भारत एक ऐसा देश है, यहां कई धर्म, कई जातियां, कई संप्रदाय एक साथ रहते हैं। यहां कई तरह के लोग रहते हैं, कई संस्कृतियां यहां देखी और अनुभव की जा सकती हैं। भारत में हर चीज में विविधता है। यहां का क्षेत्र भी विभिन्न खंडों में बिखरा हुआ है। कहां पहाड़ और कहां पठार, कहां पानी तो कहां सूखा, कहां रेगिस्तान और कहां बर्फ से ढका प्रदेश। प्रत्येक क्षेत्र की अलग-अलग विशेषताएँ होती हैं। जिस तरह इस क्षेत्र की अलग-अलग विशेषताएं हैं, उसी तरह यहां रहने वाले हर व्यक्ति की संस्कृति, रहन-सहन, खान-पान भी अलग-अलग है।
हमारे इस देश में रहने वाले हर इंसान का स्वभाव और विशेषताएं भी अलग-अलग हैं। प्रत्येक मनुष्य अपनी आजीविका के लिए अपने-अपने तरीके से काम करके कमाता और जीवन यापन करता है। लेकिन ऐसे रहते हुए वह इंसान यह भी नहीं सोचता कि हम क्या करते हैं, जो काम हम करते हैं वह सही है या नहीं।
कोई व्यक्ति किसी कंपनी, प्रतिष्ठान, दुकान, कार्यालय, बगीचे, खेत में काम करता है, नौकरी करता है, कोई ड्राइवर है, कोई सफाई का काम करता है, पारिश्रमिक के रूप में जो पैसा मिलता है वह उसकी आजीविका का साधन बन जाता है। एक तरह से वह अपनी सेवाएँ उस कंपनी को, प्रतिष्ठान को, व्यक्ति को बेचता है। यहां तक तो सब ठीक है।
लेकिन अगर कोई व्यक्ति किसी संगठन में काम करता है और अपने उपजीविका के लिये काम करता तो है, लेकिन वही करता है जो बॉस उसे करने के लिए कहता है? अधिकांश समय यह बिल्कुल वैसा ही होता है। ऐसे संगठन में काम करने वाले व्यक्ति की अपनी कोई राय नहीं होती, बल्कि वह वही करता है जो बॉस उसे करने को कहता है, भले ही उसके काम का समय खत्म हो जाएं। अगर मैं किसी को वोट देना भी चाहूं तो भी अगर मालिक मुझसे कहे कि मैं उसी व्यक्ति को वोट दूं, तो यह गुलामी हो गई। गुलामी का मतलब है खुद को बेचना।
कई बार हम खुद से पूछते हैं कि क्या मैं जो कर रहा हूं वह सच है? क्या मैंने अपनी सेवा बेच दी है? या खुद को बेच दिया है? अगर अब मेरे पास अपने बारे में ऐसी राय नहीं है, तो मैंने खुद को बेच दिया है। ऐसे बहुत से लोग/व्यक्ति हमें इस भारत में देखने को मिलेंगे। आइए इस मामले में एक उदाहरण देखें। केवल नाम का एक व्यक्ति एक प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थान में प्रोफेसर के पद पर कार्यरत है, जिसके बदले में केवल को वेतन मिल रहा है। अन्य सुविधाएं एवं छूट भी उपलब्ध हैं। इस शिक्षण संस्थान के मालिक की पुरे इलाके में बडी दहशत है। उन्हे लगता है की, उनके संस्थान में काम करने वाला हर व्यक्ति वैसा ही करेगा जैसा वे कहते हैं। चुनाव आया और अगर यह मालिक चुनाव में खड़ा होता तो उस संस्थान में काम करनेवाले उसेही वोट दे। उसके लिए प्रचार करना, भले ही केवल की विचारधारा अलग हो, फिर भी वो उस संस्थान में काम करता है, इसलिए वो वही करता है जो मालिक उसे कहता है। अगर कोई इसके खिलाफ काम करता है, या इस तरह का व्यवहार करता है, तो न केवल उसकी नौकरी चली जाती है, बल्कि उसे और उसके परिवार को जो कष्ट सहना पड़ता है, वह कई लोगों ने अनुभव किया है। ये भी खुद को बेचने का काम है। इस प्रकार की नौकरी का अर्थ है लोगों को खरीदना या बेचना।
