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पवित्र पावन भारत भूमि,चारों दिशा में चार धाम।
दर्शन करने आते यात्री,प्रकृति की छटा नयनाभिराम।
भारत भूमि के चार तीर्थधाम,चारों दिशाओं में स्थित ।
आदि गुरु शंकराचार्य ने,वैष्णव तीर्थ रूप में किया परिभाषित।
सतयुग,त्रेता,द्वापर,कलयुग,हर युग में बना एक धाम।
बद्रीनाथ,रामेश्वर,द्वारका,जगन्नाथ रखा गया नाम ।
पूर्व दिशा में श्री जगन्नाथ जी,पश्चिम में श्री द्वारकानाथ।
दक्षिण विराजे श्री रामेश्वर,उत्तर दिशा में श्री बद्रीनाथ ।
सतयुग में बद्री विशाल,बद्री वृक्ष पर रखा गया नाम।
त्रेता युग में रामेश्वर ज्योतिर्लिंग, स्थापित किये श्री राम ।
द्वापर युग में बसी द्वारका,बसाये द्वारकानाथ।
कलयुग में साक्षात विराजे,पुरी में श्रीजगन्नाथ।
चारों धाम के दर्शन मात्र से,सर्व पाप होते नाश।
सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती, नकारात्मकता का होता विनाश।
चारों धाम की करें यात्रा,बंधन से मिलती-मुक्ति।
समस्त पाप नष्ट हो जाते,मोक्ष की करते प्राप्ति।
बद्रीनाथ,द्वारकानाथ,जगन्नाथ, भगवान विष्णु को समर्पित।
रामेश्वर ज्योतिर्लिंग,है शिवजी को अर्पित ।
रंग बिरंगी भारतीय संस्कृति, आध्यात्मिकता परिधान।
चारों दिशा मंदिर दर्शन, विविधता में एकता ज्ञान।
बद्रीनाथ धाम
सतयुग का प्रतिनिधित्व करता, उत्तराखंड का बद्रीनाथ धाम ।
धरा का आठवाँ बैकुण्ठ,ध्यान मुद्रा में विराजे शालिग्राम।
हिमालय पर्वत शिखर,जहाँ
बहती अलकनंदा।
तप्त कुंड में कर स्नान,यात्री पाते आनंदा।
ज्ञान ज्योति की प्रतीक,अखंड ज्योति जहाँ जलती ।
एक बार करें जो दर्शन,उदर में आने से मुक्ति मिलती।
नर नारायण पर्वत बीच,बसा है बद्रीनाथ धाम ।
अर्जुन है नर रूप में,नारायण रूप मे विष्णु भगवान ।
बद्रीनाथ में भगवान विष्णु,ध्यान मुद्रा में विराजमान।
छह महीना पट खुलता,छह महीना बन्द का विधान।
दाएँ-बाएँ उद्धव- कुबेर, बीच में चतुर्भुजी शालिग्राम शिला।
चना दाल,गिरी गोला मिश्री,वन तुलसी की चढ़ती माला।
बाल रूप में भगवान विष्णु,चाह रहे करना ध्यान।
अलकनंदा नदी किनारे,हिम शिखर अभिराम।
पुत्र रूप में ममतामयी गोरी ने,दे दिया विष्णु को निज धाम। केदारनाथ बसाये शिव पार्वती,बस गया यहाँ बद्री नाथ धाम।
घोर तपस्या में लीन विष्णु,शुरू हो गया हिमपात।
यह देख लक्ष्मी हुई विचलित,मन में करे सन्ताप।
बाधा न आए तपस्या में,बदरी रूप में हुई परिवर्तित ।
शाखाओं से ढक की रक्षा,विष्णु हृदय मे हर्षित।
देवी लक्ष्मी पर हो प्रसन्न,
बद्रीनाथ धाम किये स्थापित ।
बदरी वृक्ष पर रख नाम,अखंड ज्योति किए प्रज्ज्वलित।
मंदिर के प्राँगण में एक दिन,माँ लक्ष्मी कर रही ध्यान ।
दैत्य शंखचूड़ का वध,किये विष्णु भगवान।
युद्ध में विजय प्राप्त कर, शंखनाद किया जाता।
ध्यान न टूटे लक्ष्मीजी का,बद्रीनाथ में शंख नही बजाया जाता।
शंकराचार्य वंशज रावल,करते शालिग्राम बद्री की पूजा।
ब्रह्मचर्य का निभाते पालन,न काम करते दूजा ।
बद्रीनाथ धाम दर्शन करने,दूर-दूर से यात्री आते ।
मोक्ष की करते प्राप्ति,पापों से मुक्ति पाते।
भविष्यवाणी है कुछ ऐसी, बद्रीनाथ धाम हो जाएगा लुप्त।
नर नारायण मिल जाएँगे,बैकुंठ राह हो जाएगी गुप्त।
जोशीमठ नरसिंह मंदिर में,धाम नया बनायेगे।
प्रभु भुजा अलग जब होगी,बद्रीनाथ वहाँ आ जाएँगे।
रामेश्वर धाम
बारह ज्योतिर्लिंग में एक,चारों धाम में त्रेता युग का धाम।
रामचंद्र जी ने की स्थापना,"रामेश्वर", "राम लिंगेश्वर " नाम ।
