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द्वापर युग के सर्वश्रेष्ठ नरोत्तम,हिंदू धर्म में लोकप्रिय।
करुणा,सुरक्षा,प्रेम के देव,गोवर्धन गिरधारी वन्दनीय।

भूभार उतारण,जीव उधारण,धरा धाम आए भक्त हितकारी।
विष्णु का अवतार आठवाँ,भाद्र कृष्ण अष्टमी को प्रकटे गिरधारी।

श्वेत,लाल,पीला अब श्याम,हर युग में वर्ण किए धारण।
दुष्ट संहारण,रास रचावण,गौ रक्षक बने तरण तारण।

देवकी ने जन्म दिया,यशोदा का कान्हा कहलाया।
धात्री और जन्मदात्री माँ है समान, महत्व संसार को बतलाया।

विष पिलाया पूतना ने,माँ सम दी राक्षसी को मुक्ति।
अवगुण चित्त न धरे मनमोहन,किसी रूप में करो भक्ति।

ग्वाल बाल संग में गऊवन, ग्वालो सा बिताया बचपन।
हर प्राणी से प्रेम करत प्रभु,गोविंद- गोपाल,माधव-मोहन।

वासुदेव,गिरधारी,कृष्ण, गर्गाचार्य ने किया नामकरण।
काली रात,काल अँधेरी मे आये, कृष्ण पक्ष मे चँद्रवंशी श्रीकृष्ण।

आविर्भाव होता हैं नारायण का,जब होता है शुद्ध अंत:करण।
श्री कृष्ण अवतार की शुभ घड़ी में, समष्टि की शुद्धि का करूँ वर्णन।

काल

परे है भगवान काल से,सत्पुरुषो ने किया निरूपण।
क्रोधित हुई घड़ियाँ जान यह,रौद्र रूप किया धारण।

परिपूर्णतम श्री कृष्ण का,धरा पर हुआ जब अवतरण।
आनँदित,मधुरिम हुई बेला, पहन- ओढ लिए सब सद्गुण।

दिशा

कंस के राज्यकाल में,सब देव हो गए पराधीन ।
देव पत्नियाँ दिशाएँ,समझने लगी स्वयं को अभागिन।

कृष्ण जन्म समय आया सुन,संगम सौभाग्य जान हुई प्रसन्न।
ब्रज प्रदेश में आएँगे श्री हरि,दुष्टों का करने दमन।

आशा अभिलाषा पूर्ण होगी, आनन्दोत्सव होगा भारी।
दसों दिशाएँ गूँज उठी,रास किये जब गिरधारी।

पृथ्वी

विष्णु पत्नी श्रीदेवी-भूदेवी,चल-अचल सम्पत्ति की स्वामिनी।
बैकुण्ठ से धरा पधारेंगे स्वामी,भू देवी करने लगी अगवानी।

वामन रूप में बने ब्रह्मचारी,परशुराम ने दिया पृथ्वी का दान।
राम रूप में ब्याह किया मम पुत्री, कृष्ण रूप में सुख देंगे भगवान।

पुत्र मंगल को ले गोद में,करने चली वसुधा स्वागत।

वक्ष:स्थल पर पड़ेंगे प्रभु चरण,खुश अवनी ने की आवभगत ।

नदियाँ

नदियों के जनक है पर्वत,रामसेतु बाँध बनाने,समुद्र में किया विसर्जन।
समुद्र है ससुराल नदियों का,मायके वालों से मिल हुई प्रसन्न।

नदियाँ बोली माँ गंगा से,पिता विष्णु के कराओ दर्शन।
दर्शन करा सकी न माँ
ग॔गा,अब देंगे प्रभु साक्षात दर्शन।

समुद्र निवासी है श्रीविष्णु,ससुराल में घूंघट आड में रह जाती।
कृष्णावतार में बन पटरानी,कालिंदी रूप में नदियाँ आती।

निर्मल हृदय हो गया नदियों का, यमुना तट पर प्रभु का आना।
ग्वाल-गोपी,गायों संग,बंशीधर का बँशी बजाना।

ह्रद(जलाशय)

ग्वाल-बाल और अक्रूर जी ने,ब्रह्म ह्रद में किए स्वरूप दर्शन।
कालियादह नाग नाथ कर ,कृष्ण ने किया है कलिया दमन।

कमल कारण ह्रद हुए प्रफुल्लित, कृष्ण को किया जीवन अर्पण।
जड़ प्रकृति है ह्रदों की,सह्रदय हो गए छू प्रभु चरण।

अग्नि

अग्नि देव बड़े क्षुधित,प्रतिबन्धित था यज्ञ भाग।
आगमन सुन प्रभु का,सब देवताओं के जागे भाग्य।