जब हम बच्चे थे तो खबरें सुनते थे कि बच्चोको पकड कर ले जानेवाले लोग आये हैं, बच्चों की देखभाल करो और यह सच था, अकेले बच्चों का अपहरण करना और उन्हें पैसे कमाने और अपना पेट भरने के लिए शहर में किसी को बेच देना मानव तस्करी का एक रूप है।
कई बड़े अस्पताल ऐसे मानव तस्करी का धंधा संचालित किया जाता हैं। हमने भी कई खबरें सुनी हैं। कई बार हमें ऐसी खबरें पढ़ने और सुनने को मिलती हैं। यदि एक महिला दो बच्चों को जन्म देती है, तो आपको केवल एक ही बच्छा हुआ है ऐसे कहकर दूसरे बच्चे को बेच देते है। कभी कभी अस्पताल मे काम करनेवाले ऐसा दावा करते है कि आपका बच्चा जन्म के समय मर चुका है और उन्हें एक दुसरा मृत शरीर सौंप देते है। ये भी किया जाता है। साधारण बीमारी के कारण अस्पताल में भर्ती होने के बाद किसी को भूल का इंजेक्शन देकर उसकी किडनी और अन्य अंग बेचने का भी धंधा होता है। हमारे यहां अब भी बालिग लड़कियों को बरगलाने, फुसलाने, और विदेश में बेचने और बदले में पैसे कमाने का काम अभी भी शुरू है।
हमारे भारत में एक ऐसा गिरोह है जो लड़के-लड़कियों को विदेश में नौकरी दिलाने की बात कहकर उनसे पैसे लेता है और उन्हें विदेश में बेच देता है। शादी हमारे लिए एक बड़ी समस्या बन गई है। 'जैसे-जैसे लड़के-लड़कियों की अपने पार्टनर से उम्मीदें बढ़ती जा रही हैं, वैसे-वैसे इस क्षेत्र में सक्रिय बुरी प्रवृत्तियों की संख्या भी बढ़ती जा रही है। ऐसे लोग भी होते हैं जो अमेरिका या अन्य बड़े देशों में नौकरी करने का दिखावा करते हैं और लड़कियों को अपना शिकार बनाते हैं। शादी के बाद उन्हें नौकरानी बनाते हैं या फिर वहां ले जाकर किसी को बेच देते हैं। इस और कई तरीकों से मानव तस्करी का धंधा जोरों पर चल रहा है।
हम कई बड़े शहरों में ऐसे कई श्रम बाज़ारों को भरते हुए देख रहे हैं। सुबह के समय बहुत से मजदूर एक निश्चित स्थान पर एकत्रित होते हैं। जो लोग अपने घर में, बगीचे में काम करवाना चाहते हैं ऐसे लोगोकी सुविधा के लिए, वहां ऐसे मजदूर उपलब्ध होते हैं। यहां तो सीधा सा लेन-देन है कि हमें जो मजदूर चाहिए, वह मिल जाए तो हम उसे ले जाते हैं। मैंने जितने भी श्रम बाज़ार देखे हैं, उनमें मैंने अभी तक ऐसा कोई बोर्ड नहीं देखा है जिस पर लिखा हो कि लोग किराये पर उपलब्ध हैं। लेकिन लगता है कि जल्द ही ऐसे बोर्ड की भी दिखाई देंगे।