रामेश्वर धाम रामायण का,एक जीवंत संस्मरण ।
प्रकृति सौंदर्य बिखेरे,भक्तों का आकर्षण।
हिंद महासागर का सुहावना द्वीप,चहूँ ओर जल ही जल।
क्षितिज का नजारा सुंदर,न दिखता कोई स्थल ।
तमिलनाडु के रामनाथपुरम में, रामनाथ स्वामी मंदिर स्थित।
शंखाकर से सजा द्वीप,भगवान शिव को समर्पित।
रामेश्वर शिव ज्योतिर्लिंग,रामनाथ स्वामी नाम से जाना जाता ।
रावण पर विजय कामना से,राम जी ने बनाया, कहा जाता।
गंगोत्री जल से शिवजी का,किया जाता है अभिषेक।
रामेश्वर का शांत समुद्र,पाई जाती कौड़ियाँ,सीप, शंख अनेक ।
सातवाँ अवतार विष्णु का,राम रूप में धरा पर आए।
जनक कन्या जानकी संग,शिव धनुष तोड़ ब्याह रचाए।
मात पिता की आज्ञा शिरोधार्य कर, वन को राम सिधाए।
मुनि वेश धर कंटक वन में ,राम, लक्ष्मण,सीता जीवन बिताए।
छद्मरूप धर रावण ने,धोखे से हर ली सीता ।
वानर और हनुमान मदद से,प्रभु ने युद्ध में लंकेश को जीता।
पँडित रावण की हत्या से लगा राम को, ब्रह्म हत्या का पाप ।
शिवपूजन से मिलेगी मुक्ति ,ऋषि मुनियों ने मिटाया संताप।
शिवलिंग लाने रामचंद्र जी ने, बजरंगी को भेजा कैलाश ,
शुभ मुहूर्त बीतता देख सीता ने ,समुद्र रेत से शिवलिंग दी तराश।
भगवान राम द्वारा पूजित ,रामेश्वर ज्योतिर्लिंग बन गया धाम।
हनुमान जो लाये शिवलिंग, "हनुमदीश्वर" रख दिया नाम।
रामेश्वर धाम रामेश्वर की पूजा,विधि विधान से जो करता।
ब्रह्म हत्या जैसे पापों से,भक्त मुक्ति पा सकता।
स्फटिक मणि के दर्शन कर,मन होता आनंदित।
दूधिया दृश्य न होता विस्मृत,जीवन भर मन प्रसन्नचित ।
शिल्प कला,द्रविड वास्तुकला का, अद्भुत है नजारा,
खम्भे सजे हैं बेल बूटो से,हर पत्ती, फूल है न्यारा ।
बड़े-बड़े खभों की कतारें,लगती जैसे तोरण द्वार।
सुंदर कारीगरी से सजे देख, अचंभित होता संसार।
बड़े-बड़े चबूतरे ,गलियारा,मूर्तियों का मनमोहक आकर्षण ।
विश्व का सबसे बड़ा गलियारा, परिक्रमा करते भक्तजन।
चौबीस कुएँ मंदिर परासर मे,राम जी ने बनाये चला के बाण।
समुद्र जल से स्नान कर ,कुआ जल से किया जाता स्नान।
पावन तीर्थ के जल जैसे ,कुण्ड जल स्नान से पाप कटता,
अग्नि तीर्थंम् कुंड स्नान से,बीमारी जाती,मोक्ष मिलता।
रामनाथ स्वामी मंदिर में,राम,सीता, लक्ष्मण की मूर्ति राजत ।
राजतिलक विभीषण का कीना, लंकेश मूर्ति भी स्थापित।
लंका से लाए काले पत्थरों से,निर्मित रामनाथ स्वामी मंदिर।
विश्व का सबसे बड़ा गलियारा,बड़ी दीवारों से घिरा मंदिर।
मंदिर के गलियारे में ,बने हैं एक सौ आठ शिवलिंग,
गणपति जी संग विराजे,देते भक्तों को दर्शन।
राम-शिव एक दूजे के आराध्य, एक-दूजे का ध्यान लगाये,
रामेश्वर दर्शन करता जो प्राणी, उसको मोक्ष मिल जाए।
द्वारकाधाम
सात पुरी में पुरी एक,चारों धामों में एक धाम ।
आदि शंकराचार्य ने कर स्थापना, द्वारका रखा है नाम।
चारो धाम में तीसरा धाम, आध्यात्मिकता की बहती धारा ।
समुद्र भूमि बीच बसी द्वारका, चमकती जैसे सितारा ।
गुजरात के द्वारका मे,कृष्ण को समर्पित द्वारकाधीश मंदिर ।
बलराम,सुभद्रा,रेवती,वसुंधरा, रुक्मणी विराजत मंदिर परिसर।
गर्भ गृह चांदी सिंहासन,श्यामवर्णी चतुर्भुज प्रतिमा विराजमान।
शंख,चक्र,गदा,पद्म,आभूषणों से सज्जित रणछोड़ राय भगवान।
मथुरा छोड़ प्रभु आए द्वारका,पूर्वजों की भूमि पर नगर बसाया।
प्रभु महल और हरी गृह को ,प्रपौत्र वज्रनाभ ने मंदिर बनाया।
यदुवंश की राजधानी द्वारका, कृष्ण शासन काल के समकालीन।
मामा कंस को मार कृष्ण,नाना अग्रसेन को किए आसीन।