कँस अत्याचार से अग्निहोत्रों की,बुझ गई जो अग्नियाँ।
कृष्ण जन्म से हुई प्रज्ज्वलित,चँहू ओर,बजी खुशी से घंटियाँ।

मृदु भक्षण से धरा प्रफुल्लित, दावानल पान से पावक प्रसन्न ।
ग्वाल-बाल गऊवन की,की रक्षा, धारण कर मुख में अगन।


वायु

प्रभु चरणारविंद की लालसा,वायु मन में समा रही।
सेवा कर होऊँगी कृतार्थ ,भावना हृदय में जाग रही।

मंद-सुगंधित,मधुर-शीतल,बहने लगी पुलकित पवन ।
आनन्दित हुए बृजवासी,नृत्य करत होकर मगन।

स्वामी को खुश करने हवा,प्रकट करने लगी सद्गुण।
श्री कृष्ण के स्वागत में,चली छोड़ सारे दुर्गुण।

रामावतार में मम पुत्र हनुमान,राम सेवा में रहे व्यस्त।
श्रम जनित श्वेत बूंदों को,शीतलता दे, करूँगी ध्वस्त।

आकाश

श्री कृष्ण का करने स्वागत,नभ में नक्षत्र,ग्रह,तारे शान्त।
चँद्र वंश का गौरव बढ़ाने,आ रहे धरा पर नीलकान्त।

एकता,आधरता,विशालता,प्रभु समान आकाश की उपमा।
नील रूप में आएँगे माधव,चँहू ओर फैली आकाश में नीलिमा।

नक्षत्र
चँद्रमा को करने प्रसन्न,रोहिणी नक्षत्र में हुआ आविर्भाव।
माता देवकी गर्भ में आये,रोहिणी माँ को ना हो सन्ताप।

मन

योगी निरोध करते मन का,मुमुक्ष करते निर्विषय।
सत्यानाश करते तत्वज्ञ मन का, कृष्ण मिटाएँगे सांसारिक संशय।

भगवत प्राप्ति हेतु जैसे सन्त,स्पर्श, रूप,रस,गंध देते त्याग।
लौकिक आनंद की अनुभूति,मन ने दिया सर्वस्व त्याग।

निर्मल मन को देते प्रभु दर्शन,बृजवासियों का हुआ निर्मल मन।
संत-देव,सुमन-उपवन आनंदित, सुन विष्णु का धरा पर आगमन।

भाद्र मास

कृष्ण पक्ष कृष्ण से संबंधित,भद्र मतलब कल्याण ।
पक्ष की मध्यस्थ तिथि अष्टमी,निशित यतियों का सन्ध्याकाल।

निशानाथ चँद्र के वंश में,मध्य भाग में हुआ कृष्णावतार।
जगमग दिव्य प्रकाश चँहू फैला, अज्ञान रूपी मिट गया अन्धकार।

ऋषीवर,मुनि,देवगण ,बरसाने लगे सुमन।
आनन्दातिरेक अवस्था,न्यौछावर किए तन मन।

समुद्र से बाहर आ रहे भगवन,मेघ श्याम सा रूप धरकर।
आज्ञा दी मेघों को सागर,जीवन करो प्रभु पर न्यौछावर।

मंद-मंद मेघ कर गर्जना,जल ले चले आज्ञा पाकर।
बाँसुरी स्वर पर ताल दिये प्रभु,बरसे मेघ फुँहार बनकर।

समस्त प्राणियों के जीवन दाता, सर्वात्मा है श्री कृष्ण।
धर्म प्रेमी यदुवंश में,बलराम संग हुए अवतीर्ण।

मित्रता के प्रतीक कृष्ण,सखा सुदामा से निभाई मित्रता।
तीन मुट्ठी तँदुल में दिए तीन लोक,ऐसी है सारगर्भिता।

महाभारत में मोहित अर्जुन को, सुनाई श्रीमद्भगवत गीता।
दर्शन दिए विराट रूप धर,प्रभु की है यह प्रभुता।

दैत्य प्रभाव से पीड़ित पृथ्वी ने,ब्रह्मा, विष्णु,महेश की,की आराधना।
यदुवंश शिरोमणि,भक्त वत्सल, धरा पर आए सुन धरा की प्रार्थना।

महाराष्ट्र में विट्ठल विट्ठोबा,उड़ीसा में श्री जगन्नाथ।
गुजरात में श्री द्वारकाधीश,उत्तराखंड में श्री बद्रीनाथ।

केरल में गुरुवायरूप्पन,राजस्थान में श्री श्रीनाथ।
नाना नाम रूप धर आते,बैकुण्ठ से श्री लक्ष्मीनाथ।

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