दग मग दग मग यू सुलझी सी
अंबर की चादर में
खुदको भूला के
यू अंगरो सी फिरती है,
घराने की चिड़िया
सपनों के पंख के लिए
बैरिश की बून्दो से
थिरक थिरक
ताल से ताल मिलती है,
उसकी आँखो की
गुस्ताकी इशारो से,
सबको अपने मन की बात
सुनाती है,
यू झूम झूम के
पायल से शोर मचाकर
सबको अपना नाच
रचाती है..