जरासंध ससुर कंस का,सत्रह बार गया कृष्ण से हार ।
अट्ठारहवीं बार रण छोड़ प्रभु,बसाये द्वारका का दरबार।
विश्वकर्मा ने प्रभु की आज्ञा से, द्वारका शहर बसाया।
श्री कृष्ण बन द्वारकाधीश,द्वारका को राजधानी बनाया।
राजसी ठाट से सजा है मंदिर, वास्तुकला का शाही प्रमाण।
अरब सागर-गोमती किनारे,भव्य महल आलीशान ।
काले कृष्ण की काली मूर्ति,विष्णु का आठवाँ अवतार।
पांच मंजिल,बहत्तर स्तंभ, गर्भ गृह ऊपर शिखर नक्काशीदार।
त्रिकोणीय ध्वज में सूर्य चाँद,शिखर ऊपर फहराता।
श्रद्धा की शाश्वत उपस्थिति,अतीत की महिमा दर्शाता।
पहाड़ी ऊपर बना है मंदिर,गोमती नदी जहाँ बहती ।
भगवान विष्णु का करती प्रतिनिधित्व ,गर्भ गृह में कृष्ण मूर्ति।
पश्चिम दिशा का पवित्र मंदिर, शंकराचार्य ने किया घोषित ।
नष्ट किया मुगलों ने मंदिर,चालुक्य स्थापत्य शैली में हुआ पुनर्निमित।
द्वापरयुग का द्वारकाधीश धाम,श्री कृष्ण का आवास।
सागर के नीले पानी से घिरा, परिदृश्य दिखता खास।
प्रेम,सौंदर्य,नृत्य,संगीत के देवता, द्वारकाधीश भगवान ।
प्रेम प्रतीक बंद आँखो से,असीम प्रेम बरसाते श्रीमान ।
ध्यान मुद्रा धारण कर ,ध्यान का बताते ज्ञान।
बंद आँखें लगती रहस्यमयी, महानता का करती बखान ।
उत्तर और दक्षिण दिशा में, द्वारकाधीश मंदिर के द्वार।
मोक्ष द्वार उत्तर का दरवाजा,दक्षिण स्वर्ग का द्वार।
पूर्व दरवाजे पर जय-विजय,महल के चौकीदार ।
पश्चिम दरवाजे बनी सीढ़ियां,गोमती नदी के जाती द्वार।
मोक्ष द्वार पर शारदा पीठ,आदि शंकराचार्य किये स्थापित।
गोमती नदी के सामने, स्वर्ग द्वार प्रतिस्थापित ।
गुजरात की प्रथम राजधानी, राजधानियों में खास ।
गाँधारी के श्राप से,द्वारका का हुआ विनाश।
बेट द्वारका ,गोपी तालाब,सोमनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर ।
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग,कैलाश कुंड, रुक्मणी मंदिर द्वारका अन्दर।
द्वारका मे राधा रानी का,नाम नहीं लिया जाता।
सात पट रानियों सहित,रुक्मणी- कृष्ण पुकारा जाता ।
आठ पटरानियाँ कृष्ण संग,करती राज-काज का चयन।
बेट द्वारका विश्राम स्थल,कृष्ण करने आते शयन।
बेट द्वारका में मित्र सुदामा,तीन मुट्ठी चावल भेट लाये।
चावल भेट की प्रथा वहाँ,आज भी निभाई जाये।
कृष्ण की कर्म भूमि द्वारका, "द्वारावती","कौशल्यावती" कहलाती।
द्वारका धाम की तीर्थ यात्रा,विकृत मन में विवेक जगाती।
कृष्ण ने जब देह त्यागी,डूबी द्वारका समुद्र के अंदर।
डूबी द्वारका के अवशेष, आज मिले हैं भीतर समुन्दर।
द्वारकाधीश की पूजा से, मोक्ष की होती प्राप्ति।
मनोकामना पूर्ण होती,असीम मिलती शांति।
जगन्नाथ धाम
भगवान विष्णु के चारों धाम में, चौथा पुरी का जगन्नाथ धाम ।
उड़ीसा के समुद्री तट पर स्थित, पुरुषोत्तम क्षेत्र है नाम ।
दक्षिण शंख सा पुरी धाम,सोलह किलोमीटर फैला हुआ ।
उदर समुद्री सुनहरी रेत,महोदधि जल से धुला हुआ ।
शीश क्षेत्र पश्चिम दिशा में,महादेव रक्षा करते ।
दूसरे घेरे में शंख के,ब्रह्म कपाल विमोचन करते ।
शंख के तीसरे घेरे में,माँ विमला विराजमान।
नाभि स्थल रथ सिंहासन पर,विराजत जगन्नाथ भगवान।
पुरुषोत्तम क्षेत्र में देवी,विमला की पूजा होती ।
विभीषण वन्दपना रीति से, जगन्नाथ आराधना होती ।
जगन्नाथ प्रभु का स्वरूप,अन्य मूर्तियों से विभिन्न ।
माँ रेवती से सुन रहे,बचपन की शैतानियां एक दिन ।
अपनी बातें सुन प्रभु की,आश्चर्य से आँखें हुई बड़ी।
मुख खुला बाल तने दाऊ के, सुभद्रा मंत्र मुग्ध खड़ी ।
