Photo by Ricardo Moura: from pexels.com

दग मग दग मग यू सुलझी सी
अंबर की चादर में
खुदको भूला के
यू अंगरो सी फिरती है,

घराने की चिड़िया
सपनों के पंख के लिए
बैरिश की बून्दो से
थिरक थिरक
ताल से ताल मिलती है,

उसकी आँखो की
गुस्ताकी इशारो से,
सबको अपने मन की बात
सुनाती है,

यू झूम झूम के
पायल से शोर मचाकर
सबको अपना नाच
रचाती है..

.    .    .

Discus