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कल मैंने अपना जन्मदिन बनाया था
मोहल्ले वालों के साथ,
ना कोई शोर था, ना कोई शोर-शराबा
बस भजन-कीर्तन का था राग।
गुब्बारे नहीं, हवा भरी रंगीन प्लास्टिक की पन्नियाँ
सजी थीं,
मोमबत्ती बुझाकर नहीं, तेल का दिया जलाकर
बनाया था।
केक नहीं, वो
टूटी-फूटी सी मीठी डबल रोटी थी,
उसे काटकर बनाया था।
ना कोई खिलौना, ना कोई फूलों का गुच्छा,
बस उपहार में दुआओं का मेला था।

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