प्रेम भाव में डूबी सुभद्रा,स्तब्ध पिघलने लगी ।
बलदाऊ कृष्ण बीच बहना, शोभित बड़ी लगी ।
कृष्ण लीला श्रवण में,सब हो रहे थे लीन ।
नारद मुनि आए अचानक,बजाते हुए बीन।
कृष्ण का स्वरूप यह, नारद जी को अति भाया।
कलयुग में रहूँगा इसी रूप में, प्रभु जी ने नारद को बताया ।
छेना पेड़ा और खाजा,पसंदीदा प्रभु का व्यंजन ।
हर उत्सव मे बनाया जाता,घर-घर में अभिव्यंजन।
महाभारत के वन पर्व में,जगन्नाथ मंदिर का इतिहास ।
सबर विश्ववशु आदिवासी,नील माधव प्रभु के दास।
भारत पिता,माता सुमति,मालवा के राजा इन्द्रद्युम्न।
विष्णु भगवान ने स्वप्न में,दर्शन दिए एक दिन।
नीलांचल पर्वत गुफा में,नील माधव नामक मेरी मूर्ति ।
पुरी में बनवाओ मंदिर,राजा दिखाओ स्फूर्ति।
सेवको को राजा ने,नीलांचल की खोज में भेजा।
विद्यापति चतुर ब्राह्मण,झट से उसने खोजा।
विद्यापति ने नील माधव उपासक की,बेटी से कर लिया विवाह।
पत्नी के जरिए प्रभु तक,पहुँचने की मिल गई राह।
बड़ी चतुराई से चुराकर, नीलमाधव मूर्ति ले आया ।
मूर्ति पाकर इन्द्रद्युम्न,मन ही मन हर्षा या।
आराध्य देव की चोरी होने से,विश्व वसु हुआ उदास ।
दु:खी देख भगवान भक्त को,आए फिर से उसके पास।
प्रभु आज्ञा से इन्द्रद्युम्न ने,पुरी में बनाया विशाल मंदिर ।
वृद्ध भेष में विश्वकर्मा,मूर्ति बनाये मंदिर अंदर ।
शर्त थी बनती मूर्ति,कोई ना देख पाए।
छेनी हथौड़े की आवाज न सुन, राजा मन में घबराए।
भूल गए वृद्ध की बातें,राजा ने खोला दरवाजा।
विश्वकर्मा लुप्त हो गए,मूर्तियाँ बनी थी आधा।
कृष्ण बलभद्र की बनी ना टांगे,बने थे छोटे-छोटे हाथ ।
जगत नाथ की जान इच्छा,नाम रखा जगन्नाथ ।
बहन सुभद्रा की मूर्ति,हाथ-पाँव से थी रिक्त ।
मूर्तियों को मंदिर में,राजा ने किया स्थापित ।
विष्णु के अवतार कृष्ण को,समर्पित वैष्णव संप्रदाय का यह मंदिर।
भगवान जगन्नाथ,भ्राता दाऊ,बहन सुभद्रा अति सुंदर ।
वार्षिक रथ यात्रा का उत्सव ,धूमधाम से मनाया जाता।
भव्य सुसज्जित तीन रथो को, नगर में घुमाया जाता ।
रथ की डोरी खींच भक्त,जन्म बंधन से मुक्ति पाता।
मनोकामना पूर्ण होती,प्रभु दर्शन जब पाता ।
आषाढ माह नन्दी घोष रथ चढ,प्रभु करते नगर भ्रमण।
रथ रक्षित ध्वज चढ़ते बलदाऊ, सुभद्रा का रथ दर्प दलन।
राह मे गुडिंचा मौसी घर,प्रभु विश्राम करते,
छेरापरेरन स्वर्ण झाड़ू से, गजपति बुरी बुहारते।
प्राचीन मूर्ति बनी नीलम से, नील माधव नाम से प्रचलित।
शंख,चक्र, गदा,पद्म धारी,मुगलों द्वारा हुई खंडित ।
नीम काष्ठ से फिर बनी मूर्तियाँ,क्षय की प्रतिरोधी।
चंदन लेप से गर्भगृह सुगंधित ,फफूँद का अवरोधी।
प्राचीन मूर्तियां "कोईली बैकुंठ", मंदिर में है दफन ।
दिव्य शक्ति मूर्तियों की मिट्टी ,दुश्मन का करती दमन।
कलयुग में जगन्नाथ मंदिर,मंदिर बड़ा है खास ।
चमत्कार और रहस्यों का,यहाँ का इतिहास ।
पक्षियों का राजा गरुड़ ,विष्णु भगवान का वाहन।
जगन्नाथ मंदिर ऊपर न उड़ता,ना पक्षी ना वाहन।
हवा के विपरीत दिशा में, मंदिर ध्वज लहराता ।
शिवचंद्र से सजा है ध्वज,उल्टा चढ रवाना फहराता।
दो सौ फीट ऊँचे गुंबज की, छाया रहती अदृश्य ।
हर दिशा में दिखता सामने,अष्टधातु निर्मित चक्र ।
चावल का प्रसाद प्रभु को,हर दिन ही है लगता ।
सैकड़ो,हजारों,लाखों,भक्त हो, महाप्रसाद कम नहीं पड़ता।
दुनियाँ का सबसे बड़ा रसोई घर,महा प्रसाद प्रभु का बनता।
एक पर एक सात बर्तन, शीर्ष वाला पहले पकता।
जगन्नाथ मंदिर की ,परछाई नही बनती।
सूर्य किरणे मंदिर से टकराती,जमीन तक ना पहुँचती।
