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हसते खेल्ते
कश्मीर की वादियाँ बिखर गई
गोलियों की गूंज से,
माताओ की गोद सूनी हो गई,
उजड़ गया स्त्री ओ का सुहाग,
और देश को फिर रुला दिया,
एक बार

धर्म के नाम पर ये कैसी देहशत
का खेल रचा हैं
जो मानवता का चीर हरण करता
बिच बज़ार,

कब बुझेगी ये नफ़रत
की आग,
बस अब तो सीमा पार, चन्द्र पे
ग्रहण लगाने की होगी बात..

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