हर शहर से लेकर छोटे से छोटे गांव तक में महिलाओं के जिस्म का बाजार देखने को मिलता है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि इन महिलाओं और लड़कियों को बाजार में पेश किए जाने वाले सामान की तरह ही चित्रित किया जाता है। कई ग्राहक आते हैं और अपनी पसंद की लड़की/महिला को लेकर अपनी हवस मिटाते हैं और चले जाते हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है कि यह बिजनेस भारत में कई करोड़ का लेनदेन करता है। इस बाजार में आने वाली महिलाओं/लड़कियों को इसी तरह की धमकियों से अगवा किया जाता है, खरीदा जाता है, ठगा जाता है, धोखा दिया जाता है, गुमराह किया जाता है। यह मानव तस्करी का ही एक रूप है।
पिछले कुछ सालों में जिस तरह महिलाएं/लड़कियां अपना शरीर बेचने का धंधा कर रही हैं, उसी तरह पुरुषों ने भी अपना शरीर बेचना शुरू कर दिया है। पेज थ्री संस्कृति में पली-बढ़ी गुमराह महिलाएं/लड़कियां अपनी शारीरिक हवस को संतुष्ट करने के लिए वेश्यावृत्ति में लड़कों और पुरुषों का उपयोग करती हैं। ऐसे पुरुष वेश्याओं को जिगोलो कहा जाता है। भारत में ऐसे जिगोलो की सेवाएं बड़े पैमाने पर दिल्ली में होती थीं लेकिन अब सुनने में आ रहा है कि देश के विभिन्न शहरों में इनका चलन वलन बढ़ रहा है। बड़ी संख्या में डिग्री कॉलेज के छात्र पैसा कमाने की चाह में इस पेशे में आ रहे हैं। इन लड़कों से सेवा लेने वाली महिलाएं उच्च वर्ग की पाई जाती हैं। दिल्ली, चंडीगढ़ जैसे शहरों में मध्यम वर्ग के नाइट क्लबों में इस तरह के जिगोलो का चलन काफी बढ़ा है। हम नहीं चाहते कि यह बढ़े, लेकिन अगर इसके लिए अलग से और स्वतंत्र प्रयास नहीं किए गए तो इसमें कोई संदेह नहीं कि यह कारोबार भारत में भी जोरों से शुरू हो जाएगा।
अब हम इससे भिन्न प्रकार देख सकते हैं। इसका अर्थ है नीलामी द्वारा लोगों को खरीदना या बेचना। हम देखते हैं कि भारत में ऐसे कई संगठन और संस्थाएं हैं जिन्होंने पैसे कमाने के कई तरीके खोजे हैं। ऐसा ही एक तरीका है. खिलाड़ियों की खरीद-फरोख्त। ऐसी नीलामी पिछले पंद्र्ह वर्षों से होती आ रही है। बहुत समय पहले हमने कहानी उपन्यास या कुछ फिल्मों में देखा था कि गुलामों का बाज़ार हुआ करता था और वहां से हम जितने चाहें उतने गुलाम खरीद लेते थे। हमने ये बाज़ार इस तरहसे देखा है।
हम कई वर्षों से सभी सुख-सुविधाओं के साथ पांच सितारा होटल में क्रिकेट नीलामी का अनुभव कर रहे हैं। खरीदने वाली टीम के मालिक एक बड़े बूथ में बैठते हैं और प्रत्येक क्रिकेटर का नाम पुकारा जाता है और उस व्यक्ति पर बोली लगाई जाती है। यहां तक कि वहां एक से दो करोड़ से लेकर पन्द्रह से बीस करोड़ तक की नीलामी होती है। इसी तरह फुटबॉल, कबड्डी के लिए भी नीलामी शुरू हो गई है, ग्रामीण स्तर पर भी ऐसी नीलामी शुरू हो गयी है। अगर आपको कोई बोर्ड दिखे कि यहां लोगोंगी नीलामी कि जा रही है तो आप हैरान मत होना। क्यों की, यहां लोग बिकते हैं।