सागर की गर्जन ध्वनि,सिंह द्वार प्रवेश कर ना सुन पाते ।
मोक्ष हेतु स्वर्ग द्वार जलते शव,दुर्गंध मंदिर में ना सूंघ पाते ।
देह त्याग बैकुण्ठ गए कृष्ण,दिल पुरी मेरा विद्यमान ।
साक्षात प्रभु भाई-बहन संग,मंदिर में विराजमान ।
काष्ठ मूर्ति का नव कलेवर,बारह वर्ष में होता है एक बार ।
ब्रह्म पदार्थ का होता है स्थानांतरण, चारो ओर होता अन्धकार।
ब्रह्म पदार्थ की ऊर्जा मानव,खुली आँखों से ना देख पाता।
नव मूर्ति में रखते आत्मा,धक-धक सा प्रतीत होता ।
परम ब्रह्म शाखा रूप में,तुलसीदास जी ने किया वर्णन।
"बिना पर चले" "बिन आँख देखे" "बिन कान सुने" प्रभु का विवरण।
कर्मा बाई की खाते खिचड़ी,प्रभु दास भक्त के पान।
इदी का नीम चूर्ण खाकर,छप्पन भोग पचाते भगवान।
राजा इन्द्रद्युम्न हेतु कलयुग में, जगन्नाथ रूप लिए धार।
धरा पर भगवान विष्णु का,अष्टम है अवतार।

चारों धामों की महिमा

सतयुग,त्रेता,द्वापर और कलयुग,हर युग में चारों दिशाओं में एक-एक धाम बनाए गए।
उत्तर में बद्रीनाथ सतयुग का प्रतीक है तो दक्षिण में श्री रामेश्वर त्रेता युग का प्रतीक है ।
पश्चिम मे श्रीद्वारका धाम द्वापर युग का प्रतीक है वही पूर्व में श्री जगन्नाथ कलयुग का प्रतिनिधित्व करता है ।
जगतगुरु आदि शंकराचार्य ने चारों धाम की यात्रा का प्रचार किया था।चारों धाम के दर्शन मात्र से प्राणी के सर्व पाप नष्ट हो जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है ,ऐसा स्कंद पुराण में लिखा है किन्तु मेरी मान्यता यह है कि अगर जान बूझकर पाप करके मैं यात्रा करके पापो का निवारण कर, फिर नए पाप शुरू करूँ तो इसका निवारण तो भगवान के पास भी नहीं है ।
चारों धाम दर्शन करने से सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है व सच्चे मन की भावना हो तो नकारात्मकता का नाश हो जाता है।
प्राचीन तीर्थ स्थलों पर जाने से जहां पौराणिक ज्ञान बढ़ता है वहीं प्राकृतिक दृश्यों का नजारा भी मन को मोह लेता है।
देवी देवताओं से जुड़ी कथाओं का ज्ञान बढ़ता है व पुरानी परंपराओं से भी अवगत होते हैं ।प्राचीन संस्कृति को जानने का सुनहरा अवसर हमें चारों धाम दर्शन से मिलता है ।
चारों दिशाओं के पंडितों एवं वहाँ के आसपास रहने वालों से संपर्क होता है ।जिससे हमे देश में होने वाले रीति रिवाज को जानने का शुभ अवसर मिल सकता है।
भक्त और भगवान के जुड़ने की मान्यताओं का लेखा-जोखा मिलता है ,जिसका लाभ हमे दैनिक जीवन की पूजा में मिलता है। यही कारण है कि चारों धाम चार दिशाओं में स्थापित किए गए ।

सतयुग का बद्रीनाथ धाम

धरा का बैकुण्ठ बद्रीनाथ धाम जिसे बद्री नारायण भी कहा जाता है, उत्तराखंड के चमोली जिले में, अलकनंदा नदी के तट पर,नर और नारायण दो पर्वतों बीच स्थित,एक प्रसिद्ध हिंदू मंदिर है जो भगवान विष्णु को समर्पित है ।
यह भगवान के चार धामों में प्रथम धाम है।बद्रीनाथ धाम में माता लक्ष्मी ने बद्री वृक्ष का रूप धारण कर तपस्या मे लीन भगवान विष्णु को हिमपात से बचाया था।
जब विष्णु भगवान ने आँखें खोली,बद्री वृक्ष की छत्रछाया से स्वयं को ढका देख बहुत प्रसन्न हुए और इस धाम को "बद्रीनाथ धाम" घोषित कर दिया।
मंदिर मे बद्री नारायण की शालिग्राम पत्थर की मूर्ति ,आदि शंकराचार्य जी ने स्थापित की थी।
उद्धव,कुबेर,व नारद जी की मूर्ति भी भगवान के दाएँ- बाएँ विराजमान है।
नारद कुण्ड, ब्रह्म कपाल व पांडुकेश्वर जैसे दर्शनीय स्थल बद्रीनाथ धाम के पास ही है ।
