के शब्दों नें रोधक लगाया,
आवाज़ दी एक ऐसे इंसान को जिसे देख मेरा सर चकरया।

वो मेरा मूक पति था जिसने कभी भी चींटी तक न मारी थी,
निःशब्द हो गयी मैं जब सुनी की उसकी ही ये कारगुज़ारी थी।

मैंने उसको तो कभी नहीं सताया क्योंकि वो तो मेरा पालतू था,
ये दावा मैंने यमराज के सामने किया पर वो तो बेझिझक था।

चीखते हुए कहा उसने, “ फिर मौका मिला तो फिर से मारूंगा?
नहीं सहूँगा और अत्याचार, पता है मुझे नर्क में ही जाऊंगा।”

मैं अवाक् थी, इतने लोगों की घृणा ना जाने कैसे संभालूँगी?
सहमी हुई, डरी हुई खड़ी थी, लगा पापों के बोझ कैसे उठाऊँगी।

घबराते हुए पूछा अपने पति से कि वो वहाँ क्या कर रहे थे?
कटाक्ष करते हुए कहा, पापों को ढकने की सजा भोग रहे थे।

यमराज अब तक शांति से सुन रहे थे हम दोनों का वार्तालाप,
कहा, “ धीरज रखो पुत्र, दुख के बादल छँट गए, ना कर संताप।

ये वापिस जाएगी, इसका बनाया नर्क यहाँ से अधिक तगड़ा है,
और तुम हो स्वर्ग के अधिकारी, इसे मारकर पुण्य किया है!"

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