विचार करना
ब्रह्मांड का अनमोल रत्न मैं
क्यूं बहाते ऐसे आप
जल ही जीवन हर शास्त्र कहते,
क्यूं न माने इस बात को आप।।
बोतलों में मैं सीमित हो गया
इसका कर लो तुम संज्ञान
कितने प्यासे मरते हर दिन,
तू न जानें ओ इंसान।।
अन्न ही रक्षक अन्न ही भक्षक
अन्न को मानों तुम भगवान
पोषित करता इस शरीर को,
अन्न ही तो डालता शरीर में जान।।
शक्ति रही तो कुछ कर सकते तुम
किसी प्रण को सदा ही साथ
सही राह वो तुम्हें दिखाएं,
आधार जिसका जन कल्याण।।
प्रण करोगे तो चोट खाओगे
कटु है पर यही सत्य
वास्तविकता में जीना सीख लो,
नही तो हो नई-नई मुसीबतें तेरे द्वार।।
संसार में कोई बुरा न होता
वक्त ही दिलाता बुराई भी खास
मित्र भी तेरे शत्रु बनेंगे,
जब वक्त की पड़ेगी तुझपे मार।।
रंक से राजा पल में बनता
कभी- कभी भीख मांगता नृप भी यार
वक्त बदलते देर न लगती,
सदा परोपकार की भावना रखना साथ।।
गरीब का कोई साथ देता
उसके हक का सदा रखना ख्याल
सुखी जीवन फिर बड़ा कठिन है,
जो निस्वार्थ की भावना तुझमें खास।।