बद्रीनाथ धाम के पट अक्षय तृतीया दिन खुलते हैं और छ: महीने बाद बंद हो जाते हैं।
बद्रीनाथ धाम से मात्र तीन किलोमीटर दूर मांगा गाँव भारत का अन्तिम गाँव माना जाता है।
बद्रीनाथ मंदिर के पुजारी रावल पारंपरिक रूप से या भारतीय केरल राज्य से चुने हुए गए नंबूदिरी होते हैं ।
मंदिर के नारद कुण्ड नामक तप्त कुण्ड में स्नान करने से, यात्रीगण यात्रा की थकान भूल जाते हैं।
ऐसी मान्यता है कि जो बद्रीनाथ भगवान के जीवन में एक बार दर्शन कर लेता है उसे माता के उदर में दोबारा जन्म नहीं लेना पड़ता है।प्राणीमात्र जन्म बंधन से मुक्त हो जाता है।
जो गया बदरी सो ना आवे उदरी
त्रेता युग का रामेश्वरम धाम
भगवान शिव को समर्पित रामेश्वर धाम हिंदुओं का एक पवित्र तीर्थ स्थल है।यह धाम त्रेता युग का प्रतिनिधित्व करता है ।
चारोंधाम में दूसरे धाम के स्थान पर है। शंकर भगवान के बारह ज्योतिर्लिंग में रामेश्वर धाम भी आता है ।
यह हिंद महासागर और बंगाल की खाड़ी से घिरा एक खूबसूरत द्वीप है।
रामेश्वरम शिवलिंग को सीता जी ने स्वयं अपने हाथों से बनाया था। भगवान राम ने शिवलिंग की स्थापना की थी ।यहाँ का प्रसिद्ध रामनाथ स्वामी मंदिर दशरथ नंदन श्री राम को समर्पित है ।
रामेश्वरम ज्योति लिंग में गंगोत्री से लाये गंगाजल से शिवजी का अभिषेक किया जाता है।श्रावण मास में ज्यादा श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं वैसे बारहमास ही श्रद्धालुओं का ताँता बधा रहता है ।
रामेश्वरम जाने के लिए एक सौ पैंतालीस खम्भे पर टिका,करीब सौ साल पुराना पुल है,जिससे होकर ही आना पड़ता है।समुद्र के बीच से जब लोह गामिनी(रेल) निकलती है तो नजारा बड़ा मनोरम होता है।
रामेश्वर मंदिर का गलियारा विश्व का सबसे बड़ा गलियारा है।
इस मंदिर के परिसर में बाईस कुंड है जिसमें श्रद्धालु स्नान करते हैं।अग्नि तीर्थम् कुण्ड में स्नान करने से बीमारियाँ दूर होती है व जीवन के पाप धुल जाते हैं ।
भगवान राम ने बाण चलाकर चौबीस कुए (कुण्ड)बनाए थे,जिसमें बाईस मंदिर के अंदर है। इन कूओ का गहरा आध्यात्मिक महत्व है।
ऐसा कहा जाता है कि भगवान राम ने रावण वध के पाप से खुद को शुद्ध करने के लिए भगवान शिव से क्षमा मांगी थी ।
मंदिर के गलियारे में एक सौ आठ शिवलिंग स्थापित है व साथ में गणेश जी भी विराजमान है ।
विभीषण का राजतिलक रामजी ने यहाँ किया था।उनकी मूर्ति भी स्थापित है।
रावण ब्राह्मण वंश का था, सीता जी को कैद से छुड़ाकर भगवान राम जब लाए तो रावण को मारने से ब्रह्म हत्या का पाप लग गया, इसका प्रायश्चित पंडितों ने शिवजी का अभिषेक बताया।
कैलाश से शिवलिंग लाने हनुमान जी गए पर उन्हें आने में देर हो गई।अभिषेक का शुभ मुहूर्त निकल न जाए अतः माता सीता ने समुद्र रेत से शिवलिंग बना दिया। जिसकी स्थापना श्री रामजी ने की।
हनुमान जी द्वारा लाई शिवलिंग का नाम वैश्वलिंग और हनुमदीश्वर रखा गया।आज भी दोनो विराजमान है।
रामेश्वर को रामनाथ स्वामी ज्योतिर्लिंग के नाम से भी जाना जाता है।
रामेश्वरम मंदिर में स्फटिक मणि दर्शन सुबह-सुबह होते है।दिव्य ज्योति के रूप में दिखने वाले शिवलिंग के दर्शन एक बार जो कर ले,जीवन भर उस छवि की विस्मृति नही होती है।
द्वापर युग का द्वारकाधीश धाम
द्वारका का सही अर्थ है "स्वर्ग का प्रवेश द्वार"। अतः द्वारका को "मोक्ष पुरी" "द्वारकावती" भी कहा जाता है।
द्वारकाधीश मंदिर भगवान कृष्ण को समर्पित है।यह मंदिर श्री विष्णु के एक सौ आठवें दिव्य देश में से एक है ।
