लेने चाहिए कुछ महाभारत से सबक, ये आज तुम्हें बतलाता हूं
क्षमा मांगता सबसे पहले, अगर कुछ गलत मैं कहता हूं।।
आसक्ति कभी अच्छी न होती, कर बैठता कोई पाप बड़ा
राजा शांतनु की आसक्ति ने ही तो, युवराज देवव्रत का था अधिकार छीना।।
भीष्म की जैसी प्रतिज्ञा न करना, असहाय जिनको होना पड़ा
बोल ने सकते कुछ भी बंधु, खड़े अधर्म की ओर था उनको पड़ा।।
कभी न बोलना अर्धसत्य, न अर्धसत्य पर कभी विश्वास जता
सबक दे जाती गुरु द्रोण की दशा सब,उनका सर कैसे तलवार की भेट चढ़ा।।
मोह में था जो बिल्कुल अंधा, उसे कहूं क्या अंधा
उसकी इच्छा उसकी तमन्ना, महाभारत का मुख्य कारण था वही बना।।
वशीभूत न रहना काम के यारों, जो जान का हमेशा खतरा बना
पांडू महाराज का हाल जो देखो, क्षण में मृत्यु को प्राप्त हुआ।।
अनुसरण करों न बिना सोचे-समझे, न नियति उसको अपनी बना
गांधारी की विडंबना देखो, उसने यही था मार्ग चुना।।
मंत्रो की शक्ति की परीक्षा न लेना, देखो माता कुंती का क्या हाल हुआ
दो पुत्रों को लड़-मरते देखती, सीना उसका ही छलनी हुआ।।
जुआ न खेलना जीवन में कभी भी, युधिष्ठिर सबका दोषी बना
दूसरों के जीवन का दांव लगाता, उसे कोई सही नही ठहराता।।
जिद-प्रतिशोध न हृदय रखना, दुर्योधन का उदाहरण देता
हो गया अंधा प्रतिशोध में, लोभ-लालच में पागल रहता।।
मित्र अच्छा वो सबसे प्यारा,न तुलना किसी से पाता
एहसान में दबता दुर्जन के जब,वो वीर दुर्बल रह जाता।।
मजाक न उड़ाना कभी किसी की,परिणाम हो जाए उल्टा
रानी द्रौपदी को देखो,भरी सभा में जिन्हें होना पड़ा शर्मिंदा।।
अपमान न करना नारी का,वो विनाश हमेशा लाता
दु:शासन की मौत जो देखो,थर्रा गया जो देखा।।
मित्रता करो न ऐसे शत्रु से,जो हतोत्साहित करता
ध्यान भटकाता लक्ष्य से,सारथी शल्य को देख जरा।।
निश्चित होकर सोना युद्ध में,शत्रु रहता चौकन्ना बड़ा
देख लो मृत्यू द्रौपदी पुत्रों की,जिन्हें अश्वथामा का शिकार था होना पड़ा।।
अनियंत्रित हो जाता क्रोध में जो भी,पश्चाताप के घूंट को उसे पीना पड़ा
पांडव वंश को मिटाने हेतु,अश्वथामा भुला वो यौद्घा बड़ा।।
अर्धज्ञान भी तुम कभी न रखना,बुनता भ्रमजाल खतरों से भरा
चक्रव्यूह में फसता अभिमन्यु,तब योद्धा न उसके साथ खड़ा।।
दान भी देना सोच-समझकर,विधान दान का विकट बड़ा
स्वर्ग से धरती पर आना पड़ा था,जब दान न अन्न का कर्ण किया।।
वक्त से पहले शक्ति प्रदर्शन न करना,प्रभाव उसका मंहगा बड़ा
यकीन न हो तो कथा सुनो,शीश बरबरीक को कैसे देना पड़ा।।
क्रोध दिलाता भयंकर कर्म जो,परिणाम पर उसके ध्यान लगा
शुद्ध-बुद्ध होते धर्मात्मा परीक्षित,पहना आए साधु को एक सांप मरा।।
परिवारिक क्लेश कितना भयंकर होता,कुल का होता नाश बड़ा
यादववंश के विनाश को देखो,देखता कृष्णा भी वही खड़ा।।