Image by Satyam Baranwal from Pixabay पुत्र रत्न प्राप्त कर नंद जी हर्षित,
उत्सव किये गोकुल में भारी।
सज-धज आए गोप-ग्वाल सब,
गोपियाँ पहन रंग बिरंगी साड़ी।
ब्रजमण्डल के हर घर आंगन को,
किया गया शुद्ध,झाड़-बुहार।
सुगंधित इत्र-जल से छिड़का,
गली-गली और द्वार-द्वार।
चित्र विचित्र ध्वजा पताका ,
फूलन के बन्धे बंदरवार।
हल्दी-कुमकुम,रोली-मौली ,
मोर पंख पुष्पन के हार।
गाय,बैल,बछड़े सज आये,
गल सोने की जंजीर डार।
अंगरखें,गहने पहन बृजवासी ,
नन्द बाबा घर आए ले उपहार।
बेटा जायो माँ यशोदा,
गोपियों के मन आनंद उत्साह।
रंग बिरंगी ओढ चुनरिया ,
पकड़ी नन्द बाबा घर राह।
मटक मटक चल रही गोपियाँ,
झनकती पायल सुरताल।
कानों में कुंडल,हाथों में कंगन ,
पहन गले हीरो का हार।
आकाश मार्ग से चली पूतना,
पहुंची ब्रज गोकुल भीतर।
जा घुसी गोपियों के झुंड में ,
प्रवेश किया नंद जी के घर।
सुंदर रूप,वस्त्र और गहने ,
सज धज कर सोलह श्रँगार।
रूप लावण्य की शोभा अद्भुत,
मानो लक्ष्मी आई,गोपी रूप धार।
चर-अचर के स्वामी कृष्ण,
समझ गए पूतना की चाल।
आग राख की ढेर में छिपी,
चलत धीमी मन्द चाल।
सौंदर्य प्रभा से चकित यशोदा ,
समझ सकी ना कुटिल चाल।
कृष्ण को उठा लिया गोद में,
भ्रमवश जकड़ गई निज काल।
विष भरा स्तन दिया हरि मुख में ,
पीवन लागे मदन गोपाल।
क्रीड़ा करत मात संग जैसे ,
पूतना हो रही निहाल।
पूतना को देख कृष्ण ने ,
कर लिए अपने चक्षु बंद।
क्या गति दूँ पूतना को ?
चलने लगा मन में द्वंद।
अविद्या रूपी पूतना पर ,
पड़ गई जो मेरी दृष्टि।
मोह वश कँही जकड़ ना जाऊँ,
नष्ट हो जाएगी सृष्टि।
बाल घातनी,जघन्य कृत्या के,
करना ना चाहूँ मैं दर्शन।
आँख बंद कर प्रभु देखन लागे,
राक्षसी के पूर्व जन्म बन्धन।
चिरायते का काढा जैसे,
पीते हम बंद कर आँख।
गट-गट प्रभु विष पीवन लागे,
खींच पूतना के प्राण।
ब्रह्माण्ड के कोटि-कोटि जीव,
प्रभु उदर में हो रहे त्रस्त।
ध्यान किये शंकर का श्री हरि,
विष पान करो ,आप हो अभ्यस्त।
परम स्वतंत्र,परम पिता भगवन,
दिये दिव्य पूतना को गति।
चंद्र सूर्य मार्ग रूपी नेत्रों ने ,
राक्षसी को न दी अनुमति।
माना पूतना और हमारे ,
नेत्रों की है एक जाति।
पलक उठा लेंगे अगर ,
हो जाएगी क्रान्ति।
राजहंस से नेत्र प्रभु के,
बकी पूतना को न देखना चाहे।
नेत्रों में स्थित धर्मात्मा निमी,
पलक ऊपर ना उठा पाए।
माता का रूप धर आई ,
हृदय अन्दर भरी है क्रूरता।
प्रभु प्रभाव से मन बदल न जाए,
देख श्री कृष्ण की निडरता।
मार सकूंगा न राक्षसी को ,
पड़ गई जो मेरी करुणा दृष्टि ।
भस्म में हो जाएगी पूतना,
अगर पड़ गयी उग्र दृष्टि।
धात्री भेष धारण कर आई,
छिपा भीषण आकृति।
दुग्ध पान कर सुरलोक भेजे,
दी राक्षसी को परम गति।
माँ रूप में आई नारी को,
मारना है अनुचित।
नेत्र बंद बच अनिष्ट योग से,
योग दृष्टि को किया सम्पादित।
प्रभु नजर अगर मिल जाती ,
हट जाती राक्षसी माया।
अनिष्ट शंका से डरे ना मैया,
नेत्र बंद कर दी छाया।
हिंसा पूर्ण हृदय से आई ,
उचित था देना दण्ड।
राक्षसी भी संतान प्रभु की,
उच्छृङ्गल और उद्दण्ड।
स्नेहमयी माता- पिता,
जब देते संतान को त्रास।
मन दुखी,सन्ताप हृदय,
मजबूर और उदास।
समस्त गुणो के भंडार प्रभु,
पूतना का चाहे कल्याण।
स्तनपान किये भक्त वत्सल,
रूद्र ने खींचे कपटी के प्राण।
माखन-मिश्री,दूध-दही खाने,
गोकुल मे आए नारायण।
छठी दिन विष पीना पड़ा,
मामा कंस के कारण।
विष पिलाया पूतना ने,
दयालु दिये माता की पदवी।
अवगुण चित्त न धरे मनमोहन,
खिलाओ चाहे वस्तु कड़वी।
पूर्व जन्म की एक कथा,
राजा बलि पुत्री की मनोव्यथा।
वामन रूप धर आए भगवान।
मातृत्व भाव,कराऊँ स्तनपान।
तीन पग धर कर पृथ्वी पर,
नाप लिये बामन त्रिलोक।
राजा बलि झुके प्रभु आगे,
भेज दिये पाताल लोक।
पिता का अपमान देख,
रत्नमाला हुई क्रोधित।
विष पान कराऊँ ऐसे पुत्र को,
मन ही मन में कुपित।
त्रिलोक दर्शी नारायण ने,
" तथास्तु" बोल,दिया वरदान।
राजबाला बनी राक्षसी,
कराया प्रभु को गरल पान।
ब्रजमण्डल में आज पूतना को,
रक्षिका की तरह पूजा जाता।
मातृत्व पदवी प्राप्त हो गई,
प्रभु से जुड़ गया नाता।
माना राक्षसी थी पूतना,
माता का दर्जा किया प्राप्त।
ब्रज क्षेत्र में आज भी,
मात-पिता का मिटाती सन्ताप।
गोकुल में है पूतना वध मंदिर,
नवजात शिशु का टेकते माथा।
ऊपरी हवा,नजर,तंत्र मंत्र की,
पूतना हरती है बाधा।
भक्त शिरोमणि नारायण,
पूर्ण करते मनोकामना।
किसी भाव से आए शरणागत,
सम्पूर्ण होती कामना।
कर्म गठरी बाँध आई,
पुनर्जन्म पायी रत्नमाला।
प्रेम और विष भाव से ,
हृदय में जली ज्वाला।
जैसी करनी वैसी भरनी,
विधि का है विधान।
स्पर्श हो जाए नारायण का,
श्रेष्ठतम पदवी पाता इन्सान।
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