यह भगवान का तीसरा धाम है जिसका महत्व द्वापर युग में जाना गया। जब भगवान कृष्ण ने अपने जन्म स्थान मथुरा को छोड़,द्वारका को अपना निवास स्थान बनाया।
भारत के गुजरात राज्य की देवभूमि द्वारका, गोमती नदी और अरब सागर के किनारे ओखा मंडल प्रायद्वीप के पश्चिमी तट पर बसा हुआ है ।
द्वारकाधीश भगवान की बंद आँखें प्रेम का प्रतीक मानी जाती है। प्रेम दृष्टि से परे है और भगवान अपने भक्तों पर असीम प्रेम बरसाते हैं।
द्वारकाधीश की बंद आँखें भक्तों को ध्यान केंद्रित करने के बारे में भी बताती है।
भगवान की आँखें बंद होना एक रहस्य है जो महानता को भी दर्शाता है।
द्वारकाधीश मंदिर के गर्भ गृह में चाँदी के सिंहासन पर भगवान की श्याम वर्णी चतुर्भुज धारी मूर्ति विराजमान है।जिनकी हाथों में शंख, चक्र, गदा और पद्म धारण किया हुआ है ।
कंस मामा को मार कर कृष्ण ने नाना अग्रसेन को मथुरा के सिंहासन पर बिठाया।
कंस का ससुर जरासंध इस कारण मथुरा पर आक्रमण करता रहा।सत्रह बार भगवान से हार कर भाग गया।उसकी परम इच्छा थी कि, एक बार कृष्ण भी पीठ दिखा कर भाग जाए।
जरासंध की मनोकामना पूर्ण करने ,दयालु, भक्त वत्सल प्रभु,अट्ठारहवीं बार रण
छोड़ कर भाग गए। समुद्र के अंदर जा द्वारका नगरी पहुँच गए।तभी से प्रभु का नाम रणछोड़ राय भी हो गया।
द्वारका यदुवंशियों के पूर्वजों का शासन काल था अत: भगवान ने द्वारका क्षेत्र में पहले से बने खण्डहर को विश्वकर्मा की सहायता से राजमहल बनवाया व नगर निर्माण किया।
गांधारी के शाप से जब भगवान ने देह त्यागी,द्वारका समुद्र अंदर समा गई ।आज भी समुद्र के हजारों फीट नीचे द्वारका नगरी के अवशेष मिलते हैं ।
मित्रता का प्रतीक द्वारकापुरी के पास ही सुदामापुरी भी है जो भगवान ने अपने मित्र सुदामा को छुपा कर भेंट किया था ।
द्वारका धाम हिंदुओं के चार धाम में एक और सात पुरी (सबसे पवित्र प्राचीन नगर) में से भी एक है।
श्री कृष्ण के प्राचीन राज्य काल का स्थल है द्वारका। गुजरात की सर्वप्रथम राजधानी भी यही थी।
द्वारकानाथ मंदिर का ध्वज दिन में पाँच बार निश्चित समय पर बदला जाता है।
बारह राशि,सत्ताईस नक्षत्र,दस दिशाएँ, सूर्य,चाँद व द्वारकाधीश मिलकर बावन होते हैं अतः ध्वज भी बावन गज का होता है।
द्वारका में बावन दरवाजे थे,यह उसका प्रतीक माना जाता है ।
द्वारका धाम में दो स्थान है, बेट द्वारका और दूसरा गोमती द्वारका।
द्वारका के दक्षिण में गोमती नामक ताल है ।इस तालाब पर नौ निष्पाप कुण्ड है,जिसमें गोमती नदी का पानी भरा हुआ है ।इसमें स्नान करने से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं।

कलयुग का जगन्नाथ धाम

जगन्नाथ शब्द संस्कृत के दो शब्द जगत (ब्रह्माण्ड) और नाथ (स्वामी) से बना है। अतः जगन्नाथ भगवान को ब्रह्माण्ड का स्वामी कहा जाता है।
उड़ीसा की पुरी में स्थित, कलयुग का प्रतिनिधित्व करता है जगन्नाथ धाम,जो भगवान विष्णु को समर्पित है।
भगवान जगन्नाथ,भैया बलभद्र और बहन सुभद्रा तीनों की पूजा यहाँ विधि विधान से होती है ।
स्कंद पुराण मुताबिक सतयुग में मंदिर का निर्माण हुआ था।
राजा इन्द्रद्युम्न को भगवान ने सपने में दर्शन देकर मंदिर बनवाने को कहा था।
नील माधव नाम से भगवान, विश्ववशु भील सरदार के,आराध्य देव थे।पर्वत की गुफा में भक्त भगवान की पूजा करता था।
