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हम तो दीवाने रहें है किताबों के‎
जानें कैसे रहें है बिन पढ़े।
‎न रह सकेंगे बिन पढ़े।।
‎इंतजार है उस घड़ी का 
‎जो इंतजार कर रही है।
‎हम तो तैयार बैठे है 
‎जानने को उत्सुक बैठे है।।
‎एक नई दुनिया की सैर 
‎करने तैयार बैठे है।।

‎हम तो दीवाने रहें हैं किताबों के 
‎अस्त होना उस अतर में।
‎जो नया रहन देती हैं।।
‎आंखें नम भी होती है 
‎दर्द सा भी उठता है कभी।
‎खिलखिलाकर शुभाये भी
‎दिल को छू जाती है।। 
‎गीत भी है कहानी भी 
‎नाटक और एकांकी भी।
‎सबमें ही एक जान है,
‎जो देती हमको ज्ञान है।।

‎हम तो दीवाने रहें हैं किताबों के
‎जब मन विहीन होता है।
‎डुबकियां हम लगाते है।।
‎उस ज्ञानकोषी सागर में
‎जुदा है जहां की दुनिया।
‎जहां न कोई बड़ा है न कोई थोड़ा, 
‎दाखिल है आनंद भी असीम।
‎आयना है जो तुम्हारा।।
‎जब संग न था कोई साथ,
‎ख़ाली था मेरा हाथ।
‎दुनिया भर का लेकर बोझ,
‎कटती थी सन्नाटे में रात।।
‎शह था तेरा हमेशा,
‎जब खफा था दुनिया से।
‎शह था तेरा तब भी
‎जब मगन था अपनो से।।

‎हम तो दीवाने रहें हैं किताबों के
‎नवीनता की मार से।
‎दूरियां जो बढ़ रही है,
‎किताबों पर धूल बढ़ रही हैं।।
‎मान आज ज्ञान का न रहा,
‎बढ़ रहा तकनीकी का बुखार है।।
‎जालसाजी का जमाना है भैया
‎यहां कूट भी बेशूमार है।
‎आज लोगो की तरह ही,
‎संगीन है ख़ूब किताबों का मिलना।।
‎अच्छी बातें नहीं बिकती,
‎बिकता यहां नाम है।
‎झूट किताबें नहीं कहती 
‎कहता उनका काम है।।
‎जुबानें कई बोली जाती है 
‎हेतु सबका एक ही है।
‎हम तो दीवाने रहे है किताबों के।।

‎" ज्ञान अगर रूह है तो किताबें उसका देह है " 

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