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बालकनी में बैठे हाथ में कॉफी लिए वह आते जाते हवाई जहाज़ को देख रहा था। मानो जैसे सोच रहा हो कि हवाई जहाज़ में बैठकर किसी महफूज़ जगह जाकर बस जाए। भाग जाए इस सबसे दूर। सोचता उसका घर महफूज़ है पर कितने दिनों तक? कुछ दिनों तक। फिर से शोर शुरू। यह वह क्यों कैसे कब तक? तो घर जाने का ख्याल उसने निकाल फेंका। पर यहां तो रहा नहीं जा रहा। क्योंकि यहां का शोर कुछ ज़्यादा ही था। क्यों क्या कैसे औकात सैटिस्फैक्शन comparison इसको उसको देखो। कितनी बार तो गहरी सांस भरकर उसने इस सबसे भागने की कोशिश की थी। पर कितनी बार ऐसा कर पाता? सिर चकरा जाता। उसने सोचा कहाँ जाऊं कहाँ?

कहीं और जाऊं भी तो क्या अंदर का शोर शांत हो जाएगा? जो सोचा था चाहा था देखा था यह शोर यहां से भाग भी जाऊं तो कहीं और चैन से बैठने देगा? आगे पीछे कुछ नहीं। बार-बार वही एक निर्णय सामने आ जाता और फिर एक सवाल क्यूँ? दिमाग भरा हुआ था न जाने कौन कौन से खयालों से। एक ख़्याल की उपज और वह सारे ख़्याल- जब जब वह हारा था एक साथ मंडराने लगते। घने अंधेरे बादल से। बचना मुश्किल हो गया था। जहाँ जाता बादलों की परछाई पीछा नहीं छोड़ती। एक कदम बढ़ाया परछाई पीछे। तंग आ गया था वह अपने आप से और इस सवाल से क्यूँ? बाकी भी तो आसानी से कर जा रहे हैं और मैं ही क्यों? किसी भी चीज़ में मन नहीं लग रहा था। यह करे वह करे क्या करे? आआआआआआ! आवाज़ नहीं आई बस अंदर ही अंदर वह चीखा। पर खाली नहीं हुआ। कैसे खाली करूँ? इससे उससे बात करूं पर इससे-उससे वालों का भी कुछ न कुछ था तो वह क्या ही...

कोशिश की अपने आप को प्रेरित करने की। कथित उपाय अपनाने की गाने सुने, उपासना करें, मेडिटेशन ब्ला ब्ला! घड़ी भर शांति और फिर से वही सब। विचारों को मोड़ने की कोशिश की कुछ नहीं हुआ। बार बार वही सब दिमाग को अंदर से खाए जा रहा था। अब तो कॉफी भी खत्म होगई। अब क्या करूँ? आस पास सारे दरवाज़ें बन्द थे। कहीं कोई खुलता भी तो तुरंत बंद हो जाता। पता नहीं क्यूँ? उसने गर्दन हिलाई जोरो-जोरो से। शायद दिमाग को हल्का करने की कोशिश। कुछ बाल झड़ गए पर विचार नहीं। वह तो अब भी मौजूद थे कहीं कोने में। क्या करूँ क्या करूँ? 

बालकनी से नीचे झाँका। वह पांचवे फ्लोर पर रहता था। नहीं! पीछे हो गया वहीं पर जहां से उठा था। क्या करूँ क्या करूँ? उसे याद आया किसी ने उससे कहा था फिजिकल एक्सरसाइज करने से सब कुछ पसीने के साथ खाली हो जाता है। एका एक उसने पहना हुआ स्वेटर उतार दिया और भागने लगा। एक दो तीन चार ऐसे करते हुए वह भागता रहा। गति बढ़ाकर। पसीना उभरने लगा था। सांस तेज़ हो गई। रुका नहीं भागता रहा। उसे महसूस होने लगा कि पसीने के साथ भरा हुआ पतझड़ के भांति झड़ता जा रहा है। फिर भी वह रुका नहीं भागता रहा। क्यूंकि भरा हुआ बहुत ज़्यादा था। सिर्फ आज का नहीं हर रोज़ का। सालों का। हर दिन उसमें इज़ाफ़ा होता गया। अब वह इतना भर गया था कि एक एक करके बहने लगा था। दरारे बढ़ने लगी थी। बांध कांपने लगा था। अब टूटा यह टूटा पर वह अब भी खाली नहीं हुआ था। बहुत ज़्यादा था। एक एक करके बहते जा रहा था। गति और बढ़ गई। और तेज़ भागने लगा। और तेज़! पहले एक एक करके खाली हो रहा था अब दो-दो-तीन-तीन-चार-चार-तीन-तीन-चार-चार-तीन-चार-चार-चार-चार-चार। वह और तेज़ हो गया यह सोचकर कि आज ही सबकुछ खाली कर दूंगा। बस थोड़ा और। पता नहीं एका एक उसमें इतनी जान कहाँ से आई थी। और तेज़ होगया। इतना तेज़ की लग रहा था धरती कांप रही है। फिर भी वह रुकना नहीं चाहता था। बस थोड़ा और। आंखें लाल हो आई थी जैसे झटके से बाहर आ जाएंगी। नसें फटने लगी थी। सांस और तेज़ हो गई। फिर भी वह रुका नहीं। बस थोड़ा और! बस थोड़ा और। उसे लगा जैसे एकाएक आसपास शोर शांत हुआ है। न चु न न थूं। सब शांत! वह और भागने लगा। सारी सीमा तोड़कर। पहले चार-चार-पांच था अब दस-दस पँद्रह-बीस-बीस फिर भी रुका नहीं। बस थोड़ा और....थोड़ा और....आआ...धम्म से उसका सारा शरीर ज़मीन से जा मिला। अब वह न हिल रहा था न डुल रहा था। पर पिंजरा अब भी पूरी तरह से खाली नहीं हुआ था..

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