स्वप्न के कारण सैनिक विद्यापति के सहयोग से नील माधव की मूर्ति खोज ली गई ।मूर्ति पाकर इन्द्रद्युम्न बहुत हर्षित थे पर विश्व वसु आराध्य देव के चोरी होने से अत्यंत दुखी हो गये। अपने भक्त के आँसू भगवान देख ना सके।वापस नील माधव गुफा में चले गए ।
प्रभु आज्ञा से राजा ने विशाल मंदिर,पुरी में तैयार करवा दिया। भगवान विष्णु ने उसे बताया कि, पु री तट पर दारू लकड़ी का लट्ठा मिलेगा।उससे मूर्ति का निर्माण करो।
विश्वकर्मा बृद्ध बढई के रूप में प्रकट हुए।उनकी शर्त थी कि वह कमरे में बंद रहकर मूर्ति बनाएँगे।
दैव संयोग,एक दिन कमरे के अंदर से छैना-हथौड़ी की आवाज सुनाई देना बंद हो गई तो राजा ने दरवाजा खोल दिया ।
विश्वकर्मा जी द्वारा आधी बनी मूर्तियाँ ही मंदिर में स्थापित की गई।
जगन्नाथ मंदिर में हर बार बारह साल बाद मूर्तियों को बदला जाता है,जिसे "नव कलेवर" कहते हैं।
मान्यता यह है कि जगन्नाथ जी का दिल आज भी धड़कता है ।जिस दिन ब्रह्म पदार्थ यानी आत्मा का स्थानांतरण होता है तो चारों और अन्धकार कर दिया जाता है ।ऐसी मान्यता है कि ब्रह्म पदार्थ की चमक इंसान अपनी खुली आँखों से नहीं देख सकता है ।
जगन्नाथ मंदिर में आषाढ़ माह में हर साल रथ यात्रा का आयोजन किया जाता है। भगवान जगन्नाथ,बलदाऊ व सुभद्रा तीनों के सजे धजे रथ को नगर में घुमाया जाता है ।रास्ते में गुडिचा मौसी के घर प्रभु विश्राम करते हैं ।
रथ यात्रा आयोजन में देश-विदेश से लाखों भगवान के भक्त दर्शन करने आते हैं ।जो रथ की डोरी खींच लेता है उनके जीवन की डोर प्रभु स्वयं खींचते हैं ।
दो सौ चौदह जगन्नाथ मंदिर की ऊंचाई फिट है। जिसमें ऊपर स्थापित ध्वज हवा के विपरीत दिशा में उडता है।
भगवान के मंदिर का क्षेत्रफल चार लाख वर्ग फुट है ।
मंदिर के शीर्ष पर लगा सुदर्शन चक्र हर दिशा से एक समान दिखता है।
सामान्यतः हवा समुद्र से जमीन की तरफ दिन में आती है व शाम को जमीन से समुद्र की ओर जाती है पर पुरी में इसका उल्टा होता है।
गुंबद की छाया दिन में हर समय अदृश्य रहती है ।
प्रतिदिन सायं काल मे मानव द्वारा उल्टा चढ़कर ध्वज बदला जाता है।
पक्षी और विमान मंदिर ऊपर नहीं उड़ते हैं।
मंदिर का रसोईघर विश्व का सबसे बड़ा रसोइ घर है । विशाल रसोई घर में पाँच सौ रसोईये व तीन सौ सहायक काम करते हैं ।
मिट्टी के बर्तनों में भोजन बनाया जाता है। सात बर्तन एक पर एक रखकर,लकड़ी पर ही भोजन पकाया जाता है। शीर्ष पर रखा सबसे पहले पकता है ।
चाहे सौ,हजार, लाख भक्त आ जाए,भगवान का प्रसाद कभी कम नहीं होता।
मंदिर के सिंहद्वार में प्रवेश करते ही सागर की गर्जन सुनना बंद हो जाती है ।
जगन्नाथ मंदिर "पुरुषोत्तम क्षेत्र", "शाक क्षेत्र" "नीलांचल" "नीलगिरी"व "श्रीक्षेत्र"से भी जाना जाता है।
पुरुषोत्तम क्षेत्र में देवी विमला की पूजा होती है ।
ज्येष्ठ पूर्णिमा से आषाढ़ पूर्णिमा तक सबर जाति की रीति से भगवान की पूजा होती है। सारी पूजा सबर जाति दैतापति द्वारा ही की जाती है ।
विभीषण वन्दापना रीति से जगन्नाथ भगवान की आराधना होती है।

विशेष

ऐसा कहा जाता है कि द्वारका से कंगन लाकर,जगन्नाथ पुरी में चढ़ाए जाते हैं। जगन्नाथ पुरी से बेंत लेकर बद्रीनाथ जी को चढ़ाए जाते हैं, और बद्रीनाथ जी से गंगाजल लेकर रामेश्वरम चढ़ाया जाता है।
जहाँ-जहाँ विष्णु विराजे, शिवजी करते पास निवास ।
बद्रीनाथ संग केदारनाथ,द्वारका में सोमनाथ, नागेश्वर का वास ।
रामनाथ स्वामी,रामेश्वर की जोड़ी,एक दूजे के आराध्य देव। श्रीजगन्नाथ संग लिंगराज ,
कलयुग के साक्